परम पूज्य सद्गुरूदेव श्रीयुत् बौआ साहब जू का पावन अवतरण दिवस
Shubhesh Kumar
8:54:00 am
परम पूज्य सद्गुरूदेव श्रीयुत् बौआ साहब जू के पावन अवतरण दिवस पर सबों को सप्रेम साहेब बन्दगी
प्रात: स्मरणीय परम पूज्य सद्गुरूदेव श्रीयुत् बौआ साहब जू के पावन अवतरण दिवस पर उनके श्री चरणों में साहेब बन्दगी —3.
आज ही के दिन वर्ष 1926 में सद्गुरूदेव जू ने मिथिला क्षेत्र में दरभंगा शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर भरवाड़ा ग्राम में परम पूज्य श्री गिरिवर लाल जू जो मिर्चाई लाल के नाम से विख्यात थे, के घर जन्म लिया था।
मिथिला क्षेत्र में संत कबीर साहेब के सदुपदेशों को जन—जन तक पहुंचाने का पावन कार्य उन्होंने हीं प्रारम्भ किया था। श्रीयुत् बौआ साहब जू ने उनके इस पावन कार्य को सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रसारित करने और दीन—दु:खियों की सेवा करने में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
उनका आकर्षक व्यक्तित्व व अंतरतम को शीतल कर देने वाली तेजस्वी वाणी सभी का मन मोह लेती थी। अनायास ही सभी उनकी ओर खिंचे चले आते थे। अनुज श्री शिवेश की रचना उनके व्यक्तित्व का सजीव चित्रण आंखों के सामने प्रस्तुत करती है —
अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू .................
भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ................
हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ................
(शिवेश)
सचमुच हम उनके वचनामृत सुनकर स्वयं को धन्य मानते थे। आज भी उनके शब्दों की प्रतिध्वनि कानों में गूंजती रहती है। अनकों जन्मों के सुकृत्य का ही फल होगा कि इस जन्म में उनसे साक्षात्कार हुआ। परम प्रभु की कृपा का क्या बखान करूं उन्होंने न केवल उनके विशाल परिवार का अंग बनाया, साथ ही उनके शिष्य बनने का सौभाग्य भी प्रदान किया।
बचपन में स्कूल से वापसी में कई बार सीधे उनकी कुटिया पर चला आता था। उस समय हमारे बाल सुलभ प्रश्नोें के उत्तर देते हुए भी वो कई गूढ बातों को बड़ी सहजता से समझा देते थे। कुटिया में सद्गुरू कबीर साहेब की एक बड़ी तस्वीर रखी थी। सायंकाल में प्रार्थना के समय उस कमरे में बस एक दीप जलता रहता था। कोई फूल माला, प्रसाद, आरती कुछ भी नहीं। सब कोई प्रार्थना करते और अंत में एक—दूसरे को साहेब बन्दगी करते। कबीर साहेब की तस्वीर की पूजा न कर हमलोग बस प्रार्थना करते तब यह बात मेरे सामान्य दिमाग में नहीं बैठती थी। सामान्यतया मंदिरों में तस्वीर की ही पूजा होती थी। आस—पास हर जगह यही देखता परंतु कुटिया में ऐसा नहीं था। ऐसे ही एक दिन स्कूल से जब वापसी में कुटिया पहुंचा तो अपनी जिज्ञासा जाहिर कर दी कि इस तस्वीर में भगवान नहीं हैं क्या। बाबा ने समझाते हुए कहा तस्वीर में हीं क्यों हर जगह भगवान हैं। आपमें हममें निर्जीव सजीव सबमें भगवान हैं। फिर तस्वीर की पूजा क्यों नहीं करते, जैसे और मंदिरों में होता है। बाबा मुस्कुराते हुए उत्तर देते हैं कि जब हर जगह भगवान हैं तो केवल इस तस्वीर की ही पूजा क्यों। संसार का ऐसा कोई कण और क्षण नहीं जो भगवान से अलग हो। सर्वत्र भगवान विराजते हैं। आवश्यकता है तो उनको याद करने की पुकारने की। पूजा—पाठ और आडम्बर तो स्वयं को दिखाने के लिए है। उससे आप खुद को समझा सकते हैं कि आप भगवान को याद करते हैं। भगवान को समझाने के लिए तो हृदय की गहराईयों से पुकार निकलनी चाहिए। जब आप सच्चे मन से ध्यान करेंगे तब जहां हैं वहीं भगवान सम्मुख होंगे। इसलिए नियमित रूप से मन लगाकर प्रार्थना तो करनी ही चाहिए, बाह्य आडम्बरों की कोई आवश्यकता नहीं।
मैंने अभी अभी विज्ञान में पढा था कि जगदीश चन्द्र बसु जी ने खोज निकाला था कि पेड़—पौधों में भी जान होता है। तबसे हमारे साथियों ने जो कि सामिष भोजी थे, हमें चिढाना शुरू कर दिया था कि तुम तो नाम के शाकाहारी हो शाक—सब्जी में भी जान होता है अब क्या खाओगे। मैं परेशान, पापा से पूछा। पापा ने समझाया कि शाकाहारी मतलब शाक का आहार करने वाला अर्थात जो शाक सब्जी खाता हो। इसलिए हम सब शाकाहारी हैं। परंतु मैं पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ तो पापा बोले मालिक बाबा से ही पूछना वो ही समझाएंगे। फिर मैं दादी के साथ कुटिया पर पहुंचा। बाबा को बंदगी बजाने के बाद अपनी समस्या बतायी कि सब दोस्त हमको परेशान करता है। किताब में भी लिखा है और सर भी पढाये हैं, मैं उन्हें क्या जवाब दूं।
