मंगलवार, 6 नवंबर 2018

मॉं लक्ष्‍मी तेरी जय हो

11:50:00 am
maa-laxmi-shubh-diwali


दीपावली अर्थात़ दीपोत्सव
तिमिर से प्रकाश की ओर सभी उद्यत
हे मॉं मैं भी भटक रहा भवकूपों में
तुझे जानकर भी अनजान बना रहा मैं

अपनी तैंतीस वर्षीय आयु में सभी
तैंतीस कोटि देवताओं में तेरी महिमा पहचान गया
तुझ बिन सकल गुण निरर्थक
सभी श्रम बेकार, बस तेरी महिमा है अपार, मान गया

मान गया मॉं, मान गया
सब कुछ पहचान गया मॉं पहचान गया
क्षमाप्रार्थी हूं मॉं, कभी तेरी पूजा नहीं की
मॉं सरस्वती के भाव में बहता रहा, प्रीत दूजा नहीं की

तेरी कृपा से मॉं सभी तर जाते हैं
जितने भी दुःख हों, सभी कट जाते हैं
तेरी कृपा हो तो सभी अवगुण
गुण में परिवर्तित हो जाते हैं

मैं सादगी के चक्कर में पड़ा रहा मॉं, हमें माफ करना
इतना भी न समझ सका धवल वस्त्र पर
हल्की सी कजरी भी कोसों दूर तक नजर आती है
और लोगों को पूरे श्वेत वस्त्र नहीं
बस वो कजरी ही दिख पाती है

खैर मैं तो अज्ञानी हूं, मुझे माफ करना
चहूं ओर से निराष हो थक गया हूं शरण लेना
मॉं मुझे कुछ अधिक की आस नहीं
बस इतनी कृपा करना, बनूं मैं स्वयं का परिहास नहीं

सत्कर्म की शक्ति देना, सेवा-भाव भक्ति देना
उचित फल प्राप्ति देना, सकल परिवार समृद्धि देना
मातु-पिता के चरणों में भक्ति देना
संगिनी की शक्ति देना

संतति और बांधवों का सम्बल बनूं
सकल परिवार में स्नेह रस भरूं
हे मॉं लक्ष्मी, वैष्णवी शरण रखना
दोष क्षमाकर, सदैव कृपा करना

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

संत कबीर के विचार -आज कितने प्रासंगिक

6:56:00 pm
संत कबीर के विचार -आज कितने प्रासंगिक

भारत की पावन वसुंधरा अनेकों महान साधु - संतों की जननी रही है, जिन्‍होंने अपने पावन जीवन-दर्शन  से भारत  ही  नहीं सम्‍पूर्ण विश्‍व को लाभान्वित किया है। ऐसे ही संतों की श्रेणी में अग्रणी नाम परम तेजस्‍वी संत कबीर का है।  इस धरा-धाम पर संत कबीर  का  पदार्पण  ऐसे समय  में  हुआ जब एक ओर तो भारतीय जनमानस हिन्‍दू धर्म में गहरी पैठ बना चुके आडम्‍बरों व कुप्रथाओं से लड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर आततायी लोदी शासकों के अन्‍याय और जबरन धर्म-परिवर्तन का शिकार हो रहा था। 
विभिन्‍न विद्वानों-इतिहासकारों के अनुसार संत कबीर का जन्‍मकाल 1398 ई. के आस-पास था। वे सैय्यद और लोदी शासकों के समकालीन थे। संत कबीर के जन्‍म के सम्‍बंध में कबीर-पंथियों में एक दोहा प्रचलित है-

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्‍द्रवार एक ठाठ ठए ।
ज्‍येष्‍ठ सुदी बरसाईत को, पूरनमासी प्रकट भए ।।

अर्थात् संत कबीर का प्राकट्य काल विक्रमी संवत 1455 संवत ज्‍येष्‍ठ मास के पुर्णिमा के दिन हुआ था। कबीर ने सदैव दया और प्रेम जैसी मानवतावादी भावों को अपने विचारों में अधिक स्‍थान दिया है-

दया राखि धरम को पाले, जग से रहे उदासी ।
अपना सा जी सबका जाने, ताहि मिले अविनाशी ।।

जहां दया, तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पाप ।
जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा वहां आप ।।

जीवन की सत्‍यता का बोध कराने के लिए उन्‍होंने प्रभावशाली अभिव्‍यक्ति दी है जो उनके साखियों में स्‍पष्‍टत: परिलक्षित होता है –
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझ-सा बुरा न कोय ।।

चुन-चुन तिनका महल बनाया, लोग कहें घर मेरा ।
ना घर मेरा, ना घर तेरा, चिडि़या रैन बसेरा ।।

हाड़ जड़े ज्‍यों लाकड़ी, केस जड़े जस घास ।
पानी केरा बुलबुला, अस मानुष की जात ।।

पानी ही ते हिम भया, हिम होय गया बिलाय ।
जो कुछ था सोई भया, अब कुछ कहा न जाय ।।

कबीर दिखावटी प्रेम के स्‍थान पर आंतरिक प्रेम और लौकिक प्रेम के स्‍थान पर परमात्‍मा के प्रति निश्‍छल प्रेम को प्रमुखता देते हैं। उनके अनुसार प्रेम सर्वत्र है -

प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा परजा जेहि रूचै, शीश देइ लै जाय ।।

जब मैं था, तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं ।
प्रेम गली अति सांकरी, ता में दोउ न समाय ।।

बाहर क्‍या दिखलाइए, अंतर जपिए राम ।
कहां काज संसार से, तुझे धनी से काम ।।

कबीर अपने साखियों में मानव जीवन के यथार्थ से भी परिचय कराते हैं और जीवनरूपी नाव को खेने का ढंग भी सिखलाते हैं-

कबिरा गर्व न कीजिए, कबहुं न हंसिए कोई ।
अजहुं नाव समुद्र में, ना जाने का होई।।

जो तोकूं कांटा बुवै, ताहि बोय तू फूल ।
तोकू फूल के फूल है, वा कू है तिरशूल ।।

निन्‍दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करे सुभाय ।।

वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचै नीर ।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर ।।

संत कबीर तन की शुद्धता के स्‍थान पर मन की शुद्धता को अधिक महत्‍व देते हैं-

नहाए धोय क्‍या हुआ, ज्‍यों मन मैल न जाय ।
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ।।

संत कबीर ने धर्म के नाम पर हो रहे आडम्‍बरों का कड़ा विरोध किया और विभिन्‍न कुप्रथाओं पर आमजनों की भाषा में ही आघात किया –

पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़ ।
ता से तो चक्‍की भली, पीस खाय संसार ।।

हिन्‍दू-तुरूक की एक राह है, सतगुरू इहै बताई ।
कहहि कबीर सुनहु हो सन्‍तों, राम न कहेउ खुदाई ।।

कबीर दिखावटी स्‍वांग को त्‍याग कर निर्मल हृदय से भगवत भजन की सलाह देते हैं –

कबीर जपनी काठ की, क्‍या दिखलावे मोहि ।
हृदय नाम न जापिहें, यह जपनी क्‍या होहि ।।

पिया का मारग सुगम है, तेरा भजन अवेड़ा ।
नाच न जानै बापुड़ी, कहता आंगन टेढ़ा ।।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ।।

वर्तमान समय भी कुछ अलग नहीं है। निरंतर धर्म के नाम पर हो रही हिंसा और अंधविश्‍वास की भेंट चढ रही मानव जिन्‍दगियों को देख लगता है कि हमने संत कबीर के विचारों को पूरी तरह विस्‍मृत कर दिया है। संत कबीर केवल धार्मिक सुधारक ही नहीं थे, उनके विचारों ने समाज को एक नई दिशा दी। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है। उन्‍होंने मानव को जीवमात्र से प्रेम करना सिखलाया। बाह्य आडम्‍बरों को सिरे से नकारते हुए सच्‍चे मन से भगवत भजन की सलाह दी। 
 ओ३म्  ।।    शांति:    ।।    शांति:    ।।    शांति:    ।।

जलेबी की तरह सीधी बातें

6:49:00 pm
जलेबी की तरह सीधी बातें

आज का युग प्रगतिशीलता का युग है।  हर ओर विकास हो रहा है।  विकास के पैमाने का भी विकास हो रहा है।  पहले  भूखमरी  के  आंकड़ों  से  विकास  का आकलन किया जाता था।  अमुक वर्ष  में  भूख से मरने वालों की संख्‍या इतनी थी जो पिछले वर्ष घटकर इतनी हो गयी है। अर्थात हम विकास कर रहे हैं। परंतु, आज का दौर तो डिजिटल क्रांति का है। अतएव, भुखमरी के डाटा का स्‍थान डिजिटल डाटा ने ले लिया है। जीबी और टीबी पैमाने ने विकास को बूलेट ट्रेन की रफ्तार दी है। घबरायें नहीं मैं वो खांसने वाले टीबी की नहीं गीगाबाइट-टेराबाईट की बात कर रहा हूं। हमारे कम्‍प्‍यूटर के शिक्षक पढाते थे कि सब कुछ 0 और 1 का कमाल है। वो बायनरी सिस्‍टम (द्विआधारी सिस्‍टम) की बात कर रहे थे। 
  इस डिजिटल दौर में बस 0 और 1 ही है। कोई दूसरा स्‍थान पर नहीं रहना चाहता है। सभी 1 नम्‍बर पर रहेंगे नहीं तो 0 नम्‍बर, मतलब कुछ नहीं। रेस लगी है भागने की और सभी भाग रहे हैं ‘एक’ नम्‍बर के पीछे। डर है कि वो कहीं 0 न रह जाएं। अब इस भागम भाग में किसे पड़ी है पूछने की, कि विकास के इस बूलेट रफ्तार में क्‍या पीछे रह गया है। बूलेट ट्रेनों को अपने देश में लाने में प्रयासरत सरकार को लोकल व एक्‍सप्रेस ट्रेनों में बोरियों की तरह लदकर जा रहे यात्रियों की कितनी चिंता है। सभी ट्रेन लेट चलें, हम भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करें, हमें क्‍या। गेटमैन के अभाव में मानवरहित रेल फाटकों पर दुर्घटनाएं होती हो तो हों, हमें क्‍या। हम तो बूलेट ट्रेन की बात करेंगे और खुशफहमी में जी लेंगे कि अब हम भी जापान से टक्‍कर लेंगे।
अट्टालिकाओं की गगनचुम्‍बी श्रृंखला और नीचे दम तोड़ता किसान। अभी भी भूख से मर रहें हैं लोग और किसान अपने लागत मुल्‍य तक के अभाव में अपनी ही ऊपजाई फसलों को वापस अपनी ही खेतों में दफन करने को मजबूर है। परंतु हमें क्‍या, हम तो फ्री डाटा को ही विकास से तौलेंगे। सब सोशल नेटवर्किंग में और अपना नेटवर्क बढा रहे हैं। समय कहॉं है, किसके पास है। सब तो व्‍यस्‍त है। 


अफीम से भी गहरा नशा दिया जा चुका है, सभी मस्‍त हैं। तभी तो जब सरकार घोषणा करती है कि देखो विकास हुआ है और कुछेक करोड़ की ऋण सहायता और कुछेक लाख को आवास सहायता का अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाती है। तो सब ताली बजाते हैं। पर ये तो बताएं कि आबादी तो एक अरब के पार हो गयी है, वहां ये कुछ करोड़ के क्‍या मायने हैं। पर कौन पूछे,  सभी मस्‍त हैं।  मुझे तो जलेबी बहुत भाती है क्‍योंकि वो इतनी सीधी होती है कि एक सिरा को पकड़ो और दूसरे सिरा से विकास को माप लो। मैंने भी ठान ली है कि विकास की पूरी खबर लेकर रहूंगा।  कुछ दोस्‍तों ने भीतर की खबर निकाल कर दी है कि विकास के आने की तिथि 30 फरवरी है और ये पक्‍की खबर है। अब देखिये कब आती है वो तिथि। पर किसे इंतजार है, सब तो राम-रहीम, मंदिर-मस्जिद, 3जी-4जी में व्‍यस्‍त हैं और मैं !  मैं तो जलेबी पाकर ही मस्‍त हूं। 
**जय श्री हरि**

पानी

6:47:00 pm
 पानी
प्‍यास से गला सूख रहा था, परंतु कहीं पानी नजर नहीं आ रहा था। मैंने घर के सारे बोतल,  डब्‍बे  यहां तक  कि किचन के सारे बरतन को कई बार उलट-पलट कर देख लिया लेकिन पानी की एक बूंद भी नहीं मिली। मैं प्‍यास से बेचैन होकर छुट्टन के दुकान की ओर भागा। पहुंचते-पहुंचते मैं हांफने लगा था। मैंने पानी की एक बोतल मांगी। उसने लगभग झल्‍लाते हुए बोला- अरे भाई नहीं है पानी। सुबह से एक ही बात बोल-बोलकर थक गया हूं। भाई पानी की बोतल की सप्‍लाई नहीं हो रही है। पूरे दस दिन से मैंने पानी की एक बोतल भी नहीं बेची। हम जैसों के नसीब में ऐसी अनमोल चीजें कहां। मैं बदहवास सा चीख पड़ा। क्‍या मतलब, पानी नहीं है। प्‍यास के मारे मैं मरा जा रहा हूं और जब मैं पानी खरीदने आया हूं तो तुम भी नहीं दे रहे हो। क्‍या हो गया है, अब मैं कहां से पानी लाऊं। छुट्टन ने समझाते हुए कहा- भाया पीने के पानी की बहुत मार मची है। दिन में दो बजे नलकूप विभाग की गाड़ी आती है और सभी घरों के लिए प्रति व्‍यक्ति एक लीटर के हिसाब से पानी देती है। अब तो उसी का इंतजार करना पड़ेगा, कोई और चारा नहीं है। मैंने उसकी ओर आशा भरी निगाहों से देखा, शायद वो अपने लिए रखे पानी में से थोड़ा मुझे भी पिला दे। पर उसने दो-टूक लहजे में कह दिया- और चाहे जो कुछ मांग लो परंतु पानी नहीं। 2 बजे से पहले पानी नहीं मिलेगा और मैंने एक गिलास पानी अपने बेटे के लिए बचा कर रखा है जो प्‍यासा स्‍कूल से लौटेगा तब उसे दूंगा। 
मैं हताश-निराश वापस घर की ओर लौट पड़ा। अब दो बजे तक इंतजार करने के सिवाय कोई चारा नहीं था। परंतु अभी तो केवल 10 ही बजे थे। चार घण्‍टे तक मैं प्‍यास से तड़पता रहूंगा। हाय ये क्‍या हो गया है। बेसिन में लगा नल मुझे देख मुंह चिढा रहा था, मानो मन ही मन मुझे कोस रहा हो – और पानी करो बर्बाद। ब्रश करते समय और सेविंग करते समय नल खुला छोड़कर जाने कितने लीटर पानी बर्बाद कर दिये अब भुगतो। बाथरूम में लगा झरना तो मानो मेरी बेबसी पर अट्टहास लगा रहा था- घंटों तक झरने के नीचे नहाने का आनंद लेते समय तनिक भी भान नहीं रहा कि कितना पानी व्‍यर्थ जा रहा। वहीं गमले में लगे फूलों की सूखी डंठल और आंगन में लगभग ठूंठ हो चुका आम और कटहल के पेड़ मेरी दशा पर मानो तरस खाते हुए बोल रहे थे – इतने व्‍यर्थ पानी बर्बाद करने के स्‍थान पर यदि हमें सींचा होता और छोटे-छोटे पौधों की सेवा की होती तो आज ये नौबत न आती। 
पूरे कॉलोनी में कहीं हरे-भरे पेड़ नहीं थे। कहीं-कहीं सूखे तने दिखलाई पड़ रहे थे। तभी बाहर कोलाहल सुनाई पड़ा। लोगों की भीड़ लगी थी, पानी वाली गाड़ी आ गई थी। लोग लाईन लगा रहे थे। मैं भी भागा-भागा गया और विनती की, कि पहले मुझे पानी दें मैं बहुत प्‍यासा हूं। पानी बांटने वाले ने बोला- ठीक है अपना वाटर कार्ड निकालो। अब ये क्‍या बला है? कौन-सा वाटर कार्ड। हे भगवान अभी तक आपने वाटर कार्ड नहीं बनवाया, फिर तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता। सरकार ने पानी के ब्‍लैक मार्केटिंग रोकने के लिए सबको वाटर कार्ड जारी किया है, बिना उसके पानी नहीं मिलेगा। पानी देने वाला कर्मचारी यह कहकर दूसरों को पानी देने में व्‍यस्‍त हो गया। मैं प्‍यास के मारे पागल हुआ जा रहा था। मेरे आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। मैं हाथ जोड़कर भगवान से विनती करने लगा- हे भगवान, अब तेरा ही आसरा है। अब तुम ही मेरे प्राणों की रक्षा कर सकते हो। तभी मेरे जीभ पर पानी की कुछ बूंदे पड़ी। मानों भगवान ने मेरी प्रार्थना से द्रवित होकर बादल को बारिश करने भेज दिया हो। 


फिर आंखों पर पानी की कुछ बूंदें पड़ी। साथ में पत्‍नी का स्‍वर सुनाई पड़ा। कब तक सोते रहोगे ऑफिस नहीं जाना क्‍या। मैं आंख मलते हुए उठ बैठा। तो मैं सपना देख रहा था। कितना भयानक सपना था। लेकिन इस सपने को सच होते देर नहीं लगेगी यदि समय रहते हम पानी और वनों का महत्‍व नहीं समझेंगे। इसलिए पेड़ लगायें और पर्यावरण को बचायें जिससे आपकी अगली पीढ़ी को इस सपने से रूबरू न होना पड़े। 

हम आम जनता

6:43:00 pm
हम आम जनता

हम आम जनता – हम आम जनता
जो है सबसे  सस्‍ता – जो है सबसे सस्‍ता
चुनावी वादों में बिन मोल बिकते हैं
नई सरकार आने तक खुशफहमी में रहते हैं

हाय री आम जनता, सरकारें तो बदली
पर तेरी किस्‍मत, वो कहां बदली

अब आम भी कहां, अमरूद भी कहां
तेरी किस्‍मत में तो पपीता भी नहीं
तू आम जनता है – आम जनता
हां, तू मुर्दा तो नहीं, पर जिन्‍दा भी नहीं

ना मुझ पर भड़कने से क्‍या होगा
अरे जिन्‍दा हो तो जिन्‍दा दिखो
तुम्‍हें तलवार चलाने कौन कहता
बस कलम ही काफी है, कुछ तो लिखो

तुम लिखो कि ये तुम्‍हारा अधिकार है
जनता की जनता के लिए चुनी हुई सरकार है

लिखो कि हमारे ‘कर’ का क्‍या किया
विकास देश का हुआ कि अपना किया
जो चुनाव से पहले तो बेकार थे
कभी पैदल तो कभी साइकल सवार थे

तुम लिखो कि वो कैसे कार-ओ-कार हैं
बंगले खजानों से कैसे माल-ओ-माल हैं
लिखो विकास गजब का हुआ जनाब है
जो पी रहे वो खून है हमारा, ना शराब है

‘शुभेश’ तुम लिखो,
तुम्‍हारी लेखनी रंग लाएगी कभी
क्‍या पता, मुर्दों में भी जान आएगी कभी

हे प्रभु - निवेदन

6:39:00 pm
हे प्रभु - निवेदन

हर भेष में तू, सब देश में तू
कण-कण में तू ही, हर क्षण में तू ही
तुम राग में हो, अनुराग में हो
तुम प्रीत, प्रेम और त्‍याग में हो

तुम मातु-पिता, तुम बन्‍धु-सखा
तुम सन्‍यासी, तुम जोग-जती
प्रभु राम तू ही, और कृष्‍ण तू ही
गौतम-महावीर-नानक तूम ही

तुम सूर तुलसी और मीरा हो
जन-जन का मान कबीरा हो
कर्म तू ही, सब धर्म तू ही
जीवन के सारे मर्म तू ही

घट बाहर भी, घट भीतर भी
घट में बसो, सब घट में रमो
सब जीव में तुम समदरशी हो
सुख-दु:ख में सदा मन हरषी हो

सर्वत्र तू ही, सर्वज्ञ तू ही
ज्ञान तू ही, मर्मज्ञ तू ही
तुम दूर नही, तुम पास में हो
तुम आस में हो विश्‍वास में हो

हम जाएं कहां कुछ भान नहीं
कहें कष्‍ट किसे कुछ ज्ञान नहीं
सर्वत्र तू ही, फिर कष्‍ट है क्‍यूं
सर्वज्ञ तू ही, फिर मौन है क्‍यूं

प्रभु मैं अज्ञानी हूं शायद
कुछ मान-गुमान हमें शायद
तुम पुत्र जानि हमें माफ करो
हमको अब भव से पार करो

अब और नहीं कुछ तृष्‍णा शेष
विनती कर जोडि़ करै ‘शुभेश’

हिन्दी दिवस

6:33:00 pm
हिन्दी दिवस

आज फिर हिन्दुस्तान में हिन्दी दिवस मनाएँगे।
साहब लोग अंग्रेजी सूट में आएंगे, हिंदी की गाथा गाएंगे।।
अधीनस्थों को अनुरोध नहीं रिक्वेस्ट करेंगे।
सब पत्रों के रिप्लाई हिंदी में देना, बस पखवाड़े भर कष्ट करो।
फिर करना अंग्रेजी वाली, मेरे ऊपर ट्रस्ट करो ।।
हमको भी उत्तर देना है, कुछ खानापूर्ति करना है।
साज-सज्जा में कमी नही हो, इस मद भी खर्चा करना है।।
हिंदी है भारत की बिंदी, सारे जग को दिखलाएंगे।
कमी नहीं कुछ करना तुम हम हिंदी दिवस मनाएंगे।।
हिंदुस्तान की किस्मत कैसी, हिंदी दिवस मनाई जाती।
पर घर-घर मे गुण कथित सभ्यों की भाषा अंग्रेजी की गाई जाती।।
वो अंग्रेजी जिसने वर्षों हम पर राज किया ।
झूठी चकाचौंध में पथभ्रष्ट समाज किया ।।
हमारे विकास, एकता, अखंडता की सबसे बड़ी बाधक अंग्रेजी की जो गुण गाते हैं।
शुभेश वही देखो आज कितने तन्मयता से हिन्दी दिवस मनाते हैं।।

प्रभु कब तक यूँ ही तरपाओगे

6:27:00 pm
प्रभु कब तक यूँ ही तरपाओगे

प्रभु जी, प्रभु जी ओ प्रभु जी
प्रभु कब तक यूँ ही तरपाओगे
नयन मूँद कर, हमसे रूठकर
कब तक हमें तुम सताओगे
प्रभु जी, ओ प्रभु जी......
मेहनत की नही है मानो कदर
भटकते रहे हम, हो दर-ब-दर
जहां से चले थे फिर पहुंचे वहीं
कब तक बता दो है केशव हमें,
पेंडुलम की तरह यूँ घुमाओगे
प्रभु जी, हे प्रभु जी..............
अकेला शहर में, मैं तन्हा डगर में
कर्मभूमि में भी अकेला खड़ा हूँ
तूने जो मुंह फेर ली हमसे माधव
घर हो या बाहर नियति से लड़ा हूँ
कोई कर्म के वश, कोई धर्म के वश
हमारी नियति भी कहाँ अपने है वश
प्रभु जी, ओ प्रभु जी...........
मेरा मर्म जाने, जगत में न कोई
हाँ मैं मानता हूँ, ये सब जानता हूँ
दिखाते हो तस्वीर तुम जिसको जैसे
समझता उसे सच है बिल्कुल ही वैसे
पर दोष किसका जो छवि देखता है?
या दोष तेरा जो सर्वज्ञ हो, मुँह फेरता है?
हम तन्हा तेरी राहों में खड़े हैं
हे केशव, कृपा बिन विकल हो रहे हैं
प्रभु जी, हाँ प्रभु जी.....................
कर्म कुछ विकट हमने शायद किये हों
तभी तो हे राघव नयन मूंदते हो
क्षमाप्रार्थी हूँ हे सर्वज्ञ केशव
उचित ही करोगे जानता हूँ मैं माधव
वो घड़ी आएगी कब बता दो हे राघव
जब तुम्हारी सुदृष्टि पड़ेगी हम सब पर
वो दृष्टि तुम्हारी जो कल्याणकारी
सकल दुःख-विपदा पर पड़ती जो भारी
प्रभु जी, ओ प्रभु जी....................
शुभेश करें विनती हे प्रभु जी, प्रभु जी
हम सबको तू अपना, हाँ अपना ही समझो
विपत्ति की कितनी कठिन ही घड़ी हो
दया-दृष्टि हम पर सदा रख ही परखो
हे प्रभु जी, हाँ प्रभु जी, ओ प्रभु जी

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

अटल बिहारी वाजपेयी....अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.

11:49:00 am
atal-bihari-vajpayee-shraddhanjali

जिन्दगी और मौत की ठन ही गई और मौत ने स्वयं को विजित घोषित कर दिया। हमारे सर्वप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी नहीं रहे। ऐसी जिन्दादिली की मिसाल मिलना मुश्किल है। उनके जैसा राजनीतिज्ञ, विचारक, कवि शायद ही फिर पैदा हो................

महाप्रयाण रथ निकल रहा अब
छोड़ चला तन भारत रत्न अब
अश्रुपूरित सजल नयन है
हे महामानव तुम्हें नमन है
अस्ताचल सूर्य भी नमन कर रहे
समर्थक क्या विरोधी भी वंदन कर रहे
आप हमारे आदर्श हैं, सदैव रहेंगे
हमारे बीच नहीं रहे, पर हृदय में बसे रहेंगे
प्रभु भी बड़ा छलिया है
हमसे आपको छीन तो लिया है
पर क्या वो हमारे दिल से निकाल पाएगी
दिल में बसी है जो छवि उसे उतार पाएगी

नमन...........अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.............

बुधवार, 15 अगस्त 2018

शिकायती लाल

2:32:00 pm
शिकायती लाल

बन्दौं तुमको गिरधर गोपाल
जगत—पिता सबके प्रतिपाल
अपनी शिकायतों का पिटारा ले,
फिर पहुंचा ये शिकायती लाल
तुम भी मुझसे त्रस्त हो गये होगे
शायद इसीलिए मुंह फेर लिये होगे
मैं क्या करूं भगवन मैं भी विवश हूं,
आपने कुछ विकल्प कहां छोड़ा है
मैं जानता हूं कि आपके पास बहुतेरे काम हैं,
पर बताएं मुझे किसके भरोसे छोड़ा है
प्रभु आप तो सर्वज्ञ हैं, फिर भी मौन हैं
बताएं हम कहां जाएं और कौन है
कर्म ही है वश मेरे, वो करता हूं
धर्म बस दया है, जो करता हूं
यूं तो मैं खुद दया का पात्र हूं भगवन तेरे
पर धरम हेतु हर जीव पर सदैव दया करता भगवन मेरे
गुरूवर कह गये हैं— दया धरम का मूल है
सद्गुरू कबीर भी कह गये—

दया राखि धरम को पाले, जग से रहे उदासी
अपना सा जी सबका जाने ताहि मिले अविनाशी

बस इन्हीं वचनों का पालन कर रहा हूं
पग—पग फूंक कर कदम रख रहा हूं
न किसी का मुझसे अहित हो
न कुछ टूटे न कोई मुझसे रूठे
पर अविनाशी ईश्वर ही मुझसे रूठ गये हैं
और किसको मनायें हम तो सचमुच टूट गये हैं

साहब तुमही दयालु हो, तुम लगि मेरी दौर
जैसे काग जहाज को, सूझे और न ठौर

कहीं और ठौर नहीं प्रभु, नाव भवसागर में हिचकोले खा रही
प्रभु हम क्या करें, कहां जाएं, कुछ समझ में नहीं आ रही

साहब से सब होत हैं, बन्दा से कछु नाहिं
राई से पर्वत करें, पर्वत राई माहिं

परंतु तुम तो जैसे मेरी परीक्षा लेने पर ही तुले हो
मानो मेरी व्यथा से आंख मूंद लिये हो
तभी तो राई समान दु:ख को भी पहाड़ बना दिये हो
शांति—प्रेम—संतोष को ही अपने पास बुला लिये हो
मैं परबत समान सुख की अभिलाषा नहीं रखता
बस मेरा कर्तव्य है, जो कर्म वही हूं करता
अब इनके अभाव में मैं क्रोध न करूं तो क्या करूं
विवश हो शिकायतों का पिटारा न खोलूं तो क्या करूं
अब तुम ही दु:ख भंजन हो, सब दुखियारी के
तो राह दिखाओ तुम, सर्व सहायी हो

न, किसी और दर की, कोई आस न शेष
प्रभु कृपा करो अब तेरे शरण 'शुभेश'

रविवार, 5 अगस्त 2018

Happy Friendship Day

5:00:00 pm
Happy Friendship Day
happy-friendship-day

मित्रता दिवस की ढेरों बधाई
हॉं आप सबों को Happy Friendship Day भाई
पर आज के दौर में सच्चा मित्र कौन है
क्या वो जो मित्र के दु:खों पर भी मौन है
या वो जो मित्र बना स्वार्थ हेतु
ना जी मित्र तो होते परमार्थ हेतु
लो फिर भगवान को ही मित्र बना लो
और समस्त दु:खों से ​मुक्ति पा लो
हॉं ये सच है, भगवान सबके मित्र बन जाते हैं
परंतु क्या सभी भक्त सच्चे मित्र बन पाते हैं
वो सुदामा सी मित्रता जिसने कृष्ण की दरिद्रता अपने नाम कर ली
वो कृष्ण की मित्रता जिसने अपना सबकुछ सुदामा के नाम कर दी

भगवान ने पग—पग पर हमे मित्र दिया है
क्या आपने उसे महसूस किया है
जन्म लिया तो मित्र मॉं बन आई
क्या निज रक्त से और कोई सींचे है भाई
फिर पिता ​बनि सम्मुख आए
प्रथम गुरू जो प्रेम, स्नेह और अनुशासन का पाठ पढ़ाए
फिर लंगोट मण्डली और भाई—बहन की वो टोली
जिन संग हम सबने खेली आॅंख—मिचौली
अपनी ही धुन में वो मस्त मलंग सा
मस्ती से भरा, नहीं फिकर किसी का
फिर boyfriend-girlfriend वाली दोस्ती
दुनिया लगे दीवानों जैसी
फिर पति—पत्नी का मित्र बन आना
सुख—दु:ख जो सम करि जाना
फिर संतान घर खुशियां लाई
जिसने बचपन की याद दिलाई
तो 'शुभेश' पग—पग पर है मित्रता
मत करो किसी से शत्रुता

हे प्रभु

4:57:00 pm
हे प्रभु
he-prabhu

हर भेष में छी, सब देश में छी
कण—कण में अहाँ, हर क्षण में अहीं
अहाँ राग में छी, अनुराग में छी
अहाँ प्रीत प्रेम और त्याग में छी
अहिं मातु—पिता, अहिं बन्धु—सखा
अहिं सन्यासी, अहीं गृहस्थी
प्रभु राम अहीं, अहिं कृष्ण भी छी
अहिं गौतम, महावीर, नानक भी छी
अहाँ सूर—तुलसी आ मीरा छी
अहाँ जन—जन केर मान कबीरा छी
कर्म अहीं, सब धर्म अहीं
जीवन केर सबटा मर्म अहीं
घट बाहेर भी, घट भीतर भी
घट—घट में रमी, हर घट में बसी
सब जीव में छी, समदरशी छी
सुख—दु:ख में अहाँ मन हरषी छी
सर्वत्र अहाँ सर्वज्ञ अहीं
ज्ञान अहाँ मर्मज्ञ अहीं
अहाँ दूर भी छी, अहाँ पास भी छी
अहाँ आस में छी, विश्वास में छी

हम जाउ कत' किछु नै बूझाए
कहि कष्ट कत' किछु नै सूझाए
सर्वत्र अ​हीं फेर कष्ट किआ
सर्वज्ञ अहाँ फेर दु:ख किआ

प्रभु हम अज्ञानी बुझि परए
किछु कर्म उलट जौं भेल होअए
पुत्र जानि अहाँ माफ करू
हमरो भवसागर पार करू
आओर हमरा इच्छा किछिओ ने शेष
विनती कर जोड़ि करै 'शुभेश'

बड़की दादी - गुरू मॉं

4:54:00 pm
बड़की दादी
barki-dadi-guru-ma

सहज शांत तेजोमयी सूरत ।
ममतामयी जगदम्बा की मूरत ।।
निर्मल ह्रदय, करूणामय दृष्टि ।
अविरल स्नेह से सींचत सृष्टि ।।

गुरू मॉं की तो छवि है ऐसी ।
स्वयं विराजे गुरूवर जैसी ।।
साहेब बन्दगी चरण कमल में ।
श्रद्धा—भाव हैं सजल नयन में ।।

तुम सम कौन कहूं उपकारी ।
जो आवे कुटिया दु​:खियारी ।।
मातृत्व स्नेह की बारिश करती ।
पल में उनकी पीड़ा हरती ।।

गुरूवर के साधना—पथ की तुम,
अविचल औ निर्भीक संगिनी ।
दया—धरम का पाठ पढ़ाती,
भव—भय दूर कराती जन की ।।

माई साहब, बड़की काकी और बड़की दादी,
केवल नाम नहीं श्रद्धा है ।
कोटि—कोटि वंदन चरणों में,
जन—जन की पावन आस्था है ।।

शुभेश करतु हैं बंदगी,
बिनवौं बारम्बार ।
बड़की दादी दया करो
विनती करो स्वीकार ।।

रविवार, 22 जुलाई 2018

मालिक बाबा

1:26:00 pm
मालिक बाबा
(परम पूज्य बौआ साहब जू)

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'मालिक बाबा' बचपन में यह नाम सुनते ही रोमांच भर जाता था। अभी भी इस नाम—मात्र से एक विलक्षण उर्वरा शक्ति का विकास हो जाता है।
मुझे आज भी बचपन की वो घटना याद है जब मैं लगभग साढ़े तीन वर्ष का था। इतनी छोटी उम्र में घटित घटना ने मेरे मन—मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला था कि वो हमेशा कल की बात लगती है।
मॉं उस समय बहुत बीमार थी। वह सुध—बुध खोकर बिस्तर पर पड़ी थी। दादी, पापा सब ने बताया कि मॉं बीमार है, भगवान से बोलो वो तुम्हारी मॉं को ठीक कर देंगे। मैं उस समय भगवान शब्द से भी अनजान था। घर में मॉं के बिस्तर के पास ही मालिक बाबा की तस्वीर लगी थी। मै। वहां जाकर खड़ा हो गया और निश्छल भाव से मालिक बाबा को सम्बोधित कर कहने लगा— '' हे मालिक बाबा हमर मॉं के सब दु:ख दूर करियौ ओकरा ठीक क' दियौ।'' और मेरी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। तभी मॉं ने आवाज लगायी— ''हां देखै ने हम ठीक छियै, बाबा तोहर बात सुनि लेलखुन— हम ठीक भ' गेलियौ।'' उनकी आंखों से भी अश्रु—धारा प्रवाहित हो रही थी।
 आज भी वो निश्छल प्रेम को याद करता हूं और ज्ञानेन्द्रियों के जाल से मुक्त होकर उसी भाव में बहकर अपने आराध्य सद्गुरू की आराधना करना चाहता हूं। परंतु इनकी शक्ति और माया का कोई पार नहीं है। जब कभी परिवार में कोई परेशानी होती, हम दौड़ कर मालिक बाबा के पास पहुंच जाते। हमें पूर्ण विश्वास था कि वो उसका हल जरूर निकालेंगे और सदैव ऐसा ही होता था।

दादी के अनन्य प्रयास, हमारे प्रति अगाध प्रेम तथा मालिक बाबा में पूर्ण विश्वास के फलस्वरूप वो सुखद घड़ी भी आ गई जब अल्पायु में ही मुझे सभी बांधवों सहित अपने परम आदरणीय मालिक बाबा के और निकट होकर उनके शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अब वे हमारे मालिक बाबा के साथ—साथ परम श्रद्धेय पूज्य सद्गुरूदेव भी थे।
 किसी भी आकुलता के समय उनकी कुटिया पर पहुंचकर शांति मिल जाती थी। मैं थोड़ा संकोची प्रवृति का व्यक्ति हूं। इसलिए कई बार मैं अपनी आकुलता में कुटिया पर चला तो जाता था परंतु वहां सबों के सामने कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन मालिक बाबा के दर्शन मात्र से ही आकुलता शांत हो जाती थी। उनकी शीतल वाणी तो अंतरतम को शीतल कर देती थी। दरभंगा में भी जब कभी बाबा कहीं आते थे तो हम लोग भागकर उनकी बंदगी करने जाते थे और उस दिन को धन्य मानते थे कि आज उनके दर्शन हुए।
 एक और बाल सुलभ घटना स्मरण हो रही है जिसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जाता। बचपन में परीक्षा के समय प्रत्येक बच्चों में परिणाम को लेकर आशंका/भय व्याप्त रहता है। इसलिए कई साथी भगवान के आगे घरों में अथवा मन्दिरों में परीक्षा में लिखने वाले पेन/कलम को रख देते थे और उसी कलम से परीक्षा में लिखते थे, इस से उनमें परिणाम को झेलने की शक्ति मिलती थी। (ऐसा उस समय मेरे जैसे कई छात्रों का विचार था) मेरी भी बोर्ड की परीक्षा थी। मैं भी बेहतर परिणाम की अभिलाषा में मालिक बाबा से आशीर्वाद लेने पहुंचा(हमारे लिए एकमात्र सब कुछ हमारे मालिक बाबा थे/हैं)। मैं साथ में एक नहीं दो—दो नई कलम ले गया था। कुटिया पर पहुंच कर बाबा को बंदगी की। बाबा ने कुशल—क्षेम पूछा और तत्पश्चात भोजन ग्रहण करने को कहा। मैं संकोचवश कुछ बोल नहीं पा रहा था और वहां से भोजन के लिए हट भी नहीं पा रहा था। बाबा ने पूछा क्या बात है और अपनी समस्या बताने के लिए कहा। आखिरकार मैंने अपनी संकोच को दूर कर बोला — '' बाबा अपनेक आशीर्वाद लेब' आयल छी, मैट्रिक के परीक्षा छै।'' और एक पेन निकालकर आगे कर दिया। बाबा पहले हंसे, फिर बोले— ''देखू बौआ बिनु पढने जौं सब आशीषे सं' पास भ' जेतै त अपने सोचियौ कतेक अकर्मण्यता आबि जेतै। अहि लेल पढ़ाई त बहुत जरूरी छै। मन लगा क पढू अवश्य पास होयब।'' मैं थोड़ा निराश होने लगा। फिर बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथ से कलम ले लिए और मेरे दायें हाथ पर उससे भगवत् नाम लिखने लगे। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने झट दूसरा पेन भी आगे कर दिया और बोला—''बाबा कहीं बीच में ही पेन खत्म भ' गेलै त, तैं इहो पेन पर कृपा करियौ।'' बाबा हंसते हुए उस पेन से भी  मेरी हथेली पर लिखने लगे। फिर उन्होंने अत्यंत कृपा की जिसे याद कर आज भी शरीर रोमांचित हो उठता है। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे मस्तिष्क पर रख दिया। आशीर्वाद का ऐसा अनुग्रह पहले कभी नहीं प्राप्त हुआ था, मैं अभिभूत हो उठा।

अवतार जिस गुरूदेव का युगधर्म ले होता सदा।।
उस महामानव के लिए दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा।।
हे नाथ जग में प्रकट हों तव संत की शुभ आत्मा।
जो कलह—दु:ख—कुविचार का जग से करें नित् खात्मा।।
संत रूप भगवान,
            प्रकटे जग में सर्वदा।
दे सबको शुभ ज्ञान,
            करैं सुखी संसार को।।
                            (सद्गुरूदेव द्वारा रचित प्रार्थना से)
अनेकों ऐसी छोटी—बड़ी घटनाएं हैं जो हमें निश्चिंत करती थी कि हमारे साथ हमारे मालिक स्वयं मालिक बाबा हैं। हमारी सभी दु:खों/समस्याओं का हल निकालने वाले, हम पर कृपा करने वाले साक्षात प्रभु।
 मालिक बाबा के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि आज भरवाड़ा कबीर आश्रम में होने वाले इतने विशाल वार्षिक भण्डारा के शुरूआती वर्षों में बाबा उसके आयोजन के लिए पूरे वर्ष तक प्रतिदिन अपने एक समय के भोजन बचाकर रखते थे ​ताकि भण्डारा में कोई भी संत द्वार से भूखे न लौटें। सभी दीन—दु​:खियों की सेवा में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उस समय लोगों के पास इलाज के लिए न धन होता था और न ही कोई सुविधा थी। उन्होंने अपने विलक्षण जड़ी—बूटी के ज्ञान का उपयोग कर लोगों की नि:शुल्क/नि:स्वार्थ सेवा देना प्रारम्भ किया और पूरे लगन से दीन—दु:खियों की सेवा में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

मैं जब अपनी नौकरी लगने की सूचना देने उनके पास गया तो वे अत्यंत हर्षित हुए। फिर जम्मू जैसे आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग की बात बतलाई तो उन्होंने भगवत सुमिरन की सलाह दी और सब कुछ भगवान पर छोड़ने को कहा। उस समय मुझे यह कतई भान नहीं था कि यह मेरी उनसे अंतिम भेंट होगी। मैं जब जम्मू जाने की तैयारी कर रहा था तो दिल्ली में उनके अत्यंत अस्वस्थ होने की सूचना मिली। मन व्याकुल हो गया और आकुलता में मैंने अपने मालिक बाबा के स्वास्थ्य लाभ हेतु विनती लिखी—

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

परंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2009 के आखिर में वो सबसे दु:खद दिन भी आया। उन दिनों में मैं अपनी सेवा के प्रारम्भिक दौर में जम्मू में था। पापा का फोन आया, वो बोले— ''हम सब अनाथ भ' गेलौं, मालिक बाबा नै रहलाह।'' शरीर सुन्न पड़ गया। मालिक बाबा ​के बिना हमलोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। सचमुच हम अनाथ हो गये।
    हे परम पूज्य श्रद्धेय मालिक बाबा हम आज भी आपके बताये राह पर चलने का प्रयास करते हैं। प्रयास इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि कभी—कभी उलझनें, बाधाएं, समस्याएं इतनी कमर तोड़ देती है कि राह से भटकने लगता हूं। अंधविश्वासी भी बन जाता हूं। मालिक बाबा आपके बिन हम सचमुच अनाथ हैं। अपने हिसाब से सबकुछ अच्छा करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। भगवत् भजन के लिए मिलने वाले हर मौके पर सदैव उन परम् पुरूष परमात्मा के निराकार स्वरूप का ध्यान करते हैं, जिसका भेद आपके साकार रूप ने कराया था। फिर भी बाधा—विघ्न रूपी दीवार नहीं टूटती, जिन्दगी उलझती चली जाती है। मन अशांत होकर अंधविश्वासी बना देता है। यहां—वहां सबको प्रणाम करते हुए सबसे पागलों की तरह क्षमा—याचना करता रहता हूं। उन राहों को जिनके बारे में कभी आपने बताया था कि वो सब व्यर्थ हैं, केवल परमात्मा का भजन और कर्म ही सब कुछ है, पर अनायास ही चल पड़ता हूं। हे परम पूज्य मालिक बाबा हमें शक्ति प्रदान कीजिए की हम परमात्मा के मार्ग पर दृढ़ होकर प्रगतिशील रहें।
हे परम पूज्य गुरूदेव जू, हम अनाथ पर दया कीजै।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै,
प्रभु मोहि​ अपने शरण लीजै।।

    शुभेश   
सप्रेम साहेब बन्दगी—3

मंगलवार, 17 जुलाई 2018

बचपन

10:57:00 pm
बचपन

स्वप्निल नैन निहारत रे मन,
कहाँ खो गया वो बचपन
वो बचपन जो बेफ़िकरा
सर्वत्र प्रेम बिखरा बिखरा
करम धरम का भान नहीं
मन मे कोई गुमान नहीं
बन पंछी उड़ता रहता
परीलोक जाकर बसता
सब से प्रीत सभी कोई मीता
सुंदर सहज भाव नहीं रीता
सहज प्रेम घट भीतर था
तन हो न, मन निर्मल था
निर्मल घट में राम थे बसते
हल्की सी मुस्कान से सजते
शुभेश कितनी सहज कितनी सुन्दर,
वो दुनिया थी अधिकार कर्तव्य से जुदा जुदा।
मन्दिर-मस्जिद मन में नहीं
एक ही लेखे राम खुदा।।

शनिवार, 14 जुलाई 2018

यौ भगवान - O My Lord - हे भगवान

3:46:00 pm
यौ भगवान

shubhesh
यौ भगवान, यौ भगवान
किया बनेलौं हमरा,ई नइ जानि
यौ भगवान..............

हम अज्ञानी, अवगुणक निशानी
अपन बुराई हम कतेक बखानी'
हमरा सन दु​र्बुद्धि नै कोनो सन्तान ।
यौ भगवान.................

सर्व दु:खदायी, कष्ट सहायी
अमंगलकारी आ प्रेम भिखारी
हमरा सन साजन नै सगरो जहान ।।
यौ भगवान.................

हम लोभी अति तामसी ढोंगी
जिद्दी, क्रोधी, दिखावटी जोगी
हमरा सन भ्राता—मित्र नै कोनो बेकाम ।।
यौ भगवान.................

हमरा सं' केकरो जे उपकार होइतै
हमरो कारण जे केओ खुश भ' जैतै
हमरो पाबि सब धन्य कहाबै
तखन ने 'शुभेश' बुझता जे हमहूं इन्सान ।।
यौ भगवान.................

मंगलवार, 1 मई 2018

विकास

10:47:00 pm
विकास
देश तरक्की कर रहा है
हम विकसित हो रहे हैं
हमारे दादे-परदादे के ज़माने में, 
पक्की सड़कें भी नहीं थी
अब मेट्रो और बुलेट ट्रेन की बात होती है
पहले अधिकारी के सामने आने पर भी लोग भय खाते थे
कहीं डाँट पड़ जाए तो पतलून गीली हो जाती थी
अब तो लिखित कार्रवाई का असर भी नहीं होता
उनकी बधिर होने की क्षमता का भी विकास हुआ है, जूं तक नही रेंगती
पहले औरतें पर्दा करती थी, मर्द भी धाक करते थे
वो नारी सम्मान, मातृ-पितृ पूजन, वो संस्कार की बातें
वो पलक उठाये बिन बातें करना, पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदना
वो अश्कों का कभी बाहर आना, कभी अंदर ही रह जाना
वो सब इक गुजरा दौर था
ये तो नया दौर है
तब प्रेम भी सर्वत्र था
मातृ-प्रेम, पितृ-प्रेम, भातृ-प्रेम, मित्र-प्रेम
प्रेयसी-प्रेम, पत्नी-प्रेम, पति-प्रेम
प्रेम भी एक संस्कार था
आज उसका भी विकास हो गया है
स्वार्थ से अटूट गठबंधन हो गया है
पहले नारी के अनेक रूपों में भी
माँ-बहन-बेटी नजर आते थे
परंतु आज दृष्टिकोण का भी विकास हो गया है
आज नारी के हर रूप में प्रेयसी और भोग्या ही नजर आती है
भई इंसानियत का विकास तो चरम सीमा तक पहुँच गया है
इससे अधिक विकास तो कोई माई का लाल कर भी नही सकता
हमने भेद-भाव की हर सीमा को हटा दिया है
जवान और बच्ची का भेद-भाव तक मिटा दिया है
हमने शोषित और शोषक का फर्क भी मिटा दिया है
विकास की परिभाषा में नया अध्याय जोड़ दिया है
शोषितों के साथ-साथ, शोषकों का भी पोषण करते हैं
बोलो 'शुभेश' क्या अब भी कहोगे की विकास नही हुआ और हम शोषण करते हैं।।


रविवार, 29 अप्रैल 2018

जीवन की डगर

10:33:00 am
जीवन की डगर
वो पहला क्रन्दन, फिर चुप हो मुसकाना ।
धीरे से पलकें उठाना, 
मानो कलियों की पंखुड़ियों का खुलना ।।
फिर वो बाल-हठ, चपलता, 
शैशव से आगे बढ़ती उमर ।
फिर पढाई-लिखाई, कुछ करने की चाहत भरा वो जिगर ।।
अल्हड़ जवानी में पहला कदम,
किशोर मन की दुविधा भरी वो डगर ।
इस सफर में मिली जब वो इक हमसफ़र,
फिर प्रेम के पथ की वो अल्हड़ डगर ।।
फिर गृहस्थी की आई नई सी डगर,
हर डगर के मुहाने पर बस इक डगर ।
न उधर, न इधर, न कहीं फिर किधर,
न अगर, न मगर बस डगर ही डगर ।।
बस चलना है, चलते जाना है, रुकना नहीं ये कहती डगर ।
'शुभेश' ठहराव का तो कोई नहीं है जिकर ।।
हाँ इक शांति, अनंत शांति का है अवसर ।
मगर फिर बची ही कहाँ है डगर ।।

रचना

10:10:00 am
रचना 
रचना क्या है, कुछ शब्दों का ताना-बाना ।
कुछ अपनी, कुछ सबकी, बात वही जाना-पहचाना ।।
कुछ शब्दों से छंद बने और गीत बने ।
कुछ छंदों ने काव्य रूप मनमीत गढ़े ।।
कुछ रचना ने सुलझाई अनसुलझी गुत्थी ।
भेद खोल जीवन के ढंग दिखाई है सच्ची ।।
कुछ महाकाव्य बन पूजित हैं, ईश्वर के समकक्ष हुए ।
जीवन को परिभाषित करती, कुछ से जीवन को लक्ष्य मिले ।।

सोमवार, 18 सितंबर 2017

समन्‍दर और पत्‍थ्‍ार

12:36:00 am
समन्‍दर और पत्‍थ्‍ार
समन्‍दर तीर पे आकर,
मिली पाषाण से जाकर
कि तुम पाषाण तुम जड़वत,
कि तुम नादान मैं अवगत ।।

जो गुजरे पास से होकर,
वही इक मारता ठोकर

कहीं आना नहीं जाना
मेरे ही रेत के भीतर,
है तुमको दफन हो जाना

मुझे देखो मैं बल खाती
ऊफनती हूं मचलती हूं,
लहरों पे गीत मैं गाती
गगन से झूमकर मिलती,
मगन मैं नाचती-फिरती
मेरे संग तू भी चल आकर,
उसे बोली तरस खाकर ।।

सुन कर के समन्‍दर की,
मदभरी बातें और ताने
पाषाण यूं बोला,
तरस मत खा तू मुझपर
और न दे कोई मुझे ताने
जगत में मैं ही, रहा शाश्‍वत
चिरंतन काल से अब तक ।।

मैं ही चक्‍की हूं जो,
पीसकर तुम्‍हारा पेट हूं भरता
खुद तो क्षीण होता हूं,
मुंह से ऊफ भी न करता ।।

अगर तुम पूजते मुझको
मैं शालिग्राम होता हूं
अगर तुम चाहते मुझको
मकबरे-ताज होता हूं ।।

अगर तुम जौहरी हो, मुझको तराशो
फिर हीरा हूं, किस्‍मत धनी पत्‍थर
अगर तुम ठोकरें मारो
फिर पत्‍थर हूं, बस पत्‍थर ।।

यहां पर नारियां अबला बनी
प्रताडि़त होती है
और बेटियां तो जन्‍म से
पहले ही मरती हैं ।।

दुर्गा, सरस्‍वती, लक्ष्‍मी का
गुणगान होता है
यहां पाषाण मुर्तियों का ही
सम्‍मान होता है...।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)


सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान

12:32:00 am
सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान
‘सहज’, ‘सदय’ दोऊ मित्र परस्‍पर
विद्या के धनी, गुणी, प्रवीण धुरंधर
अल्‍पकाल स‍ब विद्या पाई
सरकारी सेवक बनने हेतु किस्‍मत आजमाई

‘सहज’ नाम अनुरूप सहजता से
सरकारी सेवक बन जाते हैं
परंतु ‘सदय’ अनेकों प्रयास के बावजूद
किस्‍मत को कोसते रह जाते हैं

दो वर्ष के पश्‍चात आखिरकार
एक प्रतिष्ठित निजी संस्‍थान ने
इनकी काबिलियत को पहचाना
सेवा का सुअवसर देकर इन्‍हें
और स्‍वयं को धन्‍य माना

‘सहज’ कार्य करें पूर्ण विनय से
प्रतिभा की नहीं कमी ‘सदय’ में

काज करें दोनों ही ऐसे
कर्म ही धर्म हो उनका जैसे

‘सदय’ ने निजी संस्‍थान में बेहतर प्रदर्शन कर
तरक्‍की पर तरक्‍की पाई
बोनस, इन्‍क्रीमेंट आदि को पाते हुए
कर्मचारी से अधिकारी वर्ग में पदोन्‍नति पाई

वहीं ‘सहज’ सरकारी सिस्‍टम के
चक्रव्‍यूह में उलझ कर रह गये
यहां अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना
बेमानी है, नादानी है भूल गये

यहां तो वरिष्‍ठों से सुना
कथन सटीक बैठता है
‘तुम मत सोचो कि
ऊंट किस करवट बैठता है

तुम तो हाथी की तरह
मस्‍त विश्राम करो
औरों को करने दो काम
तुम बस आराम करो

यदि लोगे अधिक टेंशन
तो श्रीमतीजी पाएंगी पेंशन’

भाई सरकारी सिस्‍टम का
हाल तो बिल्‍कुल निराला है
जो चाटुकार है, रसूखदार है
बस उसी का बोलबाला है

जो मेहनती है, वो
सबसे परेशान व दु:खी है
‘शुभेश’ जो कामचोर हैं, वो ही
सम्‍मानित और सुखी हैं।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

तंद्रा—भंग

12:30:00 am
तंद्रा—भंग
आज मन उदास था
परिस्थितियों से निराश था
ना कोई साथी न कोई सहारा था
जिन्‍दगी ने मानो कर लिया‍ किनारा था

नौ‍कड़ी की तलाश में
आज फिर निकल पड़ा
जो बची-खुची रेजगाड़ी थी
उसे ही पर्स में रख चल पड़ा

बस की खिड़की वाली सीट
मैंने पकड़ ली
मेरे विचारों के साथ-साथ
बस ने भी रफ्तार धर ली

अगले स्‍टॉप पर
एक षोडषी ने बस में प्रवेश किया
मेरे बगल की सीट पर
झट कब्‍जा कर लिया

कब तक मैं यूं ही भटकता फिरुंगा
क्‍या मैं भी कभी
ऐसी किसी षोडषी से मिलूंगा

नयन मूंद कर मैं,
स्‍वप्‍नलोक में खोने लगा
तभी उस षोडषी का हाथ
मेरे सीने पर चलने लगा

लगता है मेरे जख्‍मों पर
वो मरहम लगा रही है
मेरा दर्द समझ कर मुझे
अपना बना रही है

अचानक बस झटके से रूकी,
मेरी तंद्रा टूटी

अब न तो मेरा पर्स दिख रहा था,
न ही वो षोडषी दिखी
मैं जिसे स्‍वप्न-सुन्‍दरी समझ रहा था,
वो कमबख्‍त पॉकिटमार निकली।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मेरे राम

12:26:00 am
मेरे राम
मेरा राम न जन्‍म है धरता,
हर घट भीतर में वो बसता ।
                                    मैं नहीं पूजूं उनको भाई,
                                    जो रावण से लड़े लड़ाई ।
मेरे राम को प्रेम सभी से,
मिलते सहज भाव सब ही से ।।
                                     मैं ना ढूंढू मन्दिर-मस्जिद,
                                     ना गिरिजा ना कोई शिवालय ।
मन के भीतर ही मैं झांकू,
निर्मल-मन-चित्‍त है देवालय।।
                                      राम नहीं मन्दिर में रहते,
                                      बच्‍चों की मुस्‍कान में बसते ।
बच्‍चों सा निर्मल बन जाओ,
राम को अपने सम्‍मुख पाओ ।।
                                       निराकार स्‍वरूप है उनका,
                                       सत्‍य नाम हैं सब ही उनका ।

                   राम चरण गहि कहें ‘शुभेश’,
                   करहुं दया नहिं व्‍यापे क्‍लेश ।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

देश का विकास

12:23:00 am
देश का विकास

माननीय जी देश का हो रहा विकास है ।

घोटाला-भ्रष्‍टाचार-दंगा मुक्‍त भारत
आपने लिखी विकास की नई ईबारत
वैदेशिक सम्‍बंधों में बढ़ी मिठास है..........।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है....।।

अमरीका, इजरायल, जर्मनी और जापान
सबसे बनाए मधुर सम्‍बंध और विकास को किया गतिमान
परंतु आंतरिक सम्‍बंधों में अब भी वही खटास है....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है...........।।

नोटबंदी के चक्‍कर में पूरा देश पस्‍त हो गया
अच्‍छे दिन आएंगे यह सोच सब कष्‍ट सह गया
भ्रष्‍टाचारी सलाखों के भीतर होंगे और काला धन बाहर आवेगा
जाने कब पूरी होगी यह आस है.....................।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है विकास है...।।

रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं
गरीबी तो नहीं, हां गरीब मिट रहे हैं
भारत के भविष्‍य कर रहे रोजगार की तलाश हैं....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है..........।।

हमारे सच्‍चे पालक, प्रतिपालक, भारतीय किसान
कोई क्‍या जानें मंहगाई के इस दौर में खेती नहीं आसान
खेती के लिए भी कर्ज में डूबे हुए हैं
इनका विकास तो दूर की कौड़ी है,
अपने ही खेत में बंधुआ मजदूर बने हुए हैं
एक तो बाढ़ – सुखाड़ की त्रास है
ऊपर से सरकारी नीतियों ने भी किया निराश है.....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है............।।

माननीय जी से विनम्र निवेदन, 
भाषण-सम्‍भाषण से ऊपर हो रोजगार सृजन ।

हर हाथ को काम और हर परिवार को आवास हो
जन-जन की भागीदारी के बिना अधूरा हर विकास है
माननीय जी सुनेंगे सबकी आवाज, यही इक आस है....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है................।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

1:13:00 am
मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपे खबर को पढ़कर स्तब्ध रह गया। आज लोगों की मानवीय संवेदनाएं इस स्तर तक खत्म हो चुकी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कोलकाता के महानगरीय परिवेश और भाग—दौड़ भरी जिन्दगी के बीच एक 72 वर्षीय वृद्धा भीड़—भाड़ वाले पार्क में, जो कि उसके घर के सामने थी, में आत्मदाह कर लेती है और वहां मौजूद सारे लोग तमाशबीन बने देखते रह जाते हैं। किसी ने भी उसे बचाने का प्रयास नहीं किया। यह बहुत ही भयावह है। 
     बंगभूमि की राजधानी कोलकाता हमेशा से बुद्धिजीवियों का केन्द्र रही है। यहां से अनेक ऐसे महान समाज सुधारक उभरकर आए हैं जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी है। उसी कोलकाता में कभी ये दिन देखना पड़ेगा, यह कल्पना से परे था।
     आज हमारी संवेदनाएं फेसबुक और ट्वीटर तक सिमट कर रह गयी है। लोगों की सोच को मोबाईल और इन्टरनेट क्रांति ने कुंठित कर दिया है। आस—पास होने वाले घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने, उसे रोकने के लिए लोगों के पास वक्त नहीं है। डिजिटल क्रांति ने लोगों के बीच होने वाले सीधे सम्वाद/सम्पर्क को ह्वाट्सअप, फेसबुक और ट्वीटर तक सीमित कर दिया है। इसके दूरगामी प्रभाव अत्यंत भयावह होने वाले हैं। क्या आप ऐसे समाज की परिकल्पना कर सकते हैं, जिसमें समाज के किसी सदस्य को दूसरे से कोई सरोकार न हो, कदापि नहीं। आज हमें खासकर युवा वर्ग को आगे बढ़कर समाज को इस भयावह परिस्थिति से बचाना होगा। हम प्रकृति के बनाये सबसे बुद्धिमान व सुंदर रचना हैं। सामाजिक व्यवस्था का आधार ही उसके सदस्यों के बीच आपसी सामंजस्य और तालमेल है। यदि यह ही न रहा तो सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी।
     एक सजग व अच्छे सामाजिक सदस्य होने के नाते सबों का कर्तव्य है कि उपरोक्त घटना की पुनरावृति कदापि न हो। यथासम्भव यदि किसी एक भी व्यक्ति ने उस वृद्धा को बचाने का प्रयास किया होता तो वह शायद आज हमारे बीच होती। वह कोई भी हो सकती है, केवल इसलिए मूकदर्शक बने रहना कि वह हमारी परिचित नहीं, यह तो घोर अमानवीयता का परिचायक है।
     कृपया सोच बदलें और बेहतर समाज के निर्माण में सहयोग दें।
                                           ——— शुभेश

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

जिन्दगी

10:18:00 am
-:: जिन्दगी ::-

अपना भविष्य सँवारने के खेल में,
वर्तमान दाँव पर लगा रहे हम ।
दो पल की खुशी की खातिर,
हर पल का चैन गंवा रहे हम ।।

सुकून से मिले दो वक्त की रोटी,
इसलिए परोस कर रखी थाली ठुकरा रहे हम ।
बच्ची को मिले हर वो सुकून, 
जिसकी चाहत थी मुझको,
इसलिए उसके संग बच्चा बन, 
वो मासूम बचपन नहीं जी पा रहे हम ।।

खुद को आशीर्वाद देने लायक, 
सामर्थ्यवान बनाने की कोशिश में,
मातृ—पितृ व श्रेष्ठ जनों के आशीष को, 
प्राप्त नहीं कर पा रहे हम ।
स्नेह की बारिश करने की जुगत में, 
अनुजों—प्रियजनों को स्नेह नहीं दे पा रहे हम ।।

जीवन—संगिनी को हर खुशी देने और 
उनके साथ भविष्य में सुख—लहरियां लेने के प्रयास में,
उनके वर्तमान को नजर अंदाज कर रहे हम ।।

तुझे बेहतर बनाने की कोशिश में 'शुभेश',
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम ।
हाँ माफ करना मुझे ऐ जिन्दगी, 
तुझे जी नहीं पा रहे हम ।।
                             ~~~ शुभेश

रविवार, 1 जनवरी 2017

Wishing Happy New Year

12:15:00 am
Happy New Year

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All times polite
No time bear.
Oh! my dear
Happy New Year.

Sometimes come flood
Sometime sear.
But Oh! my dear
Happy New Year.

When comes flood
Don’t go pier.
Oh! my dear
Happy New Year.

O dear, O dear
I’m only your lover
In this new year
Much more eats pear.

And remember
Don’t show tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

बुधवार, 17 अगस्त 2016

सुन रे मानव अब तो संभलो

3:30:00 pm
अब तो संभलो

सुन रे मानव अब तो संभलो, मत प्रकृति से खिलवाड़ करो।
तुम हो कर्ता की उत्तम रचना, मत वनों का संहार करो।।

जिस कर्ता ने तुझे संवारा,
लोभ के वश हो उसे उजारा।
                         जीवनदायिनी पेड़ उखारे,
                         छिन्न—भिन्न कर दिये नजारे।।

जो तेरा है जीवन—रक्षक, जिस वायु से होते पोषित।
बड़े—बड़े उद्योग लगाकर, उस वायु को किया प्रदुषित।।

पर्वत को भी नहीं है छोड़ा,
यहां वहां हर जगह से तोड़ा।
                            वन उजाड़े और नदी को बांधा,
                            प्रकृति की हर सीमा को लांघा।।

जिसने ये संसार बनाया,
जीवन—ज्योति धरा पर लाया।
                           कृत्य भला ये कैसे सहता,
                           मूक—बधिर सा कब तक रहता।।

अति दोहन से जल स्रोत सुखाये,
बूंद—बूंद को जी तरसाये।
                          कहीं बाढ़—रूपी आयी विपदा,
                          और कहीं है बादल फटता।।

कहीं बाढ़ है, कहीं सूखाड़,
चहूं ओर मचा है हाहाकार।
                          चेत—चेत अब भी 'शुभेश',
                          बस पेड़ लगा और पेड़ लगा, वरन् नहीं बचेगा कुछ भी शेष।।

''प्रकृति के अंधाधूंध दोहन की यह परिणति है।
पेड़ बचाओ, हरियाली लाओ, तभी हमारी होगी सद्गति है।''
                                                             ............शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

12:42:00 pm
सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।
सभी कर्मचारियों को अंगूठा दिखाता, पे कमीशन आया।
भैया पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।।

पे कमीशन ने भैया बस लक्ष्य यही इक ठाना है।
गुजर—बसर करते जैसे, वो बंधुआ मजदूर बनाना है।।
जब दिल्ली वालों ने लाख रूपये कर लिए वेतन।
तब चुप्पी साधे बैठा रहा पे कमीशन ।।

आटे—चावल का जाने कौन—सा मोल—भाव किया।
मात्र 18000 रूपये का न्यूनतम वेतन, भारत सरकार को रिपोर्ट दिया।।
15750 से बढ़ाकर 18000 का वेतन, कुल 2250 रूपये बढ़ाने वाली।
सभी सरकारी कर्मचारियों की खिल्ली खूब उड़ाने वाली।।
ये सरकार तो और निराली निकली।
खुद को भामाशाह बताने वाली निकली।।

मीडिया में खूब बढ़ा—चढ़ा कर पेश किया।
वेतन आयोग को ऐतिहासिक घोषित किया।।
वाकई वेतन आयोग तो ऐतिहासिक है।
द्वितीय वेतन आयोग से भी न्यूनतम वृद्धि, ऐतिहासिक तो है।।

हमारे माननीय सांसद कहते हैं, 
50000 में उन्हें अतिथि को चाय तक पिलानी मुश्किल है।
भारत की गौरवशाली परंपरा का,
दायित्व निभानी मुश्किल है।।

​फिर हमें वही सांसद 18000 में पूरे परिवार चलाने कहते हैं।
सहर्ष कैबिनेट प्रस्ताव पास करती, विरोध के स्वर नहीं उठते हैं।।
खुद एक सत्र भी कार्य किया और पूर्ण पेंशन तक प्राप्त किया।
लेकिन हम सरकारी सेवक, 60 वर्ष की उम्र तक कार्य करें।
फिर भी पेंशन लाभ से मरहूम रहें।।

इन सब बातों से वेतन आयोग को कोई सरोकार नहीं।
उन्हें सरकार से मतलब है, सरकारी सेवक से बेमतलब का प्यार नहीं।।

पहले दिल्ली वाले विधायक, लाख रूपये कर गए खुद का वेतन।
अब मुम्बई वालों ने कर लिए 2 लाख रूपये अपना वेतन।।
काश हमें भी ऐसे अधिकार मिले होते।
कम—से—कम रोटी दाल के पूरे पैसे लिए होते।।

अब थोड़ी—थोड़ी बात समझ में आती है।
महलों में रहने वाले को रोटी—दाल का भाव कहां पता चल पाती है।।
अब तो मोदी जी का दिखाया सब्जबाग भी लूट गया।
हां अच्छे दिन आएंगे ये सपना "शुभेश" का टूट गया।।

रविवार, 12 जून 2016

हे भगवान अहां महान

6:52:00 pm
हे भगवान अहां महान ।
करू कृपा यौ कृपानिधान ।।

छोट—छिन हम बुद्धि—बल हीन
अहांक महिमा सं' अनजान ।
ज्ञानक दीप जगा दियअ भगवन
बनि जाए जिनगी स्वर्ग समान ।।

सब बाधा के काटि सकी हम
तानि कै बुद्धिक तीर कमान ।
प्रगतिक राह पर बढैत चली हम
पाबि क' अहांक कृपा महान ।।

दोष हमर सब माफ करू अहां
हम अज्ञानी आ नादान ।
प्रेमक बरखा में नहा दियअ भगवन
बुझि के 'शुचि' कै निज संतान ।।

करू कृपा यौ कृपानिधान ।।
हे भगवान ............
करू कृपा...........
                              .......शुभेश

रविवार, 5 जून 2016

तेरी याद

11:16:00 pm
तेरी याद

सूनी सूनी अंखिया मेरी चितवत है चहु ओर ।
कहां छुपी है मेरी चन्दा, ढूंढे तुझे चकोर ।।

जहां भी देखूं कोई गुड़िया, लगे है जैसी मेरी सोना ।
जैसे मुझसे बोल रही हो, पापा देखो मैं ही हूं ना ।।

कहीं भी देखूं कोई सूरत ।
ममतामयी मां की कोई मूरत ।।

याद तुम्हारी मुझे सताये ।
अधर हैं सूखे नयन भर आये ।।

तन भीगा, दर्पण भीगा है ।
नयन धार से बसन भीगा है ।।

मन प्यासे को कौन बताये ।
नयन नीर कब प्यास बुझाये ।।
                                 ....शुभेश

रविवार, 29 मई 2016

हे दीन दयाल दया कीजै

12:50:00 pm
हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।
                                      .....शुभेश
(परम पूज्य गुरूदेव के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रभु से विनती हेतु नवम्बर,2009 में रचित)

गुरू की वाणी अमृत जैसा

12:37:00 pm
गुरू की वाणी अमृत जैसा
Gurudev+ki+vani
गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।
गुरू की वाणी...............

