रविवार, 5 अगस्त 2018

हे प्रभु

हे प्रभु
he-prabhu

हर भेष में छी, सब देश में छी
कण—कण में अहाँ, हर क्षण में अहीं
अहाँ राग में छी, अनुराग में छी
अहाँ प्रीत प्रेम और त्याग में छी
अहिं मातु—पिता, अहिं बन्धु—सखा
अहिं सन्यासी, अहीं गृहस्थी
प्रभु राम अहीं, अहिं कृष्ण भी छी
अहिं गौतम, महावीर, नानक भी छी
अहाँ सूर—तुलसी आ मीरा छी
अहाँ जन—जन केर मान कबीरा छी
कर्म अहीं, सब धर्म अहीं
जीवन केर सबटा मर्म अहीं
घट बाहेर भी, घट भीतर भी
घट—घट में रमी, हर घट में बसी
सब जीव में छी, समदरशी छी
सुख—दु:ख में अहाँ मन हरषी छी
सर्वत्र अहाँ सर्वज्ञ अहीं
ज्ञान अहाँ मर्मज्ञ अहीं
अहाँ दूर भी छी, अहाँ पास भी छी
अहाँ आस में छी, विश्वास में छी

हम जाउ कत' किछु नै बूझाए
कहि कष्ट कत' किछु नै सूझाए
सर्वत्र अ​हीं फेर कष्ट किआ
सर्वज्ञ अहाँ फेर दु:ख किआ

प्रभु हम अज्ञानी बुझि परए
किछु कर्म उलट जौं भेल होअए
पुत्र जानि अहाँ माफ करू
हमरो भवसागर पार करू
आओर हमरा इच्छा किछिओ ने शेष
विनती कर जोड़ि करै 'शुभेश'

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