हे प्रभु - निवेदन
Shubhesh Kumar
6:39:00 pm
हे प्रभु - निवेदन
कण-कण में तू ही, हर क्षण में तू ही
तुम राग में हो, अनुराग में हो
तुम प्रीत, प्रेम और त्याग में हो
तुम मातु-पिता, तुम बन्धु-सखा
तुम सन्यासी, तुम जोग-जती
प्रभु राम तू ही, और कृष्ण तू ही
गौतम-महावीर-नानक तूम ही
तुम सूर तुलसी और मीरा हो
जन-जन का मान कबीरा हो
कर्म तू ही, सब धर्म तू ही
जीवन के सारे मर्म तू ही
घट बाहर भी, घट भीतर भी
घट में बसो, सब घट में रमो
सब जीव में तुम समदरशी हो
सुख-दु:ख में सदा मन हरषी हो
सर्वत्र तू ही, सर्वज्ञ तू ही
ज्ञान तू ही, मर्मज्ञ तू ही
तुम दूर नही, तुम पास में हो
तुम आस में हो विश्वास में हो
हम जाएं कहां कुछ भान नहीं
कहें कष्ट किसे कुछ ज्ञान नहीं
सर्वत्र तू ही, फिर कष्ट है क्यूं
सर्वज्ञ तू ही, फिर मौन है क्यूं
प्रभु मैं अज्ञानी हूं शायद
कुछ मान-गुमान हमें शायद
तुम पुत्र जानि हमें माफ करो
हमको अब भव से पार करो
अब और नहीं कुछ तृष्णा शेष
विनती कर जोडि़ करै ‘शुभेश’