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।

जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।

गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।

गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।
                            .....शिवेश

सतगुरू की महिमा

11:55:00 am
सतगुरू की महिमा

Param+Pujya+Gurudev+Shriyut+Baua+Saheb

अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ...............................................
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा.......................................
                                                                     .....शिवेश

रविवार, 8 मई 2016

सुख-दु:ख

10:44:00 am
ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है
सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

बिना धूप के छाँव का आस्तित्व ही क्या
अंधियारे के बिना उजाले का महत्व ही क्या
गोरे हैं तब ही जब काले हैं
कहीं उदासी है फिर तब चित्त मतवाले हैं

जब जग में सब सुन्दर ही होते
कोई सुन्दर नहीं कहीं पर होते फिर
क्या होता जब दिवस—दिवस ही रहता केवल
नहीं अंधियारी रैना की क्या कोई जरूरत?

है कुरूपता से परिभाषा सुन्दर की
भेद यहीं से मिलता है नारी—नर की
ज्यों अपंगता है जग में तन सुन्दर है
कहीं खुरदुरे श्यामल चेहरे, कहीं पर छवि मनोहर है

कहीं लालच है, कामुकता है, फिर कहीं ईमानदारी है, वैराग्य है
कहीं निर्धनता है, व्याधि है, तो कहीं अमीरी है, आरोग्य है

यदि है क्रोधी कोई मोही, तब ही शांत चित्त निर्मोही
अन्याय नहीं फिर न्याय ही कैसा, जैसे पुण्य पाप बिनु वैसा

अरे भगवान के आस्तित्व के लिए भी, शैतान का होना बहुत जरूरी है
इसलिए ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है, सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

जो आज दु:खी है, कल सुखी भी होगा
तम का सीना फाड़ सूरज निकलेगा
तुम यत्न किन्तु बस इतना करना
नित कर्म किए जा और ईश चरण में ध्यान तुम धरना

फिर 'शुभेश' सुख ही सुख का, रहेगा तेरे घर डेरा
नहीं मिलेगी निशि अंधियारी, नहीं व्यापेगा तुझको कष्ट घनेरा
                                                                      .....शुभेश 

निवेदन

10:02:00 am
मात—पिता से बढ़कर, संसार में कोई और नहीं है
ठुकरा दे गर, सारी दुनियां, सं​तति पाती ठौर यहीं है ।
उनकी पूजा से बढ़कर कोई धर्म नहीं
हां उनकी सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं ।
जिसने सींचा नौ मास निज रक्त से मुझे
है कोशिश दे सकूं, खुशी के कुछ वक्त उन्हें ।
जिनका नाम ले बढ़ा जग में
निज पहचान है दिया जिन्होंने
जी चाहे कुछ कर गुजरूं उनकी खुशी के लिए ।
चाहूं तो भी उऋण हो सकता नहीं,
इसलिए प्रभु से मांग रहा यह वर
हर जनम में तेरी संतान बनूंगा
कितना भी बल बुद्धि हीन रहूं, फिर भी मैं सच्चा इंसान रहूंगा ।

हे भगवान इतनी कृपा और करो प्रभु
रखूं सुखी दूं हर खुशी उसे ।
जिसने निज मात—पिता का घर छोड़ा मेरी खातिर
कियें है जाने त्याग कई, बस मेरी खातिर ।
उसको भी तो मात—पिता होंगे प्रिय
शायद मुझसे अधिक ही चाहत हो उनकी ।
फिर भी रीति—रिवाजों कारण,
सब छोड़ मेरे संग है आई ।
इसलिए मुझ पर मुझसे भी अधिक
उसकी ही है प्रभुताई ।
दु:ख उनके बांट नहीं सकता मैं
हां खुशियों से झोली भर सकता मैं ।

हे प्रभु दो इतना आत्मबल, सम्बल मुझको
पुत्र और पति धर्म दोनों का भ​ली—भांति पालन करूं ।
सुख—चैन से भर दूं मात—पिता का हर इक क्षण
और खुशियों भरा कर दूं, सबका जीवन ।
                                                       ........शुभेश

शनिवार, 7 मई 2016

भूख

9:21:00 pm
मामा जी, मामा जी यो, हमरा लगि गेल भूख ।
हमरा लेल पेड़ा—बिस्कुट आनू, चाहे खोआ—तिलकुट आनू ।
जल्दी से आनू सेबक जूस, जल्दी से आनू दूध ।।
मामा जी, मामा जी यो....................

दालि चाउर लै खिचड़ी बनाबू, चाहे दूध दै खीर बनाबू ।
नूने—अनून स​ब किछु खा लेब, कांचो—कोचिल सेहो पचा लेब ।।
बड जोड़ लगि गेल भूख ।
मामा जी, मामा जी यो....................

नै किछु बनत त' सेहो बता दिय'
हमरा माय के अहां, बजा दिय'
हम त पी लेब दूध, आब बड जोड़ लगि गेल भूख ।।
मामा जी, मामा जी यो....................
                          ........शुभेश
 (​अपनी पुत्री सुश्री शुचि को समर्पित मैथिली बाल रचना)

तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा

6:28:00 pm
हे ​प्रियतमा, शुभ्रे! तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा ।
मैं अनुगामी नहीं बनाता हूं तुझको, पर हे प्रिये तुझे सहचरी तो बनना होगा ।।

पथ में चाहे जितने कंटक आए, मैं चल लूंगा हंसकर ।
तू फूल भरी राहों पर हीं ज्यों चल मेरे हाथ पकड़कर ।।
मैं दु:ख—संताप की ज्वाला को पी लूंगा।
पर तुझको भी इसकी थोड़ी आंच सहन करना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .....................

श्रेष्ठजनों की बात को न तुम दिल पर लेना ।
होगी गूढ़ भलाई कोई, बात सहज मान लेना ।।
मातु—पिता नहिं चाहे संतति का अहित
हो सकता भिन्न तरीका, उनके प्यार जताने का ।

औरों की बहकी बात से हमें क्या लेना,
हम दोनों का साथ है जब, क्या कर लेंगी बावरी दुनियांं ।
हो सकता हैं लोग करें तुझ पर वाणी से शस्त्र प्रहार बहुत,
कटुक वचन से ह्रदय छलनी होगा, पर हे प्रिय तुम न धीरज खोना ।

ये ​दुनिया है बड़बोलों की, बड़बोलों की है ये दुनिया
तुमको उनकी बातों पर कान नहीं धरना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .............................
                                                           .......शुभेश

अपरंपार दयालु भगवन

5:44:00 pm
हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश

बुधवार, 15 जुलाई 2015

शर्मा जी बने डॉक्टर

11:43:00 am
शर्मा जी बने डॉक्टर
मेरे पड़ोस में शर्मा जी रहते हैं,
हर मुद्दों पर गरमा—गरम बहस करते हैं ।
ज्ञान के मामले में तो शुन्य हैं,
समझते अपने को परिपूर्ण हैं ।।

एक सुबह शर्मा जी को सपना आया,
डॉक्टर बनकर उन्होंने खूब माल कमाया ।
बस फिर क्या था, शर्मा जी चले डॉक्टर बनने,
सफेद कोट सिलवायी, और चले सपने को सच करने ।।

साले ने जुगत भिड़ाई,
एमबीबीएस की फर्जी डिग्री दिलाई ।
अब शर्मा जी बन गए डॉक्टर,
और उनके साले साहब हो गए कम्पाउण्डर ।।

दोनों ने मिलकर क्लिनिक खोली,
चार दिवस इंतजार में ही निकली ।
जब कोई मरीज नहीं आया,
शर्मा जी का दिल घबराया ।।

पांचवें दिन हुए मरीज के दर्शन,
देख जीजा—साले का खिल गया मन ।
ऐसा ईलाज करूं मैं इसका,
बनूं चहेता डॉक्टर सबका ।।

बंदे ने मर्ज बताई,
था वो दस्त से परेशान भाई ।
शर्मा जी ने ऐसा ईलाज किया,
वो बेचारा स्वर्ग सिधार गया ।।

दोनों को हुई घबराहट, बात हुई ये ऐसी,
बात न बाहर फैले ये, कोई जुगत लगाओ वैसी ।
चलो दोनों इसे उठाते हैं,
पीछे के वन में दफनाते हैं ।।

साले था पकड़ा लाश को पीछे,
और अपने आंखों को मींचे ।
जो मल था धोती के अंदर,
सब गिरा साले के ऊपर ।।

खैर! किसी तरह निपटाया,
उसको जाकर ​दफनाया ।
अगले दिन जब क्लिनिक आया,
था एक मरीज पहले से आया ।।

देख दोनों की आंखें चमकी,
चलो आज होगी बोहनी अच्छी ।
मरीज ने मर्ज बताया,
उसे भी था दस्त ने सताया ।।

सुनकर दोनों फिर चौंके,
फौरन अंदर को लपके ।

साला बोला जीजा से ,
अपने सर को जकड़े ।
फैसला हो पहले इसका
कि पीछे कौन पकड़े ।।
                  ~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)