शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

अटल बिहारी वाजपेयी....अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.

11:49:00 am
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जिन्दगी और मौत की ठन ही गई और मौत ने स्वयं को विजित घोषित कर दिया। हमारे सर्वप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी नहीं रहे। ऐसी जिन्दादिली की मिसाल मिलना मुश्किल है। उनके जैसा राजनीतिज्ञ, विचारक, कवि शायद ही फिर पैदा हो................

महाप्रयाण रथ निकल रहा अब
छोड़ चला तन भारत रत्न अब
अश्रुपूरित सजल नयन है
हे महामानव तुम्हें नमन है
अस्ताचल सूर्य भी नमन कर रहे
समर्थक क्या विरोधी भी वंदन कर रहे
आप हमारे आदर्श हैं, सदैव रहेंगे
हमारे बीच नहीं रहे, पर हृदय में बसे रहेंगे
प्रभु भी बड़ा छलिया है
हमसे आपको छीन तो लिया है
पर क्या वो हमारे दिल से निकाल पाएगी
दिल में बसी है जो छवि उसे उतार पाएगी

नमन...........अश्रुपूरित श्रद्धां​जलि.............

बुधवार, 15 अगस्त 2018

शिकायती लाल

2:32:00 pm
शिकायती लाल

बन्दौं तुमको गिरधर गोपाल
जगत—पिता सबके प्रतिपाल
अपनी शिकायतों का पिटारा ले,
फिर पहुंचा ये शिकायती लाल
तुम भी मुझसे त्रस्त हो गये होगे
शायद इसीलिए मुंह फेर लिये होगे
मैं क्या करूं भगवन मैं भी विवश हूं,
आपने कुछ विकल्प कहां छोड़ा है
मैं जानता हूं कि आपके पास बहुतेरे काम हैं,
पर बताएं मुझे किसके भरोसे छोड़ा है
प्रभु आप तो सर्वज्ञ हैं, फिर भी मौन हैं
बताएं हम कहां जाएं और कौन है
कर्म ही है वश मेरे, वो करता हूं
धर्म बस दया है, जो करता हूं
यूं तो मैं खुद दया का पात्र हूं भगवन तेरे
पर धरम हेतु हर जीव पर सदैव दया करता भगवन मेरे
गुरूवर कह गये हैं— दया धरम का मूल है
सद्गुरू कबीर भी कह गये—

दया राखि धरम को पाले, जग से रहे उदासी
अपना सा जी सबका जाने ताहि मिले अविनाशी

बस इन्हीं वचनों का पालन कर रहा हूं
पग—पग फूंक कर कदम रख रहा हूं
न किसी का मुझसे अहित हो
न कुछ टूटे न कोई मुझसे रूठे
पर अविनाशी ईश्वर ही मुझसे रूठ गये हैं
और किसको मनायें हम तो सचमुच टूट गये हैं

साहब तुमही दयालु हो, तुम लगि मेरी दौर
जैसे काग जहाज को, सूझे और न ठौर

कहीं और ठौर नहीं प्रभु, नाव भवसागर में हिचकोले खा रही
प्रभु हम क्या करें, कहां जाएं, कुछ समझ में नहीं आ रही

साहब से सब होत हैं, बन्दा से कछु नाहिं
राई से पर्वत करें, पर्वत राई माहिं

परंतु तुम तो जैसे मेरी परीक्षा लेने पर ही तुले हो
मानो मेरी व्यथा से आंख मूंद लिये हो
तभी तो राई समान दु:ख को भी पहाड़ बना दिये हो
शांति—प्रेम—संतोष को ही अपने पास बुला लिये हो
मैं परबत समान सुख की अभिलाषा नहीं रखता
बस मेरा कर्तव्य है, जो कर्म वही हूं करता
अब इनके अभाव में मैं क्रोध न करूं तो क्या करूं
विवश हो शिकायतों का पिटारा न खोलूं तो क्या करूं
अब तुम ही दु:ख भंजन हो, सब दुखियारी के
तो राह दिखाओ तुम, सर्व सहायी हो

न, किसी और दर की, कोई आस न शेष
प्रभु कृपा करो अब तेरे शरण 'शुभेश'

रविवार, 5 अगस्त 2018

Happy Friendship Day

5:00:00 pm
Happy Friendship Day
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मित्रता दिवस की ढेरों बधाई
हॉं आप सबों को Happy Friendship Day भाई
पर आज के दौर में सच्चा मित्र कौन है
क्या वो जो मित्र के दु:खों पर भी मौन है
या वो जो मित्र बना स्वार्थ हेतु
ना जी मित्र तो होते परमार्थ हेतु
लो फिर भगवान को ही मित्र बना लो
और समस्त दु:खों से ​मुक्ति पा लो
हॉं ये सच है, भगवान सबके मित्र बन जाते हैं
परंतु क्या सभी भक्त सच्चे मित्र बन पाते हैं
वो सुदामा सी मित्रता जिसने कृष्ण की दरिद्रता अपने नाम कर ली
वो कृष्ण की मित्रता जिसने अपना सबकुछ सुदामा के नाम कर दी

भगवान ने पग—पग पर हमे मित्र दिया है
क्या आपने उसे महसूस किया है
जन्म लिया तो मित्र मॉं बन आई
क्या निज रक्त से और कोई सींचे है भाई
फिर पिता ​बनि सम्मुख आए
प्रथम गुरू जो प्रेम, स्नेह और अनुशासन का पाठ पढ़ाए
फिर लंगोट मण्डली और भाई—बहन की वो टोली
जिन संग हम सबने खेली आॅंख—मिचौली
अपनी ही धुन में वो मस्त मलंग सा
मस्ती से भरा, नहीं फिकर किसी का
फिर boyfriend-girlfriend वाली दोस्ती
दुनिया लगे दीवानों जैसी
फिर पति—पत्नी का मित्र बन आना
सुख—दु:ख जो सम करि जाना
फिर संतान घर खुशियां लाई
जिसने बचपन की याद दिलाई
तो 'शुभेश' पग—पग पर है मित्रता
मत करो किसी से शत्रुता

हे प्रभु

4:57:00 pm
हे प्रभु
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हर भेष में छी, सब देश में छी
कण—कण में अहाँ, हर क्षण में अहीं
अहाँ राग में छी, अनुराग में छी
अहाँ प्रीत प्रेम और त्याग में छी
अहिं मातु—पिता, अहिं बन्धु—सखा
अहिं सन्यासी, अहीं गृहस्थी
प्रभु राम अहीं, अहिं कृष्ण भी छी
अहिं गौतम, महावीर, नानक भी छी
अहाँ सूर—तुलसी आ मीरा छी
अहाँ जन—जन केर मान कबीरा छी
कर्म अहीं, सब धर्म अहीं
जीवन केर सबटा मर्म अहीं
घट बाहेर भी, घट भीतर भी
घट—घट में रमी, हर घट में बसी
सब जीव में छी, समदरशी छी
सुख—दु:ख में अहाँ मन हरषी छी
सर्वत्र अहाँ सर्वज्ञ अहीं
ज्ञान अहाँ मर्मज्ञ अहीं
अहाँ दूर भी छी, अहाँ पास भी छी
अहाँ आस में छी, विश्वास में छी

हम जाउ कत' किछु नै बूझाए
कहि कष्ट कत' किछु नै सूझाए
सर्वत्र अ​हीं फेर कष्ट किआ
सर्वज्ञ अहाँ फेर दु:ख किआ

प्रभु हम अज्ञानी बुझि परए
किछु कर्म उलट जौं भेल होअए
पुत्र जानि अहाँ माफ करू
हमरो भवसागर पार करू
आओर हमरा इच्छा किछिओ ने शेष
विनती कर जोड़ि करै 'शुभेश'

बड़की दादी - गुरू मॉं

4:54:00 pm
बड़की दादी
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सहज शांत तेजोमयी सूरत ।
ममतामयी जगदम्बा की मूरत ।।
निर्मल ह्रदय, करूणामय दृष्टि ।
अविरल स्नेह से सींचत सृष्टि ।।

गुरू मॉं की तो छवि है ऐसी ।
स्वयं विराजे गुरूवर जैसी ।।
साहेब बन्दगी चरण कमल में ।
श्रद्धा—भाव हैं सजल नयन में ।।

तुम सम कौन कहूं उपकारी ।
जो आवे कुटिया दु​:खियारी ।।
मातृत्व स्नेह की बारिश करती ।
पल में उनकी पीड़ा हरती ।।

गुरूवर के साधना—पथ की तुम,
अविचल औ निर्भीक संगिनी ।
दया—धरम का पाठ पढ़ाती,
भव—भय दूर कराती जन की ।।

