शनिवार, 7 मई 2016

अपरंपार दयालु भगवन

हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश

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