गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

पानी

 पानी
प्‍यास से गला सूख रहा था, परंतु कहीं पानी नजर नहीं आ रहा था। मैंने घर के सारे बोतल,  डब्‍बे  यहां तक  कि किचन के सारे बरतन को कई बार उलट-पलट कर देख लिया लेकिन पानी की एक बूंद भी नहीं मिली। मैं प्‍यास से बेचैन होकर छुट्टन के दुकान की ओर भागा। पहुंचते-पहुंचते मैं हांफने लगा था। मैंने पानी की एक बोतल मांगी। उसने लगभग झल्‍लाते हुए बोला- अरे भाई नहीं है पानी। सुबह से एक ही बात बोल-बोलकर थक गया हूं। भाई पानी की बोतल की सप्‍लाई नहीं हो रही है। पूरे दस दिन से मैंने पानी की एक बोतल भी नहीं बेची। हम जैसों के नसीब में ऐसी अनमोल चीजें कहां। मैं बदहवास सा चीख पड़ा। क्‍या मतलब, पानी नहीं है। प्‍यास के मारे मैं मरा जा रहा हूं और जब मैं पानी खरीदने आया हूं तो तुम भी नहीं दे रहे हो। क्‍या हो गया है, अब मैं कहां से पानी लाऊं। छुट्टन ने समझाते हुए कहा- भाया पीने के पानी की बहुत मार मची है। दिन में दो बजे नलकूप विभाग की गाड़ी आती है और सभी घरों के लिए प्रति व्‍यक्ति एक लीटर के हिसाब से पानी देती है। अब तो उसी का इंतजार करना पड़ेगा, कोई और चारा नहीं है। मैंने उसकी ओर आशा भरी निगाहों से देखा, शायद वो अपने लिए रखे पानी में से थोड़ा मुझे भी पिला दे। पर उसने दो-टूक लहजे में कह दिया- और चाहे जो कुछ मांग लो परंतु पानी नहीं। 2 बजे से पहले पानी नहीं मिलेगा और मैंने एक गिलास पानी अपने बेटे के लिए बचा कर रखा है जो प्‍यासा स्‍कूल से लौटेगा तब उसे दूंगा। 
मैं हताश-निराश वापस घर की ओर लौट पड़ा। अब दो बजे तक इंतजार करने के सिवाय कोई चारा नहीं था। परंतु अभी तो केवल 10 ही बजे थे। चार घण्‍टे तक मैं प्‍यास से तड़पता रहूंगा। हाय ये क्‍या हो गया है। बेसिन में लगा नल मुझे देख मुंह चिढा रहा था, मानो मन ही मन मुझे कोस रहा हो – और पानी करो बर्बाद। ब्रश करते समय और सेविंग करते समय नल खुला छोड़कर जाने कितने लीटर पानी बर्बाद कर दिये अब भुगतो। बाथरूम में लगा झरना तो मानो मेरी बेबसी पर अट्टहास लगा रहा था- घंटों तक झरने के नीचे नहाने का आनंद लेते समय तनिक भी भान नहीं रहा कि कितना पानी व्‍यर्थ जा रहा। वहीं गमले में लगे फूलों की सूखी डंठल और आंगन में लगभग ठूंठ हो चुका आम और कटहल के पेड़ मेरी दशा पर मानो तरस खाते हुए बोल रहे थे – इतने व्‍यर्थ पानी बर्बाद करने के स्‍थान पर यदि हमें सींचा होता और छोटे-छोटे पौधों की सेवा की होती तो आज ये नौबत न आती। 
पूरे कॉलोनी में कहीं हरे-भरे पेड़ नहीं थे। कहीं-कहीं सूखे तने दिखलाई पड़ रहे थे। तभी बाहर कोलाहल सुनाई पड़ा। लोगों की भीड़ लगी थी, पानी वाली गाड़ी आ गई थी। लोग लाईन लगा रहे थे। मैं भी भागा-भागा गया और विनती की, कि पहले मुझे पानी दें मैं बहुत प्‍यासा हूं। पानी बांटने वाले ने बोला- ठीक है अपना वाटर कार्ड निकालो। अब ये क्‍या बला है? कौन-सा वाटर कार्ड। हे भगवान अभी तक आपने वाटर कार्ड नहीं बनवाया, फिर तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता। सरकार ने पानी के ब्‍लैक मार्केटिंग रोकने के लिए सबको वाटर कार्ड जारी किया है, बिना उसके पानी नहीं मिलेगा। पानी देने वाला कर्मचारी यह कहकर दूसरों को पानी देने में व्‍यस्‍त हो गया। मैं प्‍यास के मारे पागल हुआ जा रहा था। मेरे आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। मैं हाथ जोड़कर भगवान से विनती करने लगा- हे भगवान, अब तेरा ही आसरा है। अब तुम ही मेरे प्राणों की रक्षा कर सकते हो। तभी मेरे जीभ पर पानी की कुछ बूंदे पड़ी। मानों भगवान ने मेरी प्रार्थना से द्रवित होकर बादल को बारिश करने भेज दिया हो। 


फिर आंखों पर पानी की कुछ बूंदें पड़ी। साथ में पत्‍नी का स्‍वर सुनाई पड़ा। कब तक सोते रहोगे ऑफिस नहीं जाना क्‍या। मैं आंख मलते हुए उठ बैठा। तो मैं सपना देख रहा था। कितना भयानक सपना था। लेकिन इस सपने को सच होते देर नहीं लगेगी यदि समय रहते हम पानी और वनों का महत्‍व नहीं समझेंगे। इसलिए पेड़ लगायें और पर्यावरण को बचायें जिससे आपकी अगली पीढ़ी को इस सपने से रूबरू न होना पड़े। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें