रविवार, 19 फ़रवरी 2017

मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

1:13:00 am
मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपे खबर को पढ़कर स्तब्ध रह गया। आज लोगों की मानवीय संवेदनाएं इस स्तर तक खत्म हो चुकी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कोलकाता के महानगरीय परिवेश और भाग—दौड़ भरी जिन्दगी के बीच एक 72 वर्षीय वृद्धा भीड़—भाड़ वाले पार्क में, जो कि उसके घर के सामने थी, में आत्मदाह कर लेती है और वहां मौजूद सारे लोग तमाशबीन बने देखते रह जाते हैं। किसी ने भी उसे बचाने का प्रयास नहीं किया। यह बहुत ही भयावह है। 
     बंगभूमि की राजधानी कोलकाता हमेशा से बुद्धिजीवियों का केन्द्र रही है। यहां से अनेक ऐसे महान समाज सुधारक उभरकर आए हैं जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी है। उसी कोलकाता में कभी ये दिन देखना पड़ेगा, यह कल्पना से परे था।
     आज हमारी संवेदनाएं फेसबुक और ट्वीटर तक सिमट कर रह गयी है। लोगों की सोच को मोबाईल और इन्टरनेट क्रांति ने कुंठित कर दिया है। आस—पास होने वाले घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने, उसे रोकने के लिए लोगों के पास वक्त नहीं है। डिजिटल क्रांति ने लोगों के बीच होने वाले सीधे सम्वाद/सम्पर्क को ह्वाट्सअप, फेसबुक और ट्वीटर तक सीमित कर दिया है। इसके दूरगामी प्रभाव अत्यंत भयावह होने वाले हैं। क्या आप ऐसे समाज की परिकल्पना कर सकते हैं, जिसमें समाज के किसी सदस्य को दूसरे से कोई सरोकार न हो, कदापि नहीं। आज हमें खासकर युवा वर्ग को आगे बढ़कर समाज को इस भयावह परिस्थिति से बचाना होगा। हम प्रकृति के बनाये सबसे बुद्धिमान व सुंदर रचना हैं। सामाजिक व्यवस्था का आधार ही उसके सदस्यों के बीच आपसी सामंजस्य और तालमेल है। यदि यह ही न रहा तो सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी।
     एक सजग व अच्छे सामाजिक सदस्य होने के नाते सबों का कर्तव्य है कि उपरोक्त घटना की पुनरावृति कदापि न हो। यथासम्भव यदि किसी एक भी व्यक्ति ने उस वृद्धा को बचाने का प्रयास किया होता तो वह शायद आज हमारे बीच होती। वह कोई भी हो सकती है, केवल इसलिए मूकदर्शक बने रहना कि वह हमारी परिचित नहीं, यह तो घोर अमानवीयता का परिचायक है।
     कृपया सोच बदलें और बेहतर समाज के निर्माण में सहयोग दें।
                                           ——— शुभेश

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

जिन्दगी

10:18:00 am
-:: जिन्दगी ::-

अपना भविष्य सँवारने के खेल में,
वर्तमान दाँव पर लगा रहे हम ।
दो पल की खुशी की खातिर,
हर पल का चैन गंवा रहे हम ।।

सुकून से मिले दो वक्त की रोटी,
इसलिए परोस कर रखी थाली ठुकरा रहे हम ।
बच्ची को मिले हर वो सुकून, 
जिसकी चाहत थी मुझको,
इसलिए उसके संग बच्चा बन, 
वो मासूम बचपन नहीं जी पा रहे हम ।।

खुद को आशीर्वाद देने लायक, 
सामर्थ्यवान बनाने की कोशिश में,
मातृ—पितृ व श्रेष्ठ जनों के आशीष को, 
प्राप्त नहीं कर पा रहे हम ।
स्नेह की बारिश करने की जुगत में, 
अनुजों—प्रियजनों को स्नेह नहीं दे पा रहे हम ।।

जीवन—संगिनी को हर खुशी देने और 
उनके साथ भविष्य में सुख—लहरियां लेने के प्रयास में,
उनके वर्तमान को नजर अंदाज कर रहे हम ।।

तुझे बेहतर बनाने की कोशिश में 'शुभेश',
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम ।
हाँ माफ करना मुझे ऐ जिन्दगी, 
तुझे जी नहीं पा रहे हम ।।
                             ~~~ शुभेश

रविवार, 1 जनवरी 2017

Wishing Happy New Year

12:15:00 am
Happy New Year

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All times polite
No time bear.
Oh! my dear
Happy New Year.

Sometimes come flood
Sometime sear.
But Oh! my dear
Happy New Year.

When comes flood
Don’t go pier.
Oh! my dear
Happy New Year.

O dear, O dear
I’m only your lover
In this new year
Much more eats pear.

And remember
Don’t show tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

बुधवार, 17 अगस्त 2016

सुन रे मानव अब तो संभलो

3:30:00 pm
अब तो संभलो

सुन रे मानव अब तो संभलो, मत प्रकृति से खिलवाड़ करो।
तुम हो कर्ता की उत्तम रचना, मत वनों का संहार करो।।

जिस कर्ता ने तुझे संवारा,
लोभ के वश हो उसे उजारा।
                         जीवनदायिनी पेड़ उखारे,
                         छिन्न—भिन्न कर दिये नजारे।।

जो तेरा है जीवन—रक्षक, जिस वायु से होते पोषित।
बड़े—बड़े उद्योग लगाकर, उस वायु को किया प्रदुषित।।

पर्वत को भी नहीं है छोड़ा,
यहां वहां हर जगह से तोड़ा।
                            वन उजाड़े और नदी को बांधा,
                            प्रकृति की हर सीमा को लांघा।।

जिसने ये संसार बनाया,
जीवन—ज्योति धरा पर लाया।
                           कृत्य भला ये कैसे सहता,
                           मूक—बधिर सा कब तक रहता।।

अति दोहन से जल स्रोत सुखाये,
बूंद—बूंद को जी तरसाये।
                          कहीं बाढ़—रूपी आयी विपदा,
                          और कहीं है बादल फटता।।

कहीं बाढ़ है, कहीं सूखाड़,
चहूं ओर मचा है हाहाकार।
                          चेत—चेत अब भी 'शुभेश',
                          बस पेड़ लगा और पेड़ लगा, वरन् नहीं बचेगा कुछ भी शेष।।

''प्रकृति के अंधाधूंध दोहन की यह परिणति है।
पेड़ बचाओ, हरियाली लाओ, तभी हमारी होगी सद्गति है।''
                                                             ............शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

12:42:00 pm
सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।
सभी कर्मचारियों को अंगूठा दिखाता, पे कमीशन आया।
भैया पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।।

पे कमीशन ने भैया बस लक्ष्य यही इक ठाना है।
गुजर—बसर करते जैसे, वो बंधुआ मजदूर बनाना है।।
जब दिल्ली वालों ने लाख रूपये कर लिए वेतन।
तब चुप्पी साधे बैठा रहा पे कमीशन ।।

आटे—चावल का जाने कौन—सा मोल—भाव किया।
मात्र 18000 रूपये का न्यूनतम वेतन, भारत सरकार को रिपोर्ट दिया।।
15750 से बढ़ाकर 18000 का वेतन, कुल 2250 रूपये बढ़ाने वाली।
सभी सरकारी कर्मचारियों की खिल्ली खूब उड़ाने वाली।।
ये सरकार तो और निराली निकली।
खुद को भामाशाह बताने वाली निकली।।

मीडिया में खूब बढ़ा—चढ़ा कर पेश किया।
वेतन आयोग को ऐतिहासिक घोषित किया।।
वाकई वेतन आयोग तो ऐतिहासिक है।
द्वितीय वेतन आयोग से भी न्यूनतम वृद्धि, ऐतिहासिक तो है।।

हमारे माननीय सांसद कहते हैं, 
50000 में उन्हें अतिथि को चाय तक पिलानी मुश्किल है।
भारत की गौरवशाली परंपरा का,
दायित्व निभानी मुश्किल है।।

​फिर हमें वही सांसद 18000 में पूरे परिवार चलाने कहते हैं।
सहर्ष कैबिनेट प्रस्ताव पास करती, विरोध के स्वर नहीं उठते हैं।।
खुद एक सत्र भी कार्य किया और पूर्ण पेंशन तक प्राप्त किया।
लेकिन हम सरकारी सेवक, 60 वर्ष की उम्र तक कार्य करें।
फिर भी पेंशन लाभ से मरहूम रहें।।

इन सब बातों से वेतन आयोग को कोई सरोकार नहीं।
उन्हें सरकार से मतलब है, सरकारी सेवक से बेमतलब का प्यार नहीं।।

पहले दिल्ली वाले विधायक, लाख रूपये कर गए खुद का वेतन।
अब मुम्बई वालों ने कर लिए 2 लाख रूपये अपना वेतन।।
काश हमें भी ऐसे अधिकार मिले होते।
कम—से—कम रोटी दाल के पूरे पैसे लिए होते।।

अब थोड़ी—थोड़ी बात समझ में आती है।
महलों में रहने वाले को रोटी—दाल का भाव कहां पता चल पाती है।।
अब तो मोदी जी का दिखाया सब्जबाग भी लूट गया।
हां अच्छे दिन आएंगे ये सपना "शुभेश" का टूट गया।।

रविवार, 12 जून 2016

हे भगवान अहां महान

6:52:00 pm
हे भगवान अहां महान ।
करू कृपा यौ कृपानिधान ।।

छोट—छिन हम बुद्धि—बल हीन
अहांक महिमा सं' अनजान ।
ज्ञानक दीप जगा दियअ भगवन
बनि जाए जिनगी स्वर्ग समान ।।

सब बाधा के काटि सकी हम
तानि कै बुद्धिक तीर कमान ।
प्रगतिक राह पर बढैत चली हम
पाबि क' अहांक कृपा महान ।।

दोष हमर सब माफ करू अहां
हम अज्ञानी आ नादान ।
प्रेमक बरखा में नहा दियअ भगवन
बुझि के 'शुचि' कै निज संतान ।।

करू कृपा यौ कृपानिधान ।।
हे भगवान ............
करू कृपा...........
                              .......शुभेश

रविवार, 5 जून 2016

तेरी याद

11:16:00 pm
तेरी याद

सूनी सूनी अंखिया मेरी चितवत है चहु ओर ।
कहां छुपी है मेरी चन्दा, ढूंढे तुझे चकोर ।।

जहां भी देखूं कोई गुड़िया, लगे है जैसी मेरी सोना ।
जैसे मुझसे बोल रही हो, पापा देखो मैं ही हूं ना ।।

कहीं भी देखूं कोई सूरत ।
ममतामयी मां की कोई मूरत ।।

याद तुम्हारी मुझे सताये ।
अधर हैं सूखे नयन भर आये ।।

तन भीगा, दर्पण भीगा है ।
नयन धार से बसन भीगा है ।।

मन प्यासे को कौन बताये ।
नयन नीर कब प्यास बुझाये ।।
                                 ....शुभेश

रविवार, 29 मई 2016

हे दीन दयाल दया कीजै

12:50:00 pm
हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।
                                      .....शुभेश
(परम पूज्य गुरूदेव के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रभु से विनती हेतु नवम्बर,2009 में रचित)

गुरू की वाणी अमृत जैसा

12:37:00 pm
गुरू की वाणी अमृत जैसा
Gurudev+ki+vani
गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।
गुरू की वाणी...............

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।

जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।

गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।

गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।
                            .....शिवेश

सतगुरू की महिमा

11:55:00 am
सतगुरू की महिमा

Param+Pujya+Gurudev+Shriyut+Baua+Saheb

अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ...............................................
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा.......................................
                                                                     .....शिवेश

रविवार, 8 मई 2016

सुख-दु:ख

10:44:00 am
ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है
सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

बिना धूप के छाँव का आस्तित्व ही क्या
अंधियारे के बिना उजाले का महत्व ही क्या
गोरे हैं तब ही जब काले हैं
कहीं उदासी है फिर तब चित्त मतवाले हैं

जब जग में सब सुन्दर ही होते
कोई सुन्दर नहीं कहीं पर होते फिर
क्या होता जब दिवस—दिवस ही रहता केवल
नहीं अंधियारी रैना की क्या कोई जरूरत?

है कुरूपता से परिभाषा सुन्दर की
भेद यहीं से मिलता है नारी—नर की
ज्यों अपंगता है जग में तन सुन्दर है
कहीं खुरदुरे श्यामल चेहरे, कहीं पर छवि मनोहर है

कहीं लालच है, कामुकता है, फिर कहीं ईमानदारी है, वैराग्य है
कहीं निर्धनता है, व्याधि है, तो कहीं अमीरी है, आरोग्य है

यदि है क्रोधी कोई मोही, तब ही शांत चित्त निर्मोही
अन्याय नहीं फिर न्याय ही कैसा, जैसे पुण्य पाप बिनु वैसा

अरे भगवान के आस्तित्व के लिए भी, शैतान का होना बहुत जरूरी है
इसलिए ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है, सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

जो आज दु:खी है, कल सुखी भी होगा
तम का सीना फाड़ सूरज निकलेगा
तुम यत्न किन्तु बस इतना करना
नित कर्म किए जा और ईश चरण में ध्यान तुम धरना

फिर 'शुभेश' सुख ही सुख का, रहेगा तेरे घर डेरा
नहीं मिलेगी निशि अंधियारी, नहीं व्यापेगा तुझको कष्ट घनेरा
                                                                      .....शुभेश 

