मंगलवार, 14 जुलाई 2015

जाने वो सुबह कब आएगी

जाने वो सुबह कब आएगी
जाने वो सुबह कब आएगी, जाने वो सुबह कब आएगी ।
इन सूनी—सूनी अंखियों को जाने कब तक तरपाएगी ।
कब बरसेंगी अधरों पे अधर, कब मिलन की प्यास बुझाएगी ।।
मेरे तन से जो उठती अगन, कुछ और नहीं तेरी माया ।
तेरे तन की वो मीठी छुअन, कब मिलेगी वो शीतल छाया ।।
वो हंसी ठिठोली मुसकाना ।
पलक उठाकर देखना यूं, फिर पलक झुकाकर शरमाना ।।
वो प्यार भरी तेरी बातें, छोटी करती लम्बी रातें ।
बरबस गालों को यूं चूमना ।
कभी चेहरे को यूं उठा—उठाकर, उंगली को अपने घुमा—घुमाकर ।
बातों से सपने बुनना ।।
मुझे याद बहुत ही आती है, तेरी याद सदा तरपाती है ।
देखेंगे जाने कब ये नयन, जो मन में बसी चंचल काया ।
तरपा तो पहले भी था बहुत, इतना न किसी ने तरपाया ।।
                                                                     ~~~शुभेश



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें