मैं भारतवासी हूं..........
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।ये तो वो भारत—भुमि नहीं, जहां राम,कृष्ण ने राज्य किया ।
पापियों का संहार किया और जनजीवन को आबाद किया ।।
चन्द्रगुप्त और महाराणा प्रताप की कथा लगे सपनों जैसी ।
सब लगे हैं स्वार्थ—सिद्धि में, परोपकार और ईमानदारी कैसी ।।
सांसदों की बात न पूछें, बस इनकी करतूतें देंखे ।
हर मामले पर डाल अड़ंगा, शुरू कर दें मार—पीट और दंगा ।।
सांसदों की करनी सुनकर, हर कोई ये शरम से कहता ।
क्या ये संसद है, यहीं कानून है बनता ...........?
आज यहां नंदीग्राम की घटनाओं का बोलबाला है ।
औद्योगिकरण और विकास के नाम पर होता बड़ा घोटाला है ।।
सरकार भ्रष्ट, व्यभिचार पुष्ट,
जनता है त्रस्त, कहे किससे कष्ट ।।
पाठकों आप करें स्पष्ट,
मैं फिर से वही प्रश्न करूं,...................
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।
~~~ शुभेश
(वर्ष 2007 में तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर रचित)
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)
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