शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

अटल बिहारी वाजपेयी....अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.

11:49:00 am
atal-bihari-vajpayee-shraddhanjali

जिन्दगी और मौत की ठन ही गई और मौत ने स्वयं को विजित घोषित कर दिया। हमारे सर्वप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी नहीं रहे। ऐसी जिन्दादिली की मिसाल मिलना मुश्किल है। उनके जैसा राजनीतिज्ञ, विचारक, कवि शायद ही फिर पैदा हो................

महाप्रयाण रथ निकल रहा अब
छोड़ चला तन भारत रत्न अब
अश्रुपूरित सजल नयन है
हे महामानव तुम्हें नमन है
अस्ताचल सूर्य भी नमन कर रहे
समर्थक क्या विरोधी भी वंदन कर रहे
आप हमारे आदर्श हैं, सदैव रहेंगे
हमारे बीच नहीं रहे, पर हृदय में बसे रहेंगे
प्रभु भी बड़ा छलिया है
हमसे आपको छीन तो लिया है
पर क्या वो हमारे दिल से निकाल पाएगी
दिल में बसी है जो छवि उसे उतार पाएगी

नमन...........अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.............

बुधवार, 15 अगस्त 2018

शिकायती लाल

2:32:00 pm
शिकायती लाल

बन्दौं तुमको गिरधर गोपाल
जगत—पिता सबके प्रतिपाल
अपनी शिकायतों का पिटारा ले,
फिर पहुंचा ये शिकायती लाल
तुम भी मुझसे त्रस्त हो गये होगे
शायद इसीलिए मुंह फेर लिये होगे
मैं क्या करूं भगवन मैं भी विवश हूं,
आपने कुछ विकल्प कहां छोड़ा है
मैं जानता हूं कि आपके पास बहुतेरे काम हैं,
पर बताएं मुझे किसके भरोसे छोड़ा है
प्रभु आप तो सर्वज्ञ हैं, फिर भी मौन हैं
बताएं हम कहां जाएं और कौन है
कर्म ही है वश मेरे, वो करता हूं
धर्म बस दया है, जो करता हूं
यूं तो मैं खुद दया का पात्र हूं भगवन तेरे
पर धरम हेतु हर जीव पर सदैव दया करता भगवन मेरे
गुरूवर कह गये हैं— दया धरम का मूल है
सद्गुरू कबीर भी कह गये—

दया राखि धरम को पाले, जग से रहे उदासी
अपना सा जी सबका जाने ताहि मिले अविनाशी

बस इन्हीं वचनों का पालन कर रहा हूं
पग—पग फूंक कर कदम रख रहा हूं
न किसी का मुझसे अहित हो
न कुछ टूटे न कोई मुझसे रूठे
पर अविनाशी ईश्वर ही मुझसे रूठ गये हैं
और किसको मनायें हम तो सचमुच टूट गये हैं

साहब तुमही दयालु हो, तुम लगि मेरी दौर
जैसे काग जहाज को, सूझे और न ठौर

कहीं और ठौर नहीं प्रभु, नाव भवसागर में हिचकोले खा रही
प्रभु हम क्या करें, कहां जाएं, कुछ समझ में नहीं आ रही

साहब से सब होत हैं, बन्दा से कछु नाहिं
राई से पर्वत करें, पर्वत राई माहिं

परंतु तुम तो जैसे मेरी परीक्षा लेने पर ही तुले हो
मानो मेरी व्यथा से आंख मूंद लिये हो
तभी तो राई समान दु:ख को भी पहाड़ बना दिये हो
शांति—प्रेम—संतोष को ही अपने पास बुला लिये हो
मैं परबत समान सुख की अभिलाषा नहीं रखता
बस मेरा कर्तव्य है, जो कर्म वही हूं करता
अब इनके अभाव में मैं क्रोध न करूं तो क्या करूं
विवश हो शिकायतों का पिटारा न खोलूं तो क्या करूं
अब तुम ही दु:ख भंजन हो, सब दुखियारी के
तो राह दिखाओ तुम, सर्व सहायी हो

न, किसी और दर की, कोई आस न शेष
प्रभु कृपा करो अब तेरे शरण 'शुभेश'

