रविवार, 22 जुलाई 2018

मालिक बाबा

मालिक बाबा
(परम पूज्य बौआ साहब जू)

malik-baba-baua-saheb

'मालिक बाबा' बचपन में यह नाम सुनते ही रोमांच भर जाता था। अभी भी इस नाम—मात्र से एक विलक्षण उर्वरा शक्ति का विकास हो जाता है।
मुझे आज भी बचपन की वो घटना याद है जब मैं लगभग साढ़े तीन वर्ष का था। इतनी छोटी उम्र में घटित घटना ने मेरे मन—मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला था कि वो हमेशा कल की बात लगती है।
मॉं उस समय बहुत बीमार थी। वह सुध—बुध खोकर बिस्तर पर पड़ी थी। दादी, पापा सब ने बताया कि मॉं बीमार है, भगवान से बोलो वो तुम्हारी मॉं को ठीक कर देंगे। मैं उस समय भगवान शब्द से भी अनजान था। घर में मॉं के बिस्तर के पास ही मालिक बाबा की तस्वीर लगी थी। मै। वहां जाकर खड़ा हो गया और निश्छल भाव से मालिक बाबा को सम्बोधित कर कहने लगा— '' हे मालिक बाबा हमर मॉं के सब दु:ख दूर करियौ ओकरा ठीक क' दियौ।'' और मेरी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। तभी मॉं ने आवाज लगायी— ''हां देखै ने हम ठीक छियै, बाबा तोहर बात सुनि लेलखुन— हम ठीक भ' गेलियौ।'' उनकी आंखों से भी अश्रु—धारा प्रवाहित हो रही थी।
 आज भी वो निश्छल प्रेम को याद करता हूं और ज्ञानेन्द्रियों के जाल से मुक्त होकर उसी भाव में बहकर अपने आराध्य सद्गुरू की आराधना करना चाहता हूं। परंतु इनकी शक्ति और माया का कोई पार नहीं है। जब कभी परिवार में कोई परेशानी होती, हम दौड़ कर मालिक बाबा के पास पहुंच जाते। हमें पूर्ण विश्वास था कि वो उसका हल जरूर निकालेंगे और सदैव ऐसा ही होता था।

दादी के अनन्य प्रयास, हमारे प्रति अगाध प्रेम तथा मालिक बाबा में पूर्ण विश्वास के फलस्वरूप वो सुखद घड़ी भी आ गई जब अल्पायु में ही मुझे सभी बांधवों सहित अपने परम आदरणीय मालिक बाबा के और निकट होकर उनके शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अब वे हमारे मालिक बाबा के साथ—साथ परम श्रद्धेय पूज्य सद्गुरूदेव भी थे।
 किसी भी आकुलता के समय उनकी कुटिया पर पहुंचकर शांति मिल जाती थी। मैं थोड़ा संकोची प्रवृति का व्यक्ति हूं। इसलिए कई बार मैं अपनी आकुलता में कुटिया पर चला तो जाता था परंतु वहां सबों के सामने कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन मालिक बाबा के दर्शन मात्र से ही आकुलता शांत हो जाती थी। उनकी शीतल वाणी तो अंतरतम को शीतल कर देती थी। दरभंगा में भी जब कभी बाबा कहीं आते थे तो हम लोग भागकर उनकी बंदगी करने जाते थे और उस दिन को धन्य मानते थे कि आज उनके दर्शन हुए।
 एक और बाल सुलभ घटना स्मरण हो रही है जिसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जाता। बचपन में परीक्षा के समय प्रत्येक बच्चों में परिणाम को लेकर आशंका/भय व्याप्त रहता है। इसलिए कई साथी भगवान के आगे घरों में अथवा मन्दिरों में परीक्षा में लिखने वाले पेन/कलम को रख देते थे और उसी कलम से परीक्षा में लिखते थे, इस से उनमें परिणाम को झेलने की शक्ति मिलती थी। (ऐसा उस समय मेरे जैसे कई छात्रों का विचार था) मेरी भी बोर्ड की परीक्षा थी। मैं भी बेहतर परिणाम की अभिलाषा में मालिक बाबा से आशीर्वाद लेने पहुंचा(हमारे लिए एकमात्र सब कुछ हमारे मालिक बाबा थे/हैं)। मैं साथ में एक नहीं दो—दो नई कलम ले गया था। कुटिया पर पहुंच कर बाबा को बंदगी की। बाबा ने कुशल—क्षेम पूछा और तत्पश्चात भोजन ग्रहण करने को कहा। मैं संकोचवश कुछ बोल नहीं पा रहा था और वहां से भोजन के लिए हट भी नहीं पा रहा था। बाबा ने पूछा क्या बात है और अपनी समस्या बताने के लिए कहा। आखिरकार मैंने अपनी संकोच को दूर कर बोला — '' बाबा अपनेक आशीर्वाद लेब' आयल छी, मैट्रिक के परीक्षा छै।'' और एक पेन निकालकर आगे कर दिया। बाबा पहले हंसे, फिर बोले— ''देखू बौआ बिनु पढने जौं सब आशीषे सं' पास भ' जेतै त अपने सोचियौ कतेक अकर्मण्यता आबि जेतै। अहि लेल पढ़ाई त बहुत जरूरी छै। मन लगा क पढू अवश्य पास होयब।'' मैं थोड़ा निराश होने लगा। फिर बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथ से कलम ले लिए और मेरे दायें हाथ पर उससे भगवत् नाम लिखने लगे। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने झट दूसरा पेन भी आगे कर दिया और बोला—''बाबा कहीं बीच में ही पेन खत्म भ' गेलै त, तैं इहो पेन पर कृपा करियौ।'' बाबा हंसते हुए उस पेन से भी  मेरी हथेली पर लिखने लगे। फिर उन्होंने अत्यंत कृपा की जिसे याद कर आज भी शरीर रोमांचित हो उठता है। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे मस्तिष्क पर रख दिया। आशीर्वाद का ऐसा अनुग्रह पहले कभी नहीं प्राप्त हुआ था, मैं अभिभूत हो उठा।

अवतार जिस गुरूदेव का युगधर्म ले होता सदा।।
उस महामानव के लिए दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा।।
हे नाथ जग में प्रकट हों तव संत की शुभ आत्मा।
जो कलह—दु:ख—कुविचार का जग से करें नित् खात्मा।।
संत रूप भगवान,
            प्रकटे जग में सर्वदा।
दे सबको शुभ ज्ञान,
            करैं सुखी संसार को।।
                            (सद्गुरूदेव द्वारा रचित प्रार्थना से)
अनेकों ऐसी छोटी—बड़ी घटनाएं हैं जो हमें निश्चिंत करती थी कि हमारे साथ हमारे मालिक स्वयं मालिक बाबा हैं। हमारी सभी दु:खों/समस्याओं का हल निकालने वाले, हम पर कृपा करने वाले साक्षात प्रभु।
 मालिक बाबा के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि आज भरवाड़ा कबीर आश्रम में होने वाले इतने विशाल वार्षिक भण्डारा के शुरूआती वर्षों में बाबा उसके आयोजन के लिए पूरे वर्ष तक प्रतिदिन अपने एक समय के भोजन बचाकर रखते थे ​ताकि भण्डारा में कोई भी संत द्वार से भूखे न लौटें। सभी दीन—दु​:खियों की सेवा में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उस समय लोगों के पास इलाज के लिए न धन होता था और न ही कोई सुविधा थी। उन्होंने अपने विलक्षण जड़ी—बूटी के ज्ञान का उपयोग कर लोगों की नि:शुल्क/नि:स्वार्थ सेवा देना प्रारम्भ किया और पूरे लगन से दीन—दु:खियों की सेवा में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

मैं जब अपनी नौकरी लगने की सूचना देने उनके पास गया तो वे अत्यंत हर्षित हुए। फिर जम्मू जैसे आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग की बात बतलाई तो उन्होंने भगवत सुमिरन की सलाह दी और सब कुछ भगवान पर छोड़ने को कहा। उस समय मुझे यह कतई भान नहीं था कि यह मेरी उनसे अंतिम भेंट होगी। मैं जब जम्मू जाने की तैयारी कर रहा था तो दिल्ली में उनके अत्यंत अस्वस्थ होने की सूचना मिली। मन व्याकुल हो गया और आकुलता में मैंने अपने मालिक बाबा के स्वास्थ्य लाभ हेतु विनती लिखी—

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

परंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2009 के आखिर में वो सबसे दु:खद दिन भी आया। उन दिनों में मैं अपनी सेवा के प्रारम्भिक दौर में जम्मू में था। पापा का फोन आया, वो बोले— ''हम सब अनाथ भ' गेलौं, मालिक बाबा नै रहलाह।'' शरीर सुन्न पड़ गया। मालिक बाबा ​के बिना हमलोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। सचमुच हम अनाथ हो गये।
    हे परम पूज्य श्रद्धेय मालिक बाबा हम आज भी आपके बताये राह पर चलने का प्रयास करते हैं। प्रयास इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि कभी—कभी उलझनें, बाधाएं, समस्याएं इतनी कमर तोड़ देती है कि राह से भटकने लगता हूं। अंधविश्वासी भी बन जाता हूं। मालिक बाबा आपके बिन हम सचमुच अनाथ हैं। अपने हिसाब से सबकुछ अच्छा करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। भगवत् भजन के लिए मिलने वाले हर मौके पर सदैव उन परम् पुरूष परमात्मा के निराकार स्वरूप का ध्यान करते हैं, जिसका भेद आपके साकार रूप ने कराया था। फिर भी बाधा—विघ्न रूपी दीवार नहीं टूटती, जिन्दगी उलझती चली जाती है। मन अशांत होकर अंधविश्वासी बना देता है। यहां—वहां सबको प्रणाम करते हुए सबसे पागलों की तरह क्षमा—याचना करता रहता हूं। उन राहों को जिनके बारे में कभी आपने बताया था कि वो सब व्यर्थ हैं, केवल परमात्मा का भजन और कर्म ही सब कुछ है, पर अनायास ही चल पड़ता हूं। हे परम पूज्य मालिक बाबा हमें शक्ति प्रदान कीजिए की हम परमात्मा के मार्ग पर दृढ़ होकर प्रगतिशील रहें।
हे परम पूज्य गुरूदेव जू, हम अनाथ पर दया कीजै।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै,
प्रभु मोहि​ अपने शरण लीजै।।

    शुभेश   
सप्रेम साहेब बन्दगी—3

1 टिप्पणी: