रविवार, 29 मई 2016

हे दीन दयाल दया कीजै

12:50:00 pm
हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।
                                      .....शुभेश
(परम पूज्य गुरूदेव के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रभु से विनती हेतु नवम्बर,2009 में रचित)

गुरू की वाणी अमृत जैसा

12:37:00 pm
गुरू की वाणी अमृत जैसा
Gurudev+ki+vani
गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।
गुरू की वाणी...............

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।

जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।

गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।

गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।
                            .....शिवेश

सतगुरू की महिमा

11:55:00 am
सतगुरू की महिमा

Param+Pujya+Gurudev+Shriyut+Baua+Saheb

अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ...............................................
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा.......................................
                                                                     .....शिवेश

रविवार, 8 मई 2016

सुख-दु:ख

10:44:00 am
ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है
सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

बिना धूप के छाँव का आस्तित्व ही क्या
अंधियारे के बिना उजाले का महत्व ही क्या
गोरे हैं तब ही जब काले हैं
कहीं उदासी है फिर तब चित्त मतवाले हैं

जब जग में सब सुन्दर ही होते
कोई सुन्दर नहीं कहीं पर होते फिर
क्या होता जब दिवस—दिवस ही रहता केवल
नहीं अंधियारी रैना की क्या कोई जरूरत?

है कुरूपता से परिभाषा सुन्दर की
भेद यहीं से मिलता है नारी—नर की
ज्यों अपंगता है जग में तन सुन्दर है
कहीं खुरदुरे श्यामल चेहरे, कहीं पर छवि मनोहर है

कहीं लालच है, कामुकता है, फिर कहीं ईमानदारी है, वैराग्य है
कहीं निर्धनता है, व्याधि है, तो कहीं अमीरी है, आरोग्य है

यदि है क्रोधी कोई मोही, तब ही शांत चित्त निर्मोही
अन्याय नहीं फिर न्याय ही कैसा, जैसे पुण्य पाप बिनु वैसा

अरे भगवान के आस्तित्व के लिए भी, शैतान का होना बहुत जरूरी है
इसलिए ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है, सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

जो आज दु:खी है, कल सुखी भी होगा
तम का सीना फाड़ सूरज निकलेगा
तुम यत्न किन्तु बस इतना करना
नित कर्म किए जा और ईश चरण में ध्यान तुम धरना

फिर 'शुभेश' सुख ही सुख का, रहेगा तेरे घर डेरा
नहीं मिलेगी निशि अंधियारी, नहीं व्यापेगा तुझको कष्ट घनेरा
                                                                      .....शुभेश 

निवेदन

10:02:00 am
मात—पिता से बढ़कर, संसार में कोई और नहीं है
ठुकरा दे गर, सारी दुनियां, सं​तति पाती ठौर यहीं है ।
उनकी पूजा से बढ़कर कोई धर्म नहीं
हां उनकी सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं ।
जिसने सींचा नौ मास निज रक्त से मुझे
है कोशिश दे सकूं, खुशी के कुछ वक्त उन्हें ।
जिनका नाम ले बढ़ा जग में
निज पहचान है दिया जिन्होंने
जी चाहे कुछ कर गुजरूं उनकी खुशी के लिए ।
चाहूं तो भी उऋण हो सकता नहीं,
इसलिए प्रभु से मांग रहा यह वर
हर जनम में तेरी संतान बनूंगा
कितना भी बल बुद्धि हीन रहूं, फिर भी मैं सच्चा इंसान रहूंगा ।

हे भगवान इतनी कृपा और करो प्रभु
रखूं सुखी दूं हर खुशी उसे ।
जिसने निज मात—पिता का घर छोड़ा मेरी खातिर
कियें है जाने त्याग कई, बस मेरी खातिर ।
उसको भी तो मात—पिता होंगे प्रिय
शायद मुझसे अधिक ही चाहत हो उनकी ।
फिर भी रीति—रिवाजों कारण,
सब छोड़ मेरे संग है आई ।
इसलिए मुझ पर मुझसे भी अधिक
उसकी ही है प्रभुताई ।
दु:ख उनके बांट नहीं सकता मैं
हां खुशियों से झोली भर सकता मैं ।

हे प्रभु दो इतना आत्मबल, सम्बल मुझको
पुत्र और पति धर्म दोनों का भ​ली—भांति पालन करूं ।
सुख—चैन से भर दूं मात—पिता का हर इक क्षण
और खुशियों भरा कर दूं, सबका जीवन ।
                                                       ........शुभेश

शनिवार, 7 मई 2016

भूख

9:21:00 pm
मामा जी, मामा जी यो, हमरा लगि गेल भूख ।
हमरा लेल पेड़ा—बिस्कुट आनू, चाहे खोआ—तिलकुट आनू ।
जल्दी से आनू सेबक जूस, जल्दी से आनू दूध ।।
मामा जी, मामा जी यो....................

दालि चाउर लै खिचड़ी बनाबू, चाहे दूध दै खीर बनाबू ।
नूने—अनून स​ब किछु खा लेब, कांचो—कोचिल सेहो पचा लेब ।।
बड जोड़ लगि गेल भूख ।
मामा जी, मामा जी यो....................

नै किछु बनत त' सेहो बता दिय'
हमरा माय के अहां, बजा दिय'
हम त पी लेब दूध, आब बड जोड़ लगि गेल भूख ।।
मामा जी, मामा जी यो....................
                          ........शुभेश
 (​अपनी पुत्री सुश्री शुचि को समर्पित मैथिली बाल रचना)

तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा

6:28:00 pm
हे ​प्रियतमा, शुभ्रे! तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा ।
मैं अनुगामी नहीं बनाता हूं तुझको, पर हे प्रिये तुझे सहचरी तो बनना होगा ।।

पथ में चाहे जितने कंटक आए, मैं चल लूंगा हंसकर ।
तू फूल भरी राहों पर हीं ज्यों चल मेरे हाथ पकड़कर ।।
मैं दु:ख—संताप की ज्वाला को पी लूंगा।
पर तुझको भी इसकी थोड़ी आंच सहन करना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .....................

श्रेष्ठजनों की बात को न तुम दिल पर लेना ।
होगी गूढ़ भलाई कोई, बात सहज मान लेना ।।
मातु—पिता नहिं चाहे संतति का अहित
हो सकता भिन्न तरीका, उनके प्यार जताने का ।

औरों की बहकी बात से हमें क्या लेना,
हम दोनों का साथ है जब, क्या कर लेंगी बावरी दुनियांं ।
हो सकता हैं लोग करें तुझ पर वाणी से शस्त्र प्रहार बहुत,
कटुक वचन से ह्रदय छलनी होगा, पर हे प्रिय तुम न धीरज खोना ।

ये ​दुनिया है बड़बोलों की, बड़बोलों की है ये दुनिया
तुमको उनकी बातों पर कान नहीं धरना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .............................
                                                           .......शुभेश

अपरंपार दयालु भगवन

5:44:00 pm
हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश