शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

उलझन

उलझन 


बड उलझन में अई हम्मर मन

तू त जानय सब किछु भगवन

तू त जानय सब किछु भगवन

बड उलझन में अई हम्मर मन


मन में नै छल दुनियादारी

हम्मर ओकर मारामारी

धिया पुता सन् मन छल निर्मल

नै किछ मन में छल-छिद्रम छल


निश्छल प्रेम भरल छल भीतर

सहज समर्पित तोहरे ऊपर

मन में किछुओ राग ने द्वेष

सहज प्रेम सौं पूरित भेष


बोध भावना आओल जखने

चित्त कलुषित भ गेल तखने

पाप-पुण्य केर कत्ते उलझन

कल बल छल में भर्मित भेल मन


कतेक जतन करि निर्मल मन लेल

मनुआ तरसै तोहरे चरण लेल

इन्द्री वश सँ निकली कोना

माया मोह तजी हम कोना


सदन कसाई केर निर्मलता

पावन मनुआ अओर सहजता

पतित पावन छी अहाँ स्वामी

करू कृपा प्रभु अन्तर्यामी


माया मोह राग आ द्वेष

काया जनित व्यथा ई क्लेश

सबके मेटि करू कृपा विशेष

माँगय अहाँक शरण 'शुभेश'

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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