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रविवार, 5 अगस्त 2018

बड़की दादी - गुरू मॉं

4:54:00 pm
बड़की दादी
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सहज शांत तेजोमयी सूरत ।
ममतामयी जगदम्बा की मूरत ।।
निर्मल ह्रदय, करूणामय दृष्टि ।
अविरल स्नेह से सींचत सृष्टि ।।

गुरू मॉं की तो छवि है ऐसी ।
स्वयं विराजे गुरूवर जैसी ।।
साहेब बन्दगी चरण कमल में ।
श्रद्धा—भाव हैं सजल नयन में ।।

तुम सम कौन कहूं उपकारी ।
जो आवे कुटिया दु​:खियारी ।।
मातृत्व स्नेह की बारिश करती ।
पल में उनकी पीड़ा हरती ।।

गुरूवर के साधना—पथ की तुम,
अविचल औ निर्भीक संगिनी ।
दया—धरम का पाठ पढ़ाती,
भव—भय दूर कराती जन की ।।

माई साहब, बड़की काकी और बड़की दादी,
केवल नाम नहीं श्रद्धा है ।
कोटि—कोटि वंदन चरणों में,
जन—जन की पावन आस्था है ।।

शुभेश करतु हैं बंदगी,
बिनवौं बारम्बार ।
बड़की दादी दया करो
विनती करो स्वीकार ।।

रविवार, 22 जुलाई 2018

मालिक बाबा

1:26:00 pm
मालिक बाबा
(परम पूज्य बौआ साहब जू)

malik-baba-baua-saheb

'मालिक बाबा' बचपन में यह नाम सुनते ही रोमांच भर जाता था। अभी भी इस नाम—मात्र से एक विलक्षण उर्वरा शक्ति का विकास हो जाता है।
मुझे आज भी बचपन की वो घटना याद है जब मैं लगभग साढ़े तीन वर्ष का था। इतनी छोटी उम्र में घटित घटना ने मेरे मन—मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला था कि वो हमेशा कल की बात लगती है।
मॉं उस समय बहुत बीमार थी। वह सुध—बुध खोकर बिस्तर पर पड़ी थी। दादी, पापा सब ने बताया कि मॉं बीमार है, भगवान से बोलो वो तुम्हारी मॉं को ठीक कर देंगे। मैं उस समय भगवान शब्द से भी अनजान था। घर में मॉं के बिस्तर के पास ही मालिक बाबा की तस्वीर लगी थी। मै। वहां जाकर खड़ा हो गया और निश्छल भाव से मालिक बाबा को सम्बोधित कर कहने लगा— '' हे मालिक बाबा हमर मॉं के सब दु:ख दूर करियौ ओकरा ठीक क' दियौ।'' और मेरी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। तभी मॉं ने आवाज लगायी— ''हां देखै ने हम ठीक छियै, बाबा तोहर बात सुनि लेलखुन— हम ठीक भ' गेलियौ।'' उनकी आंखों से भी अश्रु—धारा प्रवाहित हो रही थी।
 आज भी वो निश्छल प्रेम को याद करता हूं और ज्ञानेन्द्रियों के जाल से मुक्त होकर उसी भाव में बहकर अपने आराध्य सद्गुरू की आराधना करना चाहता हूं। परंतु इनकी शक्ति और माया का कोई पार नहीं है। जब कभी परिवार में कोई परेशानी होती, हम दौड़ कर मालिक बाबा के पास पहुंच जाते। हमें पूर्ण विश्वास था कि वो उसका हल जरूर निकालेंगे और सदैव ऐसा ही होता था।

दादी के अनन्य प्रयास, हमारे प्रति अगाध प्रेम तथा मालिक बाबा में पूर्ण विश्वास के फलस्वरूप वो सुखद घड़ी भी आ गई जब अल्पायु में ही मुझे सभी बांधवों सहित अपने परम आदरणीय मालिक बाबा के और निकट होकर उनके शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अब वे हमारे मालिक बाबा के साथ—साथ परम श्रद्धेय पूज्य सद्गुरूदेव भी थे।
 किसी भी आकुलता के समय उनकी कुटिया पर पहुंचकर शांति मिल जाती थी। मैं थोड़ा संकोची प्रवृति का व्यक्ति हूं। इसलिए कई बार मैं अपनी आकुलता में कुटिया पर चला तो जाता था परंतु वहां सबों के सामने कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन मालिक बाबा के दर्शन मात्र से ही आकुलता शांत हो जाती थी। उनकी शीतल वाणी तो अंतरतम को शीतल कर देती थी। दरभंगा में भी जब कभी बाबा कहीं आते थे तो हम लोग भागकर उनकी बंदगी करने जाते थे और उस दिन को धन्य मानते थे कि आज उनके दर्शन हुए।
 एक और बाल सुलभ घटना स्मरण हो रही है जिसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जाता। बचपन में परीक्षा के समय प्रत्येक बच्चों में परिणाम को लेकर आशंका/भय व्याप्त रहता है। इसलिए कई साथी भगवान के आगे घरों में अथवा मन्दिरों में परीक्षा में लिखने वाले पेन/कलम को रख देते थे और उसी कलम से परीक्षा में लिखते थे, इस से उनमें परिणाम को झेलने की शक्ति मिलती थी। (ऐसा उस समय मेरे जैसे कई छात्रों का विचार था) मेरी भी बोर्ड की परीक्षा थी। मैं भी बेहतर परिणाम की अभिलाषा में मालिक बाबा से आशीर्वाद लेने पहुंचा(हमारे लिए एकमात्र सब कुछ हमारे मालिक बाबा थे/हैं)। मैं साथ में एक नहीं दो—दो नई कलम ले गया था। कुटिया पर पहुंच कर बाबा को बंदगी की। बाबा ने कुशल—क्षेम पूछा और तत्पश्चात भोजन ग्रहण करने को कहा। मैं संकोचवश कुछ बोल नहीं पा रहा था और वहां से भोजन के लिए हट भी नहीं पा रहा था। बाबा ने पूछा क्या बात है और अपनी समस्या बताने के लिए कहा। आखिरकार मैंने अपनी संकोच को दूर कर बोला — '' बाबा अपनेक आशीर्वाद लेब' आयल छी, मैट्रिक के परीक्षा छै।'' और एक पेन निकालकर आगे कर दिया। बाबा पहले हंसे, फिर बोले— ''देखू बौआ बिनु पढने जौं सब आशीषे सं' पास भ' जेतै त अपने सोचियौ कतेक अकर्मण्यता आबि जेतै। अहि लेल पढ़ाई त बहुत जरूरी छै। मन लगा क पढू अवश्य पास होयब।'' मैं थोड़ा निराश होने लगा। फिर बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथ से कलम ले लिए और मेरे दायें हाथ पर उससे भगवत् नाम लिखने लगे। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने झट दूसरा पेन भी आगे कर दिया और बोला—''बाबा कहीं बीच में ही पेन खत्म भ' गेलै त, तैं इहो पेन पर कृपा करियौ।'' बाबा हंसते हुए उस पेन से भी  मेरी हथेली पर लिखने लगे। फिर उन्होंने अत्यंत कृपा की जिसे याद कर आज भी शरीर रोमांचित हो उठता है। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे मस्तिष्क पर रख दिया। आशीर्वाद का ऐसा अनुग्रह पहले कभी नहीं प्राप्त हुआ था, मैं अभिभूत हो उठा।

अवतार जिस गुरूदेव का युगधर्म ले होता सदा।।
उस महामानव के लिए दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा।।
हे नाथ जग में प्रकट हों तव संत की शुभ आत्मा।
जो कलह—दु:ख—कुविचार का जग से करें नित् खात्मा।।
संत रूप भगवान,
            प्रकटे जग में सर्वदा।
दे सबको शुभ ज्ञान,
            करैं सुखी संसार को।।
                            (सद्गुरूदेव द्वारा रचित प्रार्थना से)
अनेकों ऐसी छोटी—बड़ी घटनाएं हैं जो हमें निश्चिंत करती थी कि हमारे साथ हमारे मालिक स्वयं मालिक बाबा हैं। हमारी सभी दु:खों/समस्याओं का हल निकालने वाले, हम पर कृपा करने वाले साक्षात प्रभु।
 मालिक बाबा के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि आज भरवाड़ा कबीर आश्रम में होने वाले इतने विशाल वार्षिक भण्डारा के शुरूआती वर्षों में बाबा उसके आयोजन के लिए पूरे वर्ष तक प्रतिदिन अपने एक समय के भोजन बचाकर रखते थे ​ताकि भण्डारा में कोई भी संत द्वार से भूखे न लौटें। सभी दीन—दु​:खियों की सेवा में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उस समय लोगों के पास इलाज के लिए न धन होता था और न ही कोई सुविधा थी। उन्होंने अपने विलक्षण जड़ी—बूटी के ज्ञान का उपयोग कर लोगों की नि:शुल्क/नि:स्वार्थ सेवा देना प्रारम्भ किया और पूरे लगन से दीन—दु:खियों की सेवा में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

मैं जब अपनी नौकरी लगने की सूचना देने उनके पास गया तो वे अत्यंत हर्षित हुए। फिर जम्मू जैसे आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग की बात बतलाई तो उन्होंने भगवत सुमिरन की सलाह दी और सब कुछ भगवान पर छोड़ने को कहा। उस समय मुझे यह कतई भान नहीं था कि यह मेरी उनसे अंतिम भेंट होगी। मैं जब जम्मू जाने की तैयारी कर रहा था तो दिल्ली में उनके अत्यंत अस्वस्थ होने की सूचना मिली। मन व्याकुल हो गया और आकुलता में मैंने अपने मालिक बाबा के स्वास्थ्य लाभ हेतु विनती लिखी—

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

परंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2009 के आखिर में वो सबसे दु:खद दिन भी आया। उन दिनों में मैं अपनी सेवा के प्रारम्भिक दौर में जम्मू में था। पापा का फोन आया, वो बोले— ''हम सब अनाथ भ' गेलौं, मालिक बाबा नै रहलाह।'' शरीर सुन्न पड़ गया। मालिक बाबा ​के बिना हमलोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। सचमुच हम अनाथ हो गये।
    हे परम पूज्य श्रद्धेय मालिक बाबा हम आज भी आपके बताये राह पर चलने का प्रयास करते हैं। प्रयास इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि कभी—कभी उलझनें, बाधाएं, समस्याएं इतनी कमर तोड़ देती है कि राह से भटकने लगता हूं। अंधविश्वासी भी बन जाता हूं। मालिक बाबा आपके बिन हम सचमुच अनाथ हैं। अपने हिसाब से सबकुछ अच्छा करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। भगवत् भजन के लिए मिलने वाले हर मौके पर सदैव उन परम् पुरूष परमात्मा के निराकार स्वरूप का ध्यान करते हैं, जिसका भेद आपके साकार रूप ने कराया था। फिर भी बाधा—विघ्न रूपी दीवार नहीं टूटती, जिन्दगी उलझती चली जाती है। मन अशांत होकर अंधविश्वासी बना देता है। यहां—वहां सबको प्रणाम करते हुए सबसे पागलों की तरह क्षमा—याचना करता रहता हूं। उन राहों को जिनके बारे में कभी आपने बताया था कि वो सब व्यर्थ हैं, केवल परमात्मा का भजन और कर्म ही सब कुछ है, पर अनायास ही चल पड़ता हूं। हे परम पूज्य मालिक बाबा हमें शक्ति प्रदान कीजिए की हम परमात्मा के मार्ग पर दृढ़ होकर प्रगतिशील रहें।
हे परम पूज्य गुरूदेव जू, हम अनाथ पर दया कीजै।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै,
प्रभु मोहि​ अपने शरण लीजै।।

    शुभेश   
सप्रेम साहेब बन्दगी—3

मंगलवार, 17 जुलाई 2018

बचपन

10:57:00 pm
बचपन

स्वप्निल नैन निहारत रे मन,
कहाँ खो गया वो बचपन
वो बचपन जो बेफ़िकरा
सर्वत्र प्रेम बिखरा बिखरा
करम धरम का भान नहीं
मन मे कोई गुमान नहीं
बन पंछी उड़ता रहता
परीलोक जाकर बसता
सब से प्रीत सभी कोई मीता
सुंदर सहज भाव नहीं रीता
सहज प्रेम घट भीतर था
तन हो न, मन निर्मल था
निर्मल घट में राम थे बसते
हल्की सी मुस्कान से सजते
शुभेश कितनी सहज कितनी सुन्दर,
वो दुनिया थी अधिकार कर्तव्य से जुदा जुदा।
मन्दिर-मस्जिद मन में नहीं
एक ही लेखे राम खुदा।।

शनिवार, 14 जुलाई 2018

यौ भगवान - O My Lord - हे भगवान

3:46:00 pm
यौ भगवान

shubhesh
यौ भगवान, यौ भगवान
किया बनेलौं हमरा,ई नइ जानि
यौ भगवान..............

हम अज्ञानी, अवगुणक निशानी
अपन बुराई हम कतेक बखानी'
हमरा सन दु​र्बुद्धि नै कोनो सन्तान ।
यौ भगवान.................

सर्व दु:खदायी, कष्ट सहायी
अमंगलकारी आ प्रेम भिखारी
हमरा सन साजन नै सगरो जहान ।।
यौ भगवान.................

हम लोभी अति तामसी ढोंगी
जिद्दी, क्रोधी, दिखावटी जोगी
हमरा सन भ्राता—मित्र नै कोनो बेकाम ।।
यौ भगवान.................

हमरा सं' केकरो जे उपकार होइतै
हमरो कारण जे केओ खुश भ' जैतै
हमरो पाबि सब धन्य कहाबै
तखन ने 'शुभेश' बुझता जे हमहूं इन्सान ।।
यौ भगवान.................

रविवार, 29 अप्रैल 2018

जीवन की डगर

10:33:00 am
जीवन की डगर
वो पहला क्रन्दन, फिर चुप हो मुसकाना ।
धीरे से पलकें उठाना, 
मानो कलियों की पंखुड़ियों का खुलना ।।
फिर वो बाल-हठ, चपलता, 
शैशव से आगे बढ़ती उमर ।
फिर पढाई-लिखाई, कुछ करने की चाहत भरा वो जिगर ।।
अल्हड़ जवानी में पहला कदम,
किशोर मन की दुविधा भरी वो डगर ।
इस सफर में मिली जब वो इक हमसफ़र,
फिर प्रेम के पथ की वो अल्हड़ डगर ।।
फिर गृहस्थी की आई नई सी डगर,
हर डगर के मुहाने पर बस इक डगर ।
न उधर, न इधर, न कहीं फिर किधर,
न अगर, न मगर बस डगर ही डगर ।।
बस चलना है, चलते जाना है, रुकना नहीं ये कहती डगर ।
'शुभेश' ठहराव का तो कोई नहीं है जिकर ।।
हाँ इक शांति, अनंत शांति का है अवसर ।
मगर फिर बची ही कहाँ है डगर ।।

सोमवार, 18 सितंबर 2017

मेरे राम

12:26:00 am
मेरे राम
मेरा राम न जन्‍म है धरता,
हर घट भीतर में वो बसता ।
                                    मैं नहीं पूजूं उनको भाई,
                                    जो रावण से लड़े लड़ाई ।
मेरे राम को प्रेम सभी से,
मिलते सहज भाव सब ही से ।।
                                     मैं ना ढूंढू मन्दिर-मस्जिद,
                                     ना गिरिजा ना कोई शिवालय ।
मन के भीतर ही मैं झांकू,
निर्मल-मन-चित्‍त है देवालय।।
                                      राम नहीं मन्दिर में रहते,
                                      बच्‍चों की मुस्‍कान में बसते ।
बच्‍चों सा निर्मल बन जाओ,
राम को अपने सम्‍मुख पाओ ।।
                                       निराकार स्‍वरूप है उनका,
                                       सत्‍य नाम हैं सब ही उनका ।

                   राम चरण गहि कहें ‘शुभेश’,
                   करहुं दया नहिं व्‍यापे क्‍लेश ।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

जिन्दगी

10:18:00 am
-:: जिन्दगी ::-

अपना भविष्य सँवारने के खेल में,
वर्तमान दाँव पर लगा रहे हम ।
दो पल की खुशी की खातिर,
हर पल का चैन गंवा रहे हम ।।

सुकून से मिले दो वक्त की रोटी,
इसलिए परोस कर रखी थाली ठुकरा रहे हम ।
बच्ची को मिले हर वो सुकून, 
जिसकी चाहत थी मुझको,
इसलिए उसके संग बच्चा बन, 
वो मासूम बचपन नहीं जी पा रहे हम ।।

खुद को आशीर्वाद देने लायक, 
सामर्थ्यवान बनाने की कोशिश में,
मातृ—पितृ व श्रेष्ठ जनों के आशीष को, 
प्राप्त नहीं कर पा रहे हम ।
स्नेह की बारिश करने की जुगत में, 
अनुजों—प्रियजनों को स्नेह नहीं दे पा रहे हम ।।

जीवन—संगिनी को हर खुशी देने और 
उनके साथ भविष्य में सुख—लहरियां लेने के प्रयास में,
उनके वर्तमान को नजर अंदाज कर रहे हम ।।