माई साहब, बड़की काकी और बड़की दादी,
केवल नाम नहीं श्रद्धा है ।
कोटि—कोटि वंदन चरणों में,
जन—जन की पावन आस्था है ।।

शुभेश करतु हैं बंदगी,
बिनवौं बारम्बार ।
बड़की दादी दया करो
विनती करो स्वीकार ।।

रविवार, 22 जुलाई 2018

मालिक बाबा

1:26:00 pm
मालिक बाबा
(परम पूज्य बौआ साहब जू)

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'मालिक बाबा' बचपन में यह नाम सुनते ही रोमांच भर जाता था। अभी भी इस नाम—मात्र से एक विलक्षण उर्वरा शक्ति का विकास हो जाता है।
मुझे आज भी बचपन की वो घटना याद है जब मैं लगभग साढ़े तीन वर्ष का था। इतनी छोटी उम्र में घटित घटना ने मेरे मन—मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला था कि वो हमेशा कल की बात लगती है।
मॉं उस समय बहुत बीमार थी। वह सुध—बुध खोकर बिस्तर पर पड़ी थी। दादी, पापा सब ने बताया कि मॉं बीमार है, भगवान से बोलो वो तुम्हारी मॉं को ठीक कर देंगे। मैं उस समय भगवान शब्द से भी अनजान था। घर में मॉं के बिस्तर के पास ही मालिक बाबा की तस्वीर लगी थी। मै। वहां जाकर खड़ा हो गया और निश्छल भाव से मालिक बाबा को सम्बोधित कर कहने लगा— '' हे मालिक बाबा हमर मॉं के सब दु:ख दूर करियौ ओकरा ठीक क' दियौ।'' और मेरी आंखों से निरंतर आंसू बह रहे थे। तभी मॉं ने आवाज लगायी— ''हां देखै ने हम ठीक छियै, बाबा तोहर बात सुनि लेलखुन— हम ठीक भ' गेलियौ।'' उनकी आंखों से भी अश्रु—धारा प्रवाहित हो रही थी।
 आज भी वो निश्छल प्रेम को याद करता हूं और ज्ञानेन्द्रियों के जाल से मुक्त होकर उसी भाव में बहकर अपने आराध्य सद्गुरू की आराधना करना चाहता हूं। परंतु इनकी शक्ति और माया का कोई पार नहीं है। जब कभी परिवार में कोई परेशानी होती, हम दौड़ कर मालिक बाबा के पास पहुंच जाते। हमें पूर्ण विश्वास था कि वो उसका हल जरूर निकालेंगे और सदैव ऐसा ही होता था।

