सोमवार, 13 जुलाई 2015

माँ

माता
सृष्टि की सबसे सुंदर रचना है माँ ।
मेरी माँ, प्यारी माँ, न्यारी माँ ।।
बाल रूपी अंकुर को अपने स्नेह की
छाया में जीवन देने वाली माँ ।
बच्चों के बचपन संवारने में अपनी रातों की नींद,
व दिन का चैन गंवाने वाली माँ ।।
प्रेम और स्नेह की बगिया मेें,
सद्गुणों का पाठ पढ़ाने वाली माँ ।
दीये की तरह खुद जलकर,
बच्चों का भविष्य रोशन करती माँ ।।
पर ये बच्चे क्या कर रहे हैं ।
आईये देखें वो क्या कह रहे हैं ।।
माँ मैं अब बड़ा हो गया हूं ।
अपने पांवो पर खड़ा हो गया हूं ।।
माँ के स्नहे को अब वे बीवी के प्यार से तौलते हैं ।
दो जरूरी बातें भी माँ बहू से कहे तो उनके खून खौलते हैं ।।
अब उन्हें माँ का स्नेह जायका फीका लगता है ।
माँ की मधुर आवाज भी शोर तीखा लगता है ।।
माँ तू क्या दिन भर बक—बक करती है ।
मेरी बीवी खुले विचारों वाली है,
उसे क्यों हर बात पर टोका करती है ।।
माँ कहती है — हां बेटा मैं तो पुराने खयालों वाली
ये तो नया जमाना है ।
माँ समझा करो तू आज है कल नहीं,
पर बीवी के साथ तो आगे तक जाना है ।।
बेटों की करतूतें देख बहुत शरम—सी आती है ।
जिस माँ ने अकेले चार—चार बेटों को पाला,
उन चारों से एक अकेली माँ पाली नहीं जाती है ।।
                                                        ~~~ शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

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