बाबा पहले मुस्कुराये फिर बोले कि बोलने वाले ऐसे ही बोलते हैं आप उनकी बातों पर मत जाओ। जो मांसाहार का त्याग नहीं कर सकते वो अनेक कुतर्क करेंगे, वे आप जैसा नहीं बन सकते इसलिए आपको चिढाते हैं, आप ध्यान मत दो।
मैं बोला— नहीं बाबा मुझे तो जवाब देना है। आप बताइये कि जब पेड़ पौधों में भी जान है तो हमलोग क्या खाएंगे।
बाबा बोले आप नहीं मानेंगे, तो सुनिये— भगवान ने सभी जीवों के लिए आहार निश्चित किया है और उसी के अनुरूप उसके शरीर का निर्माण किया है। हम सभी मनुष्य स्वभाव और शरीर से शाकाहारी हैं। मांसाहारी जंतुओं में एक विशेष दांत रदनक जो चीड़ने—फाड़ने का काम करता है वो पाया जाता है। मनुष्यों में यह नहीं होता। अर्थात हम सब शाकाहारी हैं। मनुष्य केवल अपनी जिह्वा के कारण मांसाहारी है और जीव हत्या का महापाप करता है। जहां तक शाक सब्जी में जान होने की बात है तो शाक सब्जी में जीवात्मा का स्वरूप सुसुप्तावस्था में रहता है। इसका स्वरूप ही ऐसा बनाया गया है।
कबीर साहेब कहते हैं कि दया राखि धरम को पाले, जग से रहे उदासी। अपना सा जी सबका जाने ताहि मिले अविनाशी।। अर्थात जो अपने समान ही सबको समझता है उसे ही ईश्वर मिलते हैं। अब आप स्वयं सोचिए कि जिनके दिल में दया होगी वह किसी की हत्या करेगा। जो अपने पुत्र के समान और जीव जंतुओं के पुत्रों को समझेगा तो जीवहत्या ही नहीं करेगा।
मैं परम पुरूष परमात्मा का हृदय की गहराईयों से आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने हमें परम पूज्य सद्गुरूदेव जू से मिलवाया। उनकी कृपा दृष्टि का क्या कहना। एक छोटा सा सजीव चित्रण प्रस्तुत करता हूं— पापा एक बार अत्यधिक अस्वस्थ हो गए। आंत में सूजन होने की शिकायत के कारण उन्हें दरभंगा में नर्सिंग होम में भर्ती होना पड़ा। बाबा उस समय सुबह—सुबह नर्सिंग होम में पापा से मिलने आए। उस समय पापा बेड पर ही दीवार के सहारे बैठे थे। उन्हें उठने—बैठने में दिक्कत हो रही थी। बाबा के आने पर हम सबने तो उनकी बंदगी कर ली, परंतु पापा उठ नहीं पा रहे थे। उनकी आंखों से आंसू बह निकले। उस समय कृपानिधान सद्गुरूदेव की असीम अनुकम्पा देखने को मिली। वो खड़े हो गए और अपना दायां पैर उठाकर पापा के हाथ के पास बढा दिया और पापा ने सहजता से बन्दगी कर ली। इस असीम अनुकम्पा से अभिभूत हो हम सबकी आंखों से अश्रुधार बह निकले।
मालिक बाबा की कृपा दृष्टि ही है कि इतनी कम उम्र में ही मेरी पुत्री सुश्री शुचि जिसे मैंने एक बार कभी समझाया था कि सब जगह भगवान होते हैं और सबमें भगवान होते हैं। इस बात को उसने इतनी गहराई से लिया कि सबको कहती फिरती है पता है तुममें भी भगवान है, हम में भी भगवान है वो सबकुछ देखते हैं। जब कुछ दिक्कत होता है उसे, बस हाथ जोड़कर भगवान को याद करने लगती है।
मालिक बाबा के सदुपदेशों को सदैव सामने रखकर मैं आचरण करने की कोशिश करता हूं और इस भवसागर में अपनी नैया को पार लगाने का प्रयास करता हूं। कभी कभी सोचता हूं कि मालिक बाबा का अनुग्रह नहीं प्राप्त हुआ होता तो पता नहीं इस भवसागर में कितनी बार अंधकूपों में भटक गया होता। परम पुरूष परमात्मा को कोटि—कोटि धन्यवाद।
नमन तुम्हें शत बार है गुरूवर, नमन तुम्हें शत बार है ।
पाप—पुण्य का भेद कराया,
दया धरम का मार्ग दिखाया ।
स्नेह भरा जो हाथ फिराया, कोटि—कोटि आभार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है......................
सत की नाव में मुझे बिठाया,
नाम रूपी पतवार थमाया ।
निराकार का भेद बताया, वो रूप तेरा साकार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है......................
क्रोध—लोभ को पास न लाना,
माया मोह से बच के रहना ।
माया ठगिनी बड़ी सयानी, तूने किया खबरदार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है......................
हम अज्ञानी इंद्रिय वश में,
बंधते जाते भव बंधन में ।
तूने ज्ञान की ज्योति जलाकर,
तन और मन दोनों धुलवाकर ।
आतम—राम का मिलन कराकर, किया बड़ा उपकार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है.....................
शुभेश विनवत बारम्बार है...................
नमन तुम्हें शत बार है.....................
साहेब बन्दगी!! साहेब बन्दगी!! साहेब बन्दगी!!