प्रभु मोहि अटल भक्ति दीजै
प्रभु दीन दयाल दया कीजै ।मेरे सब अपराध क्षमा कीजै ।।
इस जग माया में जब मैं आया,
आतम ज्ञान सकल बिसराया ।
ठगिनी माया चाप चढ़ाई,
लोभ मोह की बाण चलाई ।
जीव में प्रकट कीन्ह अभिमाना,
फंसि गए लाखों संत सुजाना ।
हे प्रभु मैं तो जड़मति बालक,
तुम ही रक्षक तुम प्रतिपालक ।
माया मोह दिन—रात सतावै,
लोभ—क्रोध की अग्नि जलावै ।
तव चिन्तन में मन नहिं लागै,
मन नहिं थिरै न चित ठहरावै ।
हे प्रभु कोई जतन कीजै,
अब मोहि अपने शरण लीजै ।
नित नाम सुमिरूं शक्ति दीजै ।
प्रभु मोहि अटल भक्ति दीजै ।।
प्रभु दीन दयाल ...........................
मेरे सब अपराध ...........................
~~~शुभेश
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