निवेदन

10:02:00 am
मात—पिता से बढ़कर, संसार में कोई और नहीं है
ठुकरा दे गर, सारी दुनियां, सं​तति पाती ठौर यहीं है ।
उनकी पूजा से बढ़कर कोई धर्म नहीं
हां उनकी सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं ।
जिसने सींचा नौ मास निज रक्त से मुझे
है कोशिश दे सकूं, खुशी के कुछ वक्त उन्हें ।
जिनका नाम ले बढ़ा जग में
निज पहचान है दिया जिन्होंने
जी चाहे कुछ कर गुजरूं उनकी खुशी के लिए ।
चाहूं तो भी उऋण हो सकता नहीं,
इसलिए प्रभु से मांग रहा यह वर
हर जनम में तेरी संतान बनूंगा
कितना भी बल बुद्धि हीन रहूं, फिर भी मैं सच्चा इंसान रहूंगा ।

हे भगवान इतनी कृपा और करो प्रभु
रखूं सुखी दूं हर खुशी उसे ।
जिसने निज मात—पिता का घर छोड़ा मेरी खातिर
कियें है जाने त्याग कई, बस मेरी खातिर ।
उसको भी तो मात—पिता होंगे प्रिय
शायद मुझसे अधिक ही चाहत हो उनकी ।
फिर भी रीति—रिवाजों कारण,
सब छोड़ मेरे संग है आई ।
इसलिए मुझ पर मुझसे भी अधिक
उसकी ही है प्रभुताई ।
दु:ख उनके बांट नहीं सकता मैं
हां खुशियों से झोली भर सकता मैं ।

हे प्रभु दो इतना आत्मबल, सम्बल मुझको
पुत्र और पति धर्म दोनों का भ​ली—भांति पालन करूं ।
सुख—चैन से भर दूं मात—पिता का हर इक क्षण
और खुशियों भरा कर दूं, सबका जीवन ।
                                                       ........शुभेश

शनिवार, 7 मई 2016

भूख

9:21:00 pm
मामा जी, मामा जी यो, हमरा लगि गेल भूख ।
हमरा लेल पेड़ा—बिस्कुट आनू, चाहे खोआ—तिलकुट आनू ।
जल्दी से आनू सेबक जूस, जल्दी से आनू दूध ।।
मामा जी, मामा जी यो....................

दालि चाउर लै खिचड़ी बनाबू, चाहे दूध दै खीर बनाबू ।
नूने—अनून स​ब किछु खा लेब, कांचो—कोचिल सेहो पचा लेब ।।
बड जोड़ लगि गेल भूख ।
मामा जी, मामा जी यो....................

नै किछु बनत त' सेहो बता दिय'
हमरा माय के अहां, बजा दिय'
हम त पी लेब दूध, आब बड जोड़ लगि गेल भूख ।।
मामा जी, मामा जी यो....................
                          ........शुभेश
 (​अपनी पुत्री सुश्री शुचि को समर्पित मैथिली बाल रचना)

तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा

6:28:00 pm
हे ​प्रियतमा, शुभ्रे! तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा ।
मैं अनुगामी नहीं बनाता हूं तुझको, पर हे प्रिये तुझे सहचरी तो बनना होगा ।।

पथ में चाहे जितने कंटक आए, मैं चल लूंगा हंसकर ।
तू फूल भरी राहों पर हीं ज्यों चल मेरे हाथ पकड़कर ।।
मैं दु:ख—संताप की ज्वाला को पी लूंगा।
पर तुझको भी इसकी थोड़ी आंच सहन करना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .....................

श्रेष्ठजनों की बात को न तुम दिल पर लेना ।
होगी गूढ़ भलाई कोई, बात सहज मान लेना ।।
मातु—पिता नहिं चाहे संतति का अहित
हो सकता भिन्न तरीका, उनके प्यार जताने का ।

औरों की बहकी बात से हमें क्या लेना,
हम दोनों का साथ है जब, क्या कर लेंगी बावरी दुनियांं ।
हो सकता हैं लोग करें तुझ पर वाणी से शस्त्र प्रहार बहुत,
कटुक वचन से ह्रदय छलनी होगा, पर हे प्रिय तुम न धीरज खोना ।

ये ​दुनिया है बड़बोलों की, बड़बोलों की है ये दुनिया
तुमको उनकी बातों पर कान नहीं धरना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .............................
                                                           .......शुभेश

अपरंपार दयालु भगवन

5:44:00 pm
हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश

बुधवार, 15 जुलाई 2015

शर्मा जी बने डॉक्टर

11:43:00 am
शर्मा जी बने डॉक्टर
मेरे पड़ोस में शर्मा जी रहते हैं,
हर मुद्दों पर गरमा—गरम बहस करते हैं ।
ज्ञान के मामले में तो शुन्य हैं,
समझते अपने को परिपूर्ण हैं ।।

एक सुबह शर्मा जी को सपना आया,
डॉक्टर बनकर उन्होंने खूब माल कमाया ।
बस फिर क्या था, शर्मा जी चले डॉक्टर बनने,
सफेद कोट सिलवायी, और चले सपने को सच करने ।।

साले ने जुगत भिड़ाई,
एमबीबीएस की फर्जी डिग्री दिलाई ।
अब शर्मा जी बन गए डॉक्टर,
और उनके साले साहब हो गए कम्पाउण्डर ।।

दोनों ने मिलकर क्लिनिक खोली,
चार दिवस इंतजार में ही निकली ।
जब कोई मरीज नहीं आया,
शर्मा जी का दिल घबराया ।।

पांचवें दिन हुए मरीज के दर्शन,
देख जीजा—साले का खिल गया मन ।
ऐसा ईलाज करूं मैं इसका,
बनूं चहेता डॉक्टर सबका ।।

बंदे ने मर्ज बताई,
था वो दस्त से परेशान भाई ।
शर्मा जी ने ऐसा ईलाज किया,
वो बेचारा स्वर्ग सिधार गया ।।

दोनों को हुई घबराहट, बात हुई ये ऐसी,
बात न बाहर फैले ये, कोई जुगत लगाओ वैसी ।
चलो दोनों इसे उठाते हैं,
पीछे के वन में दफनाते हैं ।।

साले था पकड़ा लाश को पीछे,
और अपने आंखों को मींचे ।
जो मल था धोती के अंदर,
सब गिरा साले के ऊपर ।।

खैर! किसी तरह निपटाया,
उसको जाकर ​दफनाया ।
अगले दिन जब क्लिनिक आया,
था एक मरीज पहले से आया ।।

देख दोनों की आंखें चमकी,
चलो आज होगी बोहनी अच्छी ।
मरीज ने मर्ज बताया,
उसे भी था दस्त ने सताया ।।

सुनकर दोनों फिर चौंके,
फौरन अंदर को लपके ।

साला बोला जीजा से ,
अपने सर को जकड़े ।
फैसला हो पहले इसका
कि पीछे कौन पकड़े ।।
                  ~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

उठ भोर भई

7:27:00 am
उठ भोर भई
उठ भोर भई, उठ भोर भई, अब जाग री मेरी गुड़िया ।
जग गई सारी ​दुनिया ।

मम्मी—पापा जागे, जग गए मामा—मामी,
दादा—दादी जागे और जग गए नाना—नानी ।
अरे खुलि गए सारे किवड़िया, अब जाग री तू भी गुड़िया ।।
उठ भोर भई....................................

चंदा मामा जाए, सूरज दादू आए,
अंधियारा भी जाए, हर कली मुसकाए ।
अरे जग गई सारी दुनिया, अब जाग री तू भी गुड़िया ।।
उठ भोर भई....................................
उठ भोर भई, उठ भोर भई अब जाग री मेरी गुड़िया ।
चली खेलन सारी दुनिया ।।
                                                              ~~~शुभेश

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

कभी सुबह तो होगी

11:04:00 pm
कभी सुबह तो होगी
सूरज की लालिमा बिखर चुकी है,
रात का अंधियारा छंट चुका है ।
उगते हुए उस बड़े से सूरज को देख
वो मासूम बचपन याद आ रहा है,
जो कहीं खो गया है, गुम हो गया है ।।

आप कहते हैं मैं अभी सात का हूं,
तो कहां छुपा है, यहीं है, यही तो है तेरा बचपन ।
हां यहीं है मेरा बचपन, खयालों में ही सही,
यहीं है, यहीं है मेरा बचपन ।।

खयालों में ही सही, हमउम्रों को देख मैं भी
धूलों में लोटता हूं, गांव की गलियों में दौड़ता हूं ।
कंचे खेलता हूं, धूम मचाता हूं, खयालों में ही सही ।
मालिक के डांटने पर, पीटने पर मां बालों में
प्यार से हाथ फेरती तो है, खयालों में ही सही ।
हां बचपन तो है, खयालों में ही सही ।।

कल एक प्लेट ही तो टूटी थी,
या फिर मेरी किस्मत ही फूटी थी ।
उसने गालियों की जो गुबार निकाली थी,
सुनकर शायद शरम भी शरमाई थी ।
पर मैं, मैं नहीं शरमाया
मैं तो वहीं बुत बना खड़ा था ।
शायद खुद को ढूंढ रहा था ।।

