बड़की दादी
ममतामयी जगदम्बा की मूरत ।।
निर्मल ह्रदय, करूणामय दृष्टि ।
अविरल स्नेह से सींचत सृष्टि ।।
गुरू मॉं की तो छवि है ऐसी ।
स्वयं विराजे गुरूवर जैसी ।।
साहेब बन्दगी चरण कमल में ।
श्रद्धा—भाव हैं सजल नयन में ।।
तुम सम कौन कहूं उपकारी ।
जो आवे कुटिया दु:खियारी ।।
मातृत्व स्नेह की बारिश करती ।
पल में उनकी पीड़ा हरती ।।
गुरूवर के साधना—पथ की तुम,
अविचल औ निर्भीक संगिनी ।
दया—धरम का पाठ पढ़ाती,
भव—भय दूर कराती जन की ।।
माई साहब, बड़की काकी और बड़की दादी,
केवल नाम नहीं श्रद्धा है ।
कोटि—कोटि वंदन चरणों में,
जन—जन की पावन आस्था है ।।
शुभेश करतु हैं बंदगी,
बिनवौं बारम्बार ।
बड़की दादी दया करो
विनती करो स्वीकार ।।
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