तुझे बेहतर बनाने की कोशिश में 'शुभेश',
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम ।
हाँ माफ करना मुझे ऐ जिन्दगी, 
तुझे जी नहीं पा रहे हम ।।
                             ~~~ शुभेश

बुधवार, 17 अगस्त 2016

सुन रे मानव अब तो संभलो

3:30:00 pm
अब तो संभलो

सुन रे मानव अब तो संभलो, मत प्रकृति से खिलवाड़ करो।
तुम हो कर्ता की उत्तम रचना, मत वनों का संहार करो।।

जिस कर्ता ने तुझे संवारा,
लोभ के वश हो उसे उजारा।
                         जीवनदायिनी पेड़ उखारे,
                         छिन्न—भिन्न कर दिये नजारे।।

जो तेरा है जीवन—रक्षक, जिस वायु से होते पोषित।
बड़े—बड़े उद्योग लगाकर, उस वायु को किया प्रदुषित।।

पर्वत को भी नहीं है छोड़ा,
यहां वहां हर जगह से तोड़ा।
                            वन उजाड़े और नदी को बांधा,
                            प्रकृति की हर सीमा को लांघा।।

जिसने ये संसार बनाया,
जीवन—ज्योति धरा पर लाया।
                           कृत्य भला ये कैसे सहता,
                           मूक—बधिर सा कब तक रहता।।

अति दोहन से जल स्रोत सुखाये,
बूंद—बूंद को जी तरसाये।
                          कहीं बाढ़—रूपी आयी विपदा,
                          और कहीं है बादल फटता।।

कहीं बाढ़ है, कहीं सूखाड़,
चहूं ओर मचा है हाहाकार।
                          चेत—चेत अब भी 'शुभेश',
                          बस पेड़ लगा और पेड़ लगा, वरन् नहीं बचेगा कुछ भी शेष।।

''प्रकृति के अंधाधूंध दोहन की यह परिणति है।
पेड़ बचाओ, हरियाली लाओ, तभी हमारी होगी सद्गति है।''
                                                             ............शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

रविवार, 12 जून 2016

हे भगवान अहां महान

6:52:00 pm
हे भगवान अहां महान ।
करू कृपा यौ कृपानिधान ।।

छोट—छिन हम बुद्धि—बल हीन
अहांक महिमा सं' अनजान ।
ज्ञानक दीप जगा दियअ भगवन
बनि जाए जिनगी स्वर्ग समान ।।

सब बाधा के काटि सकी हम
तानि कै बुद्धिक तीर कमान ।
प्रगतिक राह पर बढैत चली हम
पाबि क' अहांक कृपा महान ।।

दोष हमर सब माफ करू अहां
हम अज्ञानी आ नादान ।
प्रेमक बरखा में नहा दियअ भगवन
बुझि के 'शुचि' कै निज संतान ।।

करू कृपा यौ कृपानिधान ।।
हे भगवान ............
करू कृपा...........
                              .......शुभेश

रविवार, 29 मई 2016

हे दीन दयाल दया कीजै

12:50:00 pm
हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।
                                      .....शुभेश
(परम पूज्य गुरूदेव के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रभु से विनती हेतु नवम्बर,2009 में रचित)

गुरू की वाणी अमृत जैसा

12:37:00 pm
गुरू की वाणी अमृत जैसा
Gurudev+ki+vani
गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।
गुरू की वाणी...............

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।

जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।

गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।

गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।
                            .....शिवेश

सतगुरू की महिमा

11:55:00 am
सतगुरू की महिमा

Param+Pujya+Gurudev+Shriyut+Baua+Saheb

अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ...............................................
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा.......................................
                                                                     .....शिवेश

रविवार, 8 मई 2016

सुख-दु:ख

10:44:00 am
ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है
सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

बिना धूप के छाँव का आस्तित्व ही क्या
अंधियारे के बिना उजाले का महत्व ही क्या
गोरे हैं तब ही जब काले हैं
कहीं उदासी है फिर तब चित्त मतवाले हैं

जब जग में सब सुन्दर ही होते
कोई सुन्दर नहीं कहीं पर होते फिर
क्या होता जब दिवस—दिवस ही रहता केवल
नहीं अंधियारी रैना की क्या कोई जरूरत?

