मेरे राम
मेरा राम न जन्म है धरता,हर घट भीतर में वो बसता ।
मैं नहीं पूजूं उनको भाई,
जो रावण से लड़े लड़ाई ।
मेरे राम को प्रेम सभी से,
मिलते सहज भाव सब ही से ।।
मैं ना ढूंढू मन्दिर-मस्जिद,
ना गिरिजा ना कोई शिवालय ।
मन के भीतर ही मैं झांकू,
निर्मल-मन-चित्त है देवालय।।
राम नहीं मन्दिर में रहते,
बच्चों की मुस्कान में बसते ।
बच्चों सा निर्मल बन जाओ,
राम को अपने सम्मुख पाओ ।।
निराकार स्वरूप है उनका,
सत्य नाम हैं सब ही उनका ।
राम चरण गहि कहें ‘शुभेश’,
करहुं दया नहिं व्यापे क्लेश ।।
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)
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