अब तो मेरे आंसू भी सूख गये हैं,
ये तो रोज की बात है, कह वो भी रूठ गये हैं ।
कभी गाली, कभी मारपीट, यही अब मेरी कहानी है,
भर—पेट खाने की लालसा में, बीती जा रही जिन्दगानी है ।।

ऊषा की लालिमा तो रोज आती है,
सारे जग के अंधकार मिटाती है ।
मेरा अंतर्मन मुझे देता है रोज दिलासा,
कि कभी तो कोई आएगा ।
जो मसीहा बनकर मेरे,
सिसकते हुए बचपन को फिर से हंसाएगा ।।

सपनों की वो जमीं कभी सच तो होगी ।
हां 'शुभेश' आज न सही मेरे लिए भी, कभी सुबह तो होगी ।।
                                                       ~~~शुभेश
***Please Strictly Avoid Child Labour***

गुरूवर नमन तुम्हें शत बार है

10:29:00 pm
गुरूवर नमन तुम्हें शत बार है
नमन तुम्हें शत बार है गुरूवर, नमन तुम्हें शत बार है ।
पाप—पुण्य का भेद कराया,
दया धरम का मार्ग दिखाया ।
स्नेह भरा जो हाथ फिराया, कोटि—कोटि आभार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है.............................................
सत की नाव में मुझे बिठाया,
नाम रूपी पतवार थमाया ।
निराकार का भेद बताया, वो रूप तेरा सा​कार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है.......................................
क्रोध—लोभ को पास न लाना,
माया मोह से बच के रहना ।
माया ठगिनी बड़ी सयानी, तूने किया खबरदार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है..........................................
हम अज्ञानी इंद्रिय वश में,
बंधते जाते भव बंधन में ।
तूने ज्ञान की ज्योति जलाकर,
तन और मन दोनों धुलवाकर ।
आतम—राम का मिलन कराकर, किया बड़ा उपकार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है...................................................
                                                                   ~~~शुभेश

पहली नजर

10:11:00 pm
पहली नजर
पहली बार नजर भर देखा,
मन अंदर से मचल हो बैठा ।
लंबे बाल हैं काले—काले,
लट बिखराये भाल सजाये ।।

दो नयना अति शीतल तारे,
दूर करे सारे अंधियारे ।
सजी संवरी वो सामने बैठी,
मेरे अंदर तक वो पैठी ।।

उस पल को अब कोस रहा हूं,
मन को अपने मसोस रहा हूं ।
पहले क्यों नहिं मैंने हां की,
मति मेरी भी गई कहां थी ।।

अब तो पल—पल दिवस है लगता,
याद में उनकी दिन है कटता ।
उनकी बोली मधुर है ऐसी,
शहद मिलायी गई हो वैसी ।।

निशि दिन मधुरपान मैं करता,
याद में उनके सपने बुनता ।
अच्छा लगे न कुछ भी यारा,
कब होगा दीदार तुम्हारा ।।

प्रतिपल सोचे यही 'शुभेश'
इंतजार होंगे कब ये शेष ।।
                       ~~~शुभेश

जाने वो सुबह कब आएगी

9:57:00 pm
जाने वो सुबह कब आएगी
जाने वो सुबह कब आएगी, जाने वो सुबह कब आएगी ।
इन सूनी—सूनी अंखियों को जाने कब तक तरपाएगी ।
कब बरसेंगी अधरों पे अधर, कब मिलन की प्यास बुझाएगी ।।
मेरे तन से जो उठती अगन, कुछ और नहीं तेरी माया ।
तेरे तन की वो मीठी छुअन, कब मिलेगी वो शीतल छाया ।।
वो हंसी ठिठोली मुसकाना ।
पलक उठाकर देखना यूं, फिर पलक झुकाकर शरमाना ।।
वो प्यार भरी तेरी बातें, छोटी करती लम्बी रातें ।
बरबस गालों को यूं चूमना ।
कभी चेहरे को यूं उठा—उठाकर, उंगली को अपने घुमा—घुमाकर ।
बातों से सपने बुनना ।।
मुझे याद बहुत ही आती है, तेरी याद सदा तरपाती है ।
देखेंगे जाने कब ये नयन, जो मन में बसी चंचल काया ।
तरपा तो पहले भी था बहुत, इतना न किसी ने तरपाया ।।
                                                                     ~~~शुभेश