दादी के अनन्य प्रयास, हमारे प्रति अगाध प्रेम तथा मालिक बाबा में पूर्ण विश्वास के फलस्वरूप वो सुखद घड़ी भी आ गई जब अल्पायु में ही मुझे सभी बांधवों सहित अपने परम आदरणीय मालिक बाबा के और निकट होकर उनके शिष्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अब वे हमारे मालिक बाबा के साथ—साथ परम श्रद्धेय पूज्य सद्गुरूदेव भी थे।
 किसी भी आकुलता के समय उनकी कुटिया पर पहुंचकर शांति मिल जाती थी। मैं थोड़ा संकोची प्रवृति का व्यक्ति हूं। इसलिए कई बार मैं अपनी आकुलता में कुटिया पर चला तो जाता था परंतु वहां सबों के सामने कुछ बोल नहीं पाता था। लेकिन मालिक बाबा के दर्शन मात्र से ही आकुलता शांत हो जाती थी। उनकी शीतल वाणी तो अंतरतम को शीतल कर देती थी। दरभंगा में भी जब कभी बाबा कहीं आते थे तो हम लोग भागकर उनकी बंदगी करने जाते थे और उस दिन को धन्य मानते थे कि आज उनके दर्शन हुए।
 एक और बाल सुलभ घटना स्मरण हो रही है जिसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जाता। बचपन में परीक्षा के समय प्रत्येक बच्चों में परिणाम को लेकर आशंका/भय व्याप्त रहता है। इसलिए कई साथी भगवान के आगे घरों में अथवा मन्दिरों में परीक्षा में लिखने वाले पेन/कलम को रख देते थे और उसी कलम से परीक्षा में लिखते थे, इस से उनमें परिणाम को झेलने की शक्ति मिलती थी। (ऐसा उस समय मेरे जैसे कई छात्रों का विचार था) मेरी भी बोर्ड की परीक्षा थी। मैं भी बेहतर परिणाम की अभिलाषा में मालिक बाबा से आशीर्वाद लेने पहुंचा(हमारे लिए एकमात्र सब कुछ हमारे मालिक बाबा थे/हैं)। मैं साथ में एक नहीं दो—दो नई कलम ले गया था। कुटिया पर पहुंच कर बाबा को बंदगी की। बाबा ने कुशल—क्षेम पूछा और तत्पश्चात भोजन ग्रहण करने को कहा। मैं संकोचवश कुछ बोल नहीं पा रहा था और वहां से भोजन के लिए हट भी नहीं पा रहा था। बाबा ने पूछा क्या बात है और अपनी समस्या बताने के लिए कहा। आखिरकार मैंने अपनी संकोच को दूर कर बोला — '' बाबा अपनेक आशीर्वाद लेब' आयल छी, मैट्रिक के परीक्षा छै।'' और एक पेन निकालकर आगे कर दिया। बाबा पहले हंसे, फिर बोले— ''देखू बौआ बिनु पढने जौं सब आशीषे सं' पास भ' जेतै त अपने सोचियौ कतेक अकर्मण्यता आबि जेतै। अहि लेल पढ़ाई त बहुत जरूरी छै। मन लगा क पढू अवश्य पास होयब।'' मैं थोड़ा निराश होने लगा। फिर बाबा मुस्कुराते हुए मेरे हाथ से कलम ले लिए और मेरे दायें हाथ पर उससे भगवत् नाम लिखने लगे। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने झट दूसरा पेन भी आगे कर दिया और बोला—''बाबा कहीं बीच में ही पेन खत्म भ' गेलै त, तैं इहो पेन पर कृपा करियौ।'' बाबा हंसते हुए उस पेन से भी  मेरी हथेली पर लिखने लगे। फिर उन्होंने अत्यंत कृपा की जिसे याद कर आज भी शरीर रोमांचित हो उठता है। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे मस्तिष्क पर रख दिया। आशीर्वाद का ऐसा अनुग्रह पहले कभी नहीं प्राप्त हुआ था, मैं अभिभूत हो उठा।

अवतार जिस गुरूदेव का युगधर्म ले होता सदा।।
उस महामानव के लिए दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा।।
हे नाथ जग में प्रकट हों तव संत की शुभ आत्मा।
जो कलह—दु:ख—कुविचार का जग से करें नित् खात्मा।।
संत रूप भगवान,
            प्रकटे जग में सर्वदा।
दे सबको शुभ ज्ञान,
            करैं सुखी संसार को।।
                            (सद्गुरूदेव द्वारा रचित प्रार्थना से)
अनेकों ऐसी छोटी—बड़ी घटनाएं हैं जो हमें निश्चिंत करती थी कि हमारे साथ हमारे मालिक स्वयं मालिक बाबा हैं। हमारी सभी दु:खों/समस्याओं का हल निकालने वाले, हम पर कृपा करने वाले साक्षात प्रभु।
 मालिक बाबा के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि आज भरवाड़ा कबीर आश्रम में होने वाले इतने विशाल वार्षिक भण्डारा के शुरूआती वर्षों में बाबा उसके आयोजन के लिए पूरे वर्ष तक प्रतिदिन अपने एक समय के भोजन बचाकर रखते थे ​ताकि भण्डारा में कोई भी संत द्वार से भूखे न लौटें। सभी दीन—दु​:खियों की सेवा में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उस समय लोगों के पास इलाज के लिए न धन होता था और न ही कोई सुविधा थी। उन्होंने अपने विलक्षण जड़ी—बूटी के ज्ञान का उपयोग कर लोगों की नि:शुल्क/नि:स्वार्थ सेवा देना प्रारम्भ किया और पूरे लगन से दीन—दु:खियों की सेवा में सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

मैं जब अपनी नौकरी लगने की सूचना देने उनके पास गया तो वे अत्यंत हर्षित हुए। फिर जम्मू जैसे आतंकवाद से ग्रस्त क्षेत्र में अपनी पोस्टिंग की बात बतलाई तो उन्होंने भगवत सुमिरन की सलाह दी और सब कुछ भगवान पर छोड़ने को कहा। उस समय मुझे यह कतई भान नहीं था कि यह मेरी उनसे अंतिम भेंट होगी। मैं जब जम्मू जाने की तैयारी कर रहा था तो दिल्ली में उनके अत्यंत अस्वस्थ होने की सूचना मिली। मन व्याकुल हो गया और आकुलता में मैंने अपने मालिक बाबा के स्वास्थ्य लाभ हेतु विनती लिखी—

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

परंतु भगवान को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2009 के आखिर में वो सबसे दु:खद दिन भी आया। उन दिनों में मैं अपनी सेवा के प्रारम्भिक दौर में जम्मू में था। पापा का फोन आया, वो बोले— ''हम सब अनाथ भ' गेलौं, मालिक बाबा नै रहलाह।'' शरीर सुन्न पड़ गया। मालिक बाबा ​के बिना हमलोग जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। सचमुच हम अनाथ हो गये।
    हे परम पूज्य श्रद्धेय मालिक बाबा हम आज भी आपके बताये राह पर चलने का प्रयास करते हैं। प्रयास इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि कभी—कभी उलझनें, बाधाएं, समस्याएं इतनी कमर तोड़ देती है कि राह से भटकने लगता हूं। अंधविश्वासी भी बन जाता हूं। मालिक बाबा आपके बिन हम सचमुच अनाथ हैं। अपने हिसाब से सबकुछ अच्छा करने का हर सम्भव प्रयास करते हैं। भगवत् भजन के लिए मिलने वाले हर मौके पर सदैव उन परम् पुरूष परमात्मा के निराकार स्वरूप का ध्यान करते हैं, जिसका भेद आपके साकार रूप ने कराया था। फिर भी बाधा—विघ्न रूपी दीवार नहीं टूटती, जिन्दगी उलझती चली जाती है। मन अशांत होकर अंधविश्वासी बना देता है। यहां—वहां सबको प्रणाम करते हुए सबसे पागलों की तरह क्षमा—याचना करता रहता हूं। उन राहों को जिनके बारे में कभी आपने बताया था कि वो सब व्यर्थ हैं, केवल परमात्मा का भजन और कर्म ही सब कुछ है, पर अनायास ही चल पड़ता हूं। हे परम पूज्य मालिक बाबा हमें शक्ति प्रदान कीजिए की हम परमात्मा के मार्ग पर दृढ़ होकर प्रगतिशील रहें।
हे परम पूज्य गुरूदेव जू, हम अनाथ पर दया कीजै।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै,
प्रभु मोहि​ अपने शरण लीजै।।

    शुभेश   
सप्रेम साहेब बन्दगी—3

मंगलवार, 17 जुलाई 2018

बचपन

10:57:00 pm
बचपन

स्वप्निल नैन निहारत रे मन,
कहाँ खो गया वो बचपन
वो बचपन जो बेफ़िकरा
सर्वत्र प्रेम बिखरा बिखरा
करम धरम का भान नहीं
मन मे कोई गुमान नहीं
बन पंछी उड़ता रहता
परीलोक जाकर बसता
सब से प्रीत सभी कोई मीता
सुंदर सहज भाव नहीं रीता
सहज प्रेम घट भीतर था
तन हो न, मन निर्मल था
निर्मल घट में राम थे बसते
हल्की सी मुस्कान से सजते
शुभेश कितनी सहज कितनी सुन्दर,
वो दुनिया थी अधिकार कर्तव्य से जुदा जुदा।
मन्दिर-मस्जिद मन में नहीं
एक ही लेखे राम खुदा।।

शनिवार, 14 जुलाई 2018

यौ भगवान - O My Lord - हे भगवान

3:46:00 pm
यौ भगवान

shubhesh
यौ भगवान, यौ भगवान
किया बनेलौं हमरा,ई नइ जानि
यौ भगवान..............

हम अज्ञानी, अवगुणक निशानी
अपन बुराई हम कतेक बखानी'
हमरा सन दु​र्बुद्धि नै कोनो सन्तान ।
यौ भगवान.................

सर्व दु:खदायी, कष्ट सहायी
अमंगलकारी आ प्रेम भिखारी
हमरा सन साजन नै सगरो जहान ।।
यौ भगवान.................

हम लोभी अति तामसी ढोंगी
जिद्दी, क्रोधी, दिखावटी जोगी
हमरा सन भ्राता—मित्र नै कोनो बेकाम ।।
यौ भगवान.................

