सोमवार, 18 सितंबर 2017

सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान

सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान
‘सहज’, ‘सदय’ दोऊ मित्र परस्‍पर
विद्या के धनी, गुणी, प्रवीण धुरंधर
अल्‍पकाल स‍ब विद्या पाई
सरकारी सेवक बनने हेतु किस्‍मत आजमाई

‘सहज’ नाम अनुरूप सहजता से
सरकारी सेवक बन जाते हैं
परंतु ‘सदय’ अनेकों प्रयास के बावजूद
किस्‍मत को कोसते रह जाते हैं

दो वर्ष के पश्‍चात आखिरकार
एक प्रतिष्ठित निजी संस्‍थान ने
इनकी काबिलियत को पहचाना
सेवा का सुअवसर देकर इन्‍हें
और स्‍वयं को धन्‍य माना

‘सहज’ कार्य करें पूर्ण विनय से
प्रतिभा की नहीं कमी ‘सदय’ में

काज करें दोनों ही ऐसे
कर्म ही धर्म हो उनका जैसे

‘सदय’ ने निजी संस्‍थान में बेहतर प्रदर्शन कर
तरक्‍की पर तरक्‍की पाई
बोनस, इन्‍क्रीमेंट आदि को पाते हुए
कर्मचारी से अधिकारी वर्ग में पदोन्‍नति पाई

वहीं ‘सहज’ सरकारी सिस्‍टम के
चक्रव्‍यूह में उलझ कर रह गये
यहां अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना
बेमानी है, नादानी है भूल गये

यहां तो वरिष्‍ठों से सुना
कथन सटीक बैठता है
‘तुम मत सोचो कि
ऊंट किस करवट बैठता है

तुम तो हाथी की तरह
मस्‍त विश्राम करो
औरों को करने दो काम
तुम बस आराम करो

यदि लोगे अधिक टेंशन
तो श्रीमतीजी पाएंगी पेंशन’

भाई सरकारी सिस्‍टम का
हाल तो बिल्‍कुल निराला है
जो चाटुकार है, रसूखदार है
बस उसी का बोलबाला है

जो मेहनती है, वो
सबसे परेशान व दु:खी है
‘शुभेश’ जो कामचोर हैं, वो ही
सम्‍मानित और सुखी हैं।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

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