यूं ही सफर में

9:54:00 pm
यूं ही सफर में
वो सहमी, वो चुपचुप, अपने में गुमसुम ।
न बोले न हंसती, डब्बे में कोई नहीं भी है वैसी ।
मेरा ध्यान खींचे, क्यूं है वो ऐसी ।।
उसके साथ कुनबा है सारा का सारा।
पर लगता नहीं कोई उसको है प्यारा ।।
गोद में उसकी है, नन्हीं सी गुड़िया ।
कोमल—सुकोमल, चंचल इक बिटिया ।।
कभी मुंह चूमें, कभी बाल खींचे वो नन्हीं सी गुड़िया ।
उस नन्हीं सुकोमल की चंचल छुअन की,
सहज एक चाहत उठती है मन में ।
पर जैसे उस मां को उस नन्हीं सी जां की,
न थोड़ी सी चिंता, न चाहत है मन में ।।
हुई रात अब तो सोने की चिंता,
छ: सीट है और सात सवारी ।
लो सीटों पे सोएंगे सारे के सारे,
बस नीचे सोएगी, अम्मा संग प्यारी ।।
कहते वो आए मां वैष्णों यहां से ।
जो जगत जननी सबकी वो जगदम्बे मां से ।।
पूछे है ये मन, क्यूं इतनी उपेक्षा,
उस नन्हीं सी जां की, जां की और मां की ।।
                                               ~~~शुभेश

सोमवार, 13 जुलाई 2015

मैं भारतवासी हूं

3:28:00 pm
मैं भारतवासी हूं..........
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।
ये तो वो भारत—भुमि नहीं, जहां राम,कृष्ण ने राज्य किया ।
पापियों का संहार किया और जनजीवन को आबाद किया ।।
चन्द्रगुप्त और महाराणा प्रताप की कथा लगे सपनों जैसी ।
सब लगे हैं स्वार्थ—सिद्धि में, परोपकार और ईमानदारी कैसी ।।
सांसदों की बात न पूछें, बस इनकी करतूतें देंखे ।
हर मामले पर डाल अड़ंगा, शुरू कर दें मार—पीट और दंगा ।।
सांसदों की करनी सुनकर, हर कोई ये शरम से कहता ।
क्या ये संसद है, यहीं कानून है बनता ...........?
आज यहां नंदीग्राम की घटनाओं का बोलबाला है ।
औद्योगिकरण और विकास के नाम पर होता बड़ा घोटाला है ।।
सरकार भ्रष्ट, व्यभिचार पुष्ट,
जनता है त्रस्त, कहे किससे कष्ट ।।
पाठकों आप करें स्पष्ट,
मैं फिर से वही प्रश्न करूं,...................
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।
                                        ~~~ शुभेश
(वर्ष 2007 में तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर ​रचित)
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

हे अपरंपार पार करो नैया

3:13:00 pm
पार करो नैया
हे अपरंपार पार करो नैया फंसी है बीच भंवर में ।
तुम बिन दूसर कोई न खेवैया, इस अथाह सागर में ।।
हम हैं पापी अवगुण राशि, करम अधम अति मेरे ।
सुख—दु:ख, धन—संपति और विपदा, हैं सब माया तेरे ।।
लोभ—क्रोध, मद—मोह जनित यह पाप की गठरी भारी ।
कैसे पार करूं मैं भव को, हूं अब शरण तुम्हारी ।।
हम नादान चंचल अज्ञानी, विनती करूं मैं कैसे ।
जैसे तारा गज और गणिका, तारो हमको वैसे ।।
                                                          ~~~शुभेश
('सत्य की ओर' पत्रिका में प्रकाशित)

माँ

2:53:00 pm
माता
सृष्टि की सबसे सुंदर रचना है माँ ।
मेरी माँ, प्यारी माँ, न्यारी माँ ।।
बाल रूपी अंकुर को अपने स्नेह की
छाया में जीवन देने वाली माँ ।
बच्चों के बचपन संवारने में अपनी रातों की नींद,
व दिन का चैन गंवाने वाली माँ ।।
प्रेम और स्नेह की बगिया मेें,
सद्गुणों का पाठ पढ़ाने वाली माँ ।
दीये की तरह खुद जलकर,
बच्चों का भविष्य रोशन करती माँ ।।
पर ये बच्चे क्या कर रहे हैं ।
आईये देखें वो क्या कह रहे हैं ।।
माँ मैं अब बड़ा हो गया हूं ।
अपने पांवो पर खड़ा हो गया हूं ।।
माँ के स्नहे को अब वे बीवी के प्यार से तौलते हैं ।
दो जरूरी बातें भी माँ बहू से कहे तो उनके खून खौलते हैं ।।
अब उन्हें माँ का स्नेह जायका फीका लगता है ।
माँ की मधुर आवाज भी शोर तीखा लगता है ।।
माँ तू क्या दिन भर बक—बक करती है ।
मेरी बीवी खुले विचारों वाली है,
उसे क्यों हर बात पर टोका करती है ।।
माँ कहती है — हां बेटा मैं तो पुराने खयालों वाली
ये तो नया जमाना है ।
माँ समझा करो तू आज है कल नहीं,
पर बीवी के साथ तो आगे तक जाना है ।।
बेटों की करतूतें देख बहुत शरम—सी आती है ।
जिस माँ ने अकेले चार—चार बेटों को पाला,
उन चारों से एक अकेली माँ पाली नहीं जाती है ।।
                                                        ~~~ शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

