पिता
बचपन से मैने देखा उन्हें,दु:ख झेलते हुए हमारे लिए ।
जीना क्या है भूल गए वो,
जीया है उन्होंने हमारे लिए ।।
खुद के तन की न कोई फिकर,
न दु:खी देख सकते हमें पल भर ।
हमारी दु:खों पर वो रोए बहुत,
है देखा उन्हें हर पीड़ा हमारी समेटे हुए ।।
हमें चाहिए थी नई शर्ट, नए पैंट,
जूते वो भी तसमें लगे हुए ।
दिया उन्होंने वो सब कुछ हमें,
पर देखा उन्हें एक चप्पल को वर्षों घिसते हुए ।।
बड़ी मेहनत से उन्होंने पढ़ाया हमें,
कुछ करूं इस लायक बनाया हमें ।
देखा है मैनें मेरी हर—इक खुशी में,
मुझ से भी अधिक खुश होते हुए ।।
जीवन का हर पल ऋणी है तेरा,
बिन तेरे कुछ नहीं कुछ नहीं है मेरा ।
इस जमीं पर कहीं पर अगर जो खुदा है
वो पिता है, पिता है, पिता है, पिता है ।।
~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)
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