हमरा सं' केकरो जे उपकार होइतै
हमरो कारण जे केओ खुश भ' जैतै
हमरो पाबि सब धन्य कहाबै
तखन ने 'शुभेश' बुझता जे हमहूं इन्सान ।।
यौ भगवान.................

मंगलवार, 1 मई 2018

विकास

10:47:00 pm
विकास
देश तरक्की कर रहा है
हम विकसित हो रहे हैं
हमारे दादे-परदादे के ज़माने में, 
पक्की सड़कें भी नहीं थी
अब मेट्रो और बुलेट ट्रेन की बात होती है
पहले अधिकारी के सामने आने पर भी लोग भय खाते थे
कहीं डाँट पड़ जाए तो पतलून गीली हो जाती थी
अब तो लिखित कार्रवाई का असर भी नहीं होता
उनकी बधिर होने की क्षमता का भी विकास हुआ है, जूं तक नही रेंगती
पहले औरतें पर्दा करती थी, मर्द भी धाक करते थे
वो नारी सम्मान, मातृ-पितृ पूजन, वो संस्कार की बातें
वो पलक उठाये बिन बातें करना, पैर के अंगूठे से मिट्टी कुरेदना
वो अश्कों का कभी बाहर आना, कभी अंदर ही रह जाना
वो सब इक गुजरा दौर था
ये तो नया दौर है
तब प्रेम भी सर्वत्र था
मातृ-प्रेम, पितृ-प्रेम, भातृ-प्रेम, मित्र-प्रेम
प्रेयसी-प्रेम, पत्नी-प्रेम, पति-प्रेम
प्रेम भी एक संस्कार था
आज उसका भी विकास हो गया है
स्वार्थ से अटूट गठबंधन हो गया है
पहले नारी के अनेक रूपों में भी
माँ-बहन-बेटी नजर आते थे
परंतु आज दृष्टिकोण का भी विकास हो गया है
आज नारी के हर रूप में प्रेयसी और भोग्या ही नजर आती है
भई इंसानियत का विकास तो चरम सीमा तक पहुँच गया है
इससे अधिक विकास तो कोई माई का लाल कर भी नही सकता
हमने भेद-भाव की हर सीमा को हटा दिया है
जवान और बच्ची का भेद-भाव तक मिटा दिया है
हमने शोषित और शोषक का फर्क भी मिटा दिया है
विकास की परिभाषा में नया अध्याय जोड़ दिया है
शोषितों के साथ-साथ, शोषकों का भी पोषण करते हैं
बोलो 'शुभेश' क्या अब भी कहोगे की विकास नही हुआ और हम शोषण करते हैं।।


रविवार, 29 अप्रैल 2018

जीवन की डगर

10:33:00 am
जीवन की डगर
वो पहला क्रन्दन, फिर चुप हो मुसकाना ।
धीरे से पलकें उठाना, 
मानो कलियों की पंखुड़ियों का खुलना ।।
फिर वो बाल-हठ, चपलता, 
शैशव से आगे बढ़ती उमर ।
फिर पढाई-लिखाई, कुछ करने की चाहत भरा वो जिगर ।।
अल्हड़ जवानी में पहला कदम,
किशोर मन की दुविधा भरी वो डगर ।
इस सफर में मिली जब वो इक हमसफ़र,
फिर प्रेम के पथ की वो अल्हड़ डगर ।।
फिर गृहस्थी की आई नई सी डगर,
हर डगर के मुहाने पर बस इक डगर ।
न उधर, न इधर, न कहीं फिर किधर,
न अगर, न मगर बस डगर ही डगर ।।
बस चलना है, चलते जाना है, रुकना नहीं ये कहती डगर ।
'शुभेश' ठहराव का तो कोई नहीं है जिकर ।।
हाँ इक शांति, अनंत शांति का है अवसर ।
मगर फिर बची ही कहाँ है डगर ।।

रचना

10:10:00 am
रचना 
रचना क्या है, कुछ शब्दों का ताना-बाना ।
कुछ अपनी, कुछ सबकी, बात वही जाना-पहचाना ।।
कुछ शब्दों से छंद बने और गीत बने ।
कुछ छंदों ने काव्य रूप मनमीत गढ़े ।।
कुछ रचना ने सुलझाई अनसुलझी गुत्थी ।
भेद खोल जीवन के ढंग दिखाई है सच्ची ।।
कुछ महाकाव्य बन पूजित हैं, ईश्वर के समकक्ष हुए ।
जीवन को परिभाषित करती, कुछ से जीवन को लक्ष्य मिले ।।