पिता

2:27:00 pm
पिता
बचपन से मैने देखा उन्हें,
दु:ख झेलते हुए हमारे लिए ।
जीना क्या है भूल गए वो,
जीया है उन्होंने हमारे लिए ।।

खुद के तन की न कोई फिकर,
न दु:खी देख सकते हमें पल भर ।
हमारी दु:खों पर वो रोए बहुत,
है देखा उन्हें हर पीड़ा हमारी समेटे हुए ।।

हमें चाहिए थी नई शर्ट, नए पैंट,
जूते वो भी तसमें लगे हुए ।
दिया उन्होंने वो सब कुछ हमें,
पर देखा उन्हें एक चप्पल को वर्षों घिसते हुए ।।

बड़ी मेहनत से उन्होंने पढ़ाया हमें,
कुछ करूं इस लायक बनाया हमें ।
देखा है मैनें मेरी हर—इक खुशी में,
मुझ से भी अधिक खुश होते हुए ।।

जीवन का हर पल ऋणी है तेरा,
बिन तेरे कुछ नहीं कुछ नहीं है मेरा ।
इस जमीं पर कहीं पर अगर जो खुदा है
वो पिता है, पिता है, पिता है, पिता है ।।
                                          ~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

हे प्रभु कैसी ये लीला

1:55:00 pm
हे प्रभु कैसी ये लीला
हे प्रभु ये कैसी है लीला, कृपा कर मुझे बताएं ।
करम—धरम सब हाथ में तेरे, फिर क्यों हम घबराएं ।।
जीव खिलौना तेरे हाथ का, जैसे चाहो नचाते ।
तुम ही कर्ता, तुम ही विधाता, जहां मर्जी ले जाते ।।
प्रभु ईच्छा से ही हम हंसते, प्रभु ईच्छा से रोते ।
प्रभु ईच्छा बिन तृण नहिं डोले, फिर पापकर्म क्यों होते ।।
विद्वजनों की बात सुनूं तो होता अचरज भारी ।
सत्कर्म करूं तो प्रभु प्रेरित हैं, दुष्कर्म में गलती हमारी ।।
जब सबकुछ तेरी ही ईच्छा, फिर पक्षपात ये कैसा ।
किसी को राम बना देते तुम, किसी को रावण जैसा ।।
कोई गाँधी बन जाता तो, कोई निर्दयी गोरा ।
कैसा खेल तुम्हारा है प्रभु, समझ न आए थोड़ा ।।
क्यों ये नहीं हो सकता प्रभु की, कहीं पाप नहिं होते ।
कोई न रहता रावण जग में, सभी राम हीं होते ।।
                                                          ~~~ शुभेश

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

प्रभु मोहि अटल भक्ति दीजै

2:49:00 am
प्रभु मोहि अटल भक्ति दीजै
                प्रभु दीन दयाल दया कीजै ।
                मेरे सब अपराध क्षमा कीजै ।।
इस जग माया में जब मैं आया,
आतम ज्ञान सकल बिसराया ।
                ठगिनी माया चाप चढ़ाई,
                लोभ मोह की बाण चलाई ।
जीव में प्रकट कीन्ह अभिमाना,
फंसि गए लाखों संत सुजाना ।
                हे प्रभु मैं तो जड़मति बालक,
                तुम ही रक्षक तुम प्रतिपालक ।
माया मोह दिन—रात सतावै,
लोभ—क्रोध की अग्नि जलावै ।
                तव चिन्तन में मन नहिं लागै,
                मन नहिं थिरै न चित ठहरावै ।
हे प्रभु कोई जतन कीजै,
अब मोहि अपने शरण लीजै ।
                नित नाम सुमिरूं शक्ति दीजै ।
                प्रभु मोहि अटल भक्ति दीजै ।।
प्रभु दीन दयाल ...........................
मेरे सब अपराध ...........................
                                              ~~~शुभेश