मॉं लक्ष्मी तेरी जय हो
Shubhesh Kumar
11:50:00 am
दीपावली अर्थात़ दीपोत्सव
तिमिर से प्रकाश की ओर सभी उद्यत
हे मॉं मैं भी भटक रहा भवकूपों में
तुझे जानकर भी अनजान बना रहा मैं
अपनी तैंतीस वर्षीय आयु में सभी
तैंतीस कोटि देवताओं में तेरी महिमा पहचान गया
तुझ बिन सकल गुण निरर्थक
सभी श्रम बेकार, बस तेरी महिमा है अपार, मान गया
मान गया मॉं, मान गया
सब कुछ पहचान गया मॉं पहचान गया
क्षमाप्रार्थी हूं मॉं, कभी तेरी पूजा नहीं की
मॉं सरस्वती के भाव में बहता रहा, प्रीत दूजा नहीं की
तेरी कृपा से मॉं सभी तर जाते हैं
जितने भी दुःख हों, सभी कट जाते हैं
तेरी कृपा हो तो सभी अवगुण
गुण में परिवर्तित हो जाते हैं
मैं सादगी के चक्कर में पड़ा रहा मॉं, हमें माफ करना
इतना भी न समझ सका धवल वस्त्र पर
हल्की सी कजरी भी कोसों दूर तक नजर आती है
और लोगों को पूरे श्वेत वस्त्र नहीं
बस वो कजरी ही दिख पाती है
खैर मैं तो अज्ञानी हूं, मुझे माफ करना
चहूं ओर से निराष हो थक गया हूं शरण लेना
मॉं मुझे कुछ अधिक की आस नहीं
बस इतनी कृपा करना, बनूं मैं स्वयं का परिहास नहीं
सत्कर्म की शक्ति देना, सेवा-भाव भक्ति देना
उचित फल प्राप्ति देना, सकल परिवार समृद्धि देना
मातु-पिता के चरणों में भक्ति देना
संगिनी की शक्ति देना
संतति और बांधवों का सम्बल बनूं
सकल परिवार में स्नेह रस भरूं
हे मॉं लक्ष्मी, वैष्णवी शरण रखना
दोष क्षमाकर, सदैव कृपा करना