रविवार, 5 अगस्त 2018

Happy Friendship Day

5:00:00 pm
Happy Friendship Day
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मित्रता दिवस की ढेरों बधाई
हॉं आप सबों को Happy Friendship Day भाई
पर आज के दौर में सच्चा मित्र कौन है
क्या वो जो मित्र के दु:खों पर भी मौन है
या वो जो मित्र बना स्वार्थ हेतु
ना जी मित्र तो होते परमार्थ हेतु
लो फिर भगवान को ही मित्र बना लो
और समस्त दु:खों से ​मुक्ति पा लो
हॉं ये सच है, भगवान सबके मित्र बन जाते हैं
परंतु क्या सभी भक्त सच्चे मित्र बन पाते हैं
वो सुदामा सी मित्रता जिसने कृष्ण की दरिद्रता अपने नाम कर ली
वो कृष्ण की मित्रता जिसने अपना सबकुछ सुदामा के नाम कर दी

भगवान ने पग—पग पर हमे मित्र दिया है
क्या आपने उसे महसूस किया है
जन्म लिया तो मित्र मॉं बन आई
क्या निज रक्त से और कोई सींचे है भाई
फिर पिता ​बनि सम्मुख आए
प्रथम गुरू जो प्रेम, स्नेह और अनुशासन का पाठ पढ़ाए
फिर लंगोट मण्डली और भाई—बहन की वो टोली
जिन संग हम सबने खेली आॅंख—मिचौली
अपनी ही धुन में वो मस्त मलंग सा
मस्ती से भरा, नहीं फिकर किसी का
फिर boyfriend-girlfriend वाली दोस्ती
दुनिया लगे दीवानों जैसी
फिर पति—पत्नी का मित्र बन आना
सुख—दु:ख जो सम करि जाना
फिर संतान घर खुशियां लाई
जिसने बचपन की याद दिलाई
तो 'शुभेश' पग—पग पर है मित्रता
मत करो किसी से शत्रुता

हे प्रभु

4:57:00 pm
हे प्रभु
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हर भेष में छी, सब देश में छी
कण—कण में अहाँ, हर क्षण में अहीं
अहाँ राग में छी, अनुराग में छी
अहाँ प्रीत प्रेम और त्याग में छी
अहिं मातु—पिता, अहिं बन्धु—सखा
अहिं सन्यासी, अहीं गृहस्थी
प्रभु राम अहीं, अहिं कृष्ण भी छी
अहिं गौतम, महावीर, नानक भी छी
अहाँ सूर—तुलसी आ मीरा छी
अहाँ जन—जन केर मान कबीरा छी
कर्म अहीं, सब धर्म अहीं
जीवन केर सबटा मर्म अहीं
घट बाहेर भी, घट भीतर भी
घट—घट में रमी, हर घट में बसी
सब जीव में छी, समदरशी छी
सुख—दु:ख में अहाँ मन हरषी छी
सर्वत्र अहाँ सर्वज्ञ अहीं
ज्ञान अहाँ मर्मज्ञ अहीं
अहाँ दूर भी छी, अहाँ पास भी छी
अहाँ आस में छी, विश्वास में छी

हम जाउ कत' किछु नै बूझाए
कहि कष्ट कत' किछु नै सूझाए
सर्वत्र अ​हीं फेर कष्ट किआ
सर्वज्ञ अहाँ फेर दु:ख किआ

प्रभु हम अज्ञानी बुझि परए
किछु कर्म उलट जौं भेल होअए
पुत्र जानि अहाँ माफ करू
हमरो भवसागर पार करू
आओर हमरा इच्छा किछिओ ने शेष
विनती कर जोड़ि करै 'शुभेश'

बड़की दादी - गुरू मॉं

4:54:00 pm
बड़की दादी
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सहज शांत तेजोमयी सूरत ।
ममतामयी जगदम्बा की मूरत ।।
निर्मल ह्रदय, करूणामय दृष्टि ।
अविरल स्नेह से सींचत सृष्टि ।।

गुरू मॉं की तो छवि है ऐसी ।
स्वयं विराजे गुरूवर जैसी ।।
साहेब बन्दगी चरण कमल में ।
श्रद्धा—भाव हैं सजल नयन में ।।

तुम सम कौन कहूं उपकारी ।
जो आवे कुटिया दु​:खियारी ।।
मातृत्व स्नेह की बारिश करती ।
पल में उनकी पीड़ा हरती ।।

गुरूवर के साधना—पथ की तुम,
अविचल औ निर्भीक संगिनी ।
दया—धरम का पाठ पढ़ाती,
भव—भय दूर कराती जन की ।।

माई साहब, बड़की काकी और बड़की दादी,
केवल नाम नहीं श्रद्धा है ।
कोटि—कोटि वंदन चरणों में,
जन—जन की पावन आस्था है ।।

शुभेश करतु हैं बंदगी,
बिनवौं बारम्बार ।
बड़की दादी दया करो
विनती करो स्वीकार ।।