है कुरूपता से परिभाषा सुन्दर की
भेद यहीं से मिलता है नारी—नर की
ज्यों अपंगता है जग में तन सुन्दर है
कहीं खुरदुरे श्यामल चेहरे, कहीं पर छवि मनोहर है

कहीं लालच है, कामुकता है, फिर कहीं ईमानदारी है, वैराग्य है
कहीं निर्धनता है, व्याधि है, तो कहीं अमीरी है, आरोग्य है

यदि है क्रोधी कोई मोही, तब ही शांत चित्त निर्मोही
अन्याय नहीं फिर न्याय ही कैसा, जैसे पुण्य पाप बिनु वैसा

अरे भगवान के आस्तित्व के लिए भी, शैतान का होना बहुत जरूरी है
इसलिए ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है, सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

जो आज दु:खी है, कल सुखी भी होगा
तम का सीना फाड़ सूरज निकलेगा
तुम यत्न किन्तु बस इतना करना
नित कर्म किए जा और ईश चरण में ध्यान तुम धरना

फिर 'शुभेश' सुख ही सुख का, रहेगा तेरे घर डेरा
नहीं मिलेगी निशि अंधियारी, नहीं व्यापेगा तुझको कष्ट घनेरा
                                                                      .....शुभेश 

निवेदन

10:02:00 am
मात—पिता से बढ़कर, संसार में कोई और नहीं है
ठुकरा दे गर, सारी दुनियां, सं​तति पाती ठौर यहीं है ।
उनकी पूजा से बढ़कर कोई धर्म नहीं
हां उनकी सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं ।
जिसने सींचा नौ मास निज रक्त से मुझे
है कोशिश दे सकूं, खुशी के कुछ वक्त उन्हें ।
जिनका नाम ले बढ़ा जग में
निज पहचान है दिया जिन्होंने
जी चाहे कुछ कर गुजरूं उनकी खुशी के लिए ।
चाहूं तो भी उऋण हो सकता नहीं,
इसलिए प्रभु से मांग रहा यह वर
हर जनम में तेरी संतान बनूंगा
कितना भी बल बुद्धि हीन रहूं, फिर भी मैं सच्चा इंसान रहूंगा ।

हे भगवान इतनी कृपा और करो प्रभु
रखूं सुखी दूं हर खुशी उसे ।
जिसने निज मात—पिता का घर छोड़ा मेरी खातिर
कियें है जाने त्याग कई, बस मेरी खातिर ।
उसको भी तो मात—पिता होंगे प्रिय
शायद मुझसे अधिक ही चाहत हो उनकी ।
फिर भी रीति—रिवाजों कारण,
सब छोड़ मेरे संग है आई ।
इसलिए मुझ पर मुझसे भी अधिक
उसकी ही है प्रभुताई ।
दु:ख उनके बांट नहीं सकता मैं
हां खुशियों से झोली भर सकता मैं ।

हे प्रभु दो इतना आत्मबल, सम्बल मुझको
पुत्र और पति धर्म दोनों का भ​ली—भांति पालन करूं ।
सुख—चैन से भर दूं मात—पिता का हर इक क्षण
और खुशियों भरा कर दूं, सबका जीवन ।
                                                       ........शुभेश

शनिवार, 7 मई 2016

भूख

9:21:00 pm
मामा जी, मामा जी यो, हमरा लगि गेल भूख ।
हमरा लेल पेड़ा—बिस्कुट आनू, चाहे खोआ—तिलकुट आनू ।
जल्दी से आनू सेबक जूस, जल्दी से आनू दूध ।।
मामा जी, मामा जी यो....................

दालि चाउर लै खिचड़ी बनाबू, चाहे दूध दै खीर बनाबू ।
नूने—अनून स​ब किछु खा लेब, कांचो—कोचिल सेहो पचा लेब ।।
बड जोड़ लगि गेल भूख ।
मामा जी, मामा जी यो....................

नै किछु बनत त' सेहो बता दिय'
हमरा माय के अहां, बजा दिय'
हम त पी लेब दूध, आब बड जोड़ लगि गेल भूख ।।
मामा जी, मामा जी यो....................
                          ........शुभेश
 (​अपनी पुत्री सुश्री शुचि को समर्पित मैथिली बाल रचना)

तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा

6:28:00 pm
हे ​प्रियतमा, शुभ्रे! तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा ।
मैं अनुगामी नहीं बनाता हूं तुझको, पर हे प्रिये तुझे सहचरी तो बनना होगा ।।

पथ में चाहे जितने कंटक आए, मैं चल लूंगा हंसकर ।
तू फूल भरी राहों पर हीं ज्यों चल मेरे हाथ पकड़कर ।।
मैं दु:ख—संताप की ज्वाला को पी लूंगा।
पर तुझको भी इसकी थोड़ी आंच सहन करना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .....................

श्रेष्ठजनों की बात को न तुम दिल पर लेना ।
होगी गूढ़ भलाई कोई, बात सहज मान लेना ।।
मातु—पिता नहिं चाहे संतति का अहित
हो सकता भिन्न तरीका, उनके प्यार जताने का ।

औरों की बहकी बात से हमें क्या लेना,
हम दोनों का साथ है जब, क्या कर लेंगी बावरी दुनियांं ।
हो सकता हैं लोग करें तुझ पर वाणी से शस्त्र प्रहार बहुत,
कटुक वचन से ह्रदय छलनी होगा, पर हे प्रिय तुम न धीरज खोना ।

ये ​दुनिया है बड़बोलों की, बड़बोलों की है ये दुनिया
तुमको उनकी बातों पर कान नहीं धरना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .............................
                                                           .......शुभेश

अपरंपार दयालु भगवन

5:44:00 pm
हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश

सोमवार, 13 जुलाई 2015

माँ

2:53:00 pm
माता
सृष्टि की सबसे सुंदर रचना है माँ ।
मेरी माँ, प्यारी माँ, न्यारी माँ ।।
बाल रूपी अंकुर को अपने स्नेह की
छाया में जीवन देने वाली माँ ।
बच्चों के बचपन संवारने में अपनी रातों की नींद,
व दिन का चैन गंवाने वाली माँ ।।
प्रेम और स्नेह की बगिया मेें,
सद्गुणों का पाठ पढ़ाने वाली माँ ।
दीये की तरह खुद जलकर,
बच्चों का भविष्य रोशन करती माँ ।।
पर ये बच्चे क्या कर रहे हैं ।
आईये देखें वो क्या कह रहे हैं ।।
माँ मैं अब बड़ा हो गया हूं ।
अपने पांवो पर खड़ा हो गया हूं ।।
माँ के स्नहे को अब वे बीवी के प्यार से तौलते हैं ।
दो जरूरी बातें भी माँ बहू से कहे तो उनके खून खौलते हैं ।।
अब उन्हें माँ का स्नेह जायका फीका लगता है ।
माँ की मधुर आवाज भी शोर तीखा लगता है ।।
माँ तू क्या दिन भर बक—बक करती है ।
मेरी बीवी खुले विचारों वाली है,
उसे क्यों हर बात पर टोका करती है ।।
माँ कहती है — हां बेटा मैं तो पुराने खयालों वाली
ये तो नया जमाना है ।
माँ समझा करो तू आज है कल नहीं,
पर बीवी के साथ तो आगे तक जाना है ।।
बेटों की करतूतें देख बहुत शरम—सी आती है ।
जिस माँ ने अकेले चार—चार बेटों को पाला,
उन चारों से एक अकेली माँ पाली नहीं जाती है ।।
                                                        ~~~ शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

पिता

2:27:00 pm
पिता
बचपन से मैने देखा उन्हें,
दु:ख झेलते हुए हमारे लिए ।
जीना क्या है भूल गए वो,
जीया है उन्होंने हमारे लिए ।।

खुद के तन की न कोई फिकर,
न दु:खी देख सकते हमें पल भर ।
हमारी दु:खों पर वो रोए बहुत,
है देखा उन्हें हर पीड़ा हमारी समेटे हुए ।।

हमें चाहिए थी नई शर्ट, नए पैंट,
जूते वो भी तसमें लगे हुए ।
दिया उन्होंने वो सब कुछ हमें,
पर देखा उन्हें एक चप्पल को वर्षों घिसते हुए ।।

बड़ी मेहनत से उन्होंने पढ़ाया हमें,
कुछ करूं इस लायक बनाया हमें ।
देखा है मैनें मेरी हर—इक खुशी में,
मुझ से भी अधिक खुश होते हुए ।।

जीवन का हर पल ऋणी है तेरा,
बिन तेरे कुछ नहीं कुछ नहीं है मेरा ।
इस जमीं पर कहीं पर अगर जो खुदा है
वो पिता है, पिता है, पिता है, पिता है ।।
                                          ~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)