सोमवार, 18 सितंबर 2017

समन्‍दर और पत्‍थ्‍ार

12:36:00 am
समन्‍दर और पत्‍थ्‍ार
समन्‍दर तीर पे आकर,
मिली पाषाण से जाकर
कि तुम पाषाण तुम जड़वत,
कि तुम नादान मैं अवगत ।।

जो गुजरे पास से होकर,
वही इक मारता ठोकर

कहीं आना नहीं जाना
मेरे ही रेत के भीतर,
है तुमको दफन हो जाना

मुझे देखो मैं बल खाती
ऊफनती हूं मचलती हूं,
लहरों पे गीत मैं गाती
गगन से झूमकर मिलती,
मगन मैं नाचती-फिरती
मेरे संग तू भी चल आकर,
उसे बोली तरस खाकर ।।

सुन कर के समन्‍दर की,
मदभरी बातें और ताने
पाषाण यूं बोला,
तरस मत खा तू मुझपर
और न दे कोई मुझे ताने
जगत में मैं ही, रहा शाश्‍वत
चिरंतन काल से अब तक ।।

मैं ही चक्‍की हूं जो,
पीसकर तुम्‍हारा पेट हूं भरता
खुद तो क्षीण होता हूं,
मुंह से ऊफ भी न करता ।।

अगर तुम पूजते मुझको
मैं शालिग्राम होता हूं
अगर तुम चाहते मुझको
मकबरे-ताज होता हूं ।।

अगर तुम जौहरी हो, मुझको तराशो
फिर हीरा हूं, किस्‍मत धनी पत्‍थर
अगर तुम ठोकरें मारो
फिर पत्‍थर हूं, बस पत्‍थर ।।

यहां पर नारियां अबला बनी
प्रताडि़त होती है
और बेटियां तो जन्‍म से
पहले ही मरती हैं ।।

दुर्गा, सरस्‍वती, लक्ष्‍मी का
गुणगान होता है
यहां पाषाण मुर्तियों का ही
सम्‍मान होता है...।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)


सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान

12:32:00 am
सरकारी बनाम निजी प्रतिष्‍ठान
‘सहज’, ‘सदय’ दोऊ मित्र परस्‍पर
विद्या के धनी, गुणी, प्रवीण धुरंधर
अल्‍पकाल स‍ब विद्या पाई
सरकारी सेवक बनने हेतु किस्‍मत आजमाई

‘सहज’ नाम अनुरूप सहजता से
सरकारी सेवक बन जाते हैं
परंतु ‘सदय’ अनेकों प्रयास के बावजूद
किस्‍मत को कोसते रह जाते हैं

दो वर्ष के पश्‍चात आखिरकार
एक प्रतिष्ठित निजी संस्‍थान ने
इनकी काबिलियत को पहचाना
सेवा का सुअवसर देकर इन्‍हें
और स्‍वयं को धन्‍य माना

‘सहज’ कार्य करें पूर्ण विनय से
प्रतिभा की नहीं कमी ‘सदय’ में

काज करें दोनों ही ऐसे
कर्म ही धर्म हो उनका जैसे

‘सदय’ ने निजी संस्‍थान में बेहतर प्रदर्शन कर
तरक्‍की पर तरक्‍की पाई
बोनस, इन्‍क्रीमेंट आदि को पाते हुए
कर्मचारी से अधिकारी वर्ग में पदोन्‍नति पाई

वहीं ‘सहज’ सरकारी सिस्‍टम के
चक्रव्‍यूह में उलझ कर रह गये
यहां अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना
बेमानी है, नादानी है भूल गये

यहां तो वरिष्‍ठों से सुना
कथन सटीक बैठता है
‘तुम मत सोचो कि
ऊंट किस करवट बैठता है

तुम तो हाथी की तरह
मस्‍त विश्राम करो
औरों को करने दो काम
तुम बस आराम करो

यदि लोगे अधिक टेंशन
तो श्रीमतीजी पाएंगी पेंशन’

भाई सरकारी सिस्‍टम का
हाल तो बिल्‍कुल निराला है
जो चाटुकार है, रसूखदार है
बस उसी का बोलबाला है

जो मेहनती है, वो
सबसे परेशान व दु:खी है
‘शुभेश’ जो कामचोर हैं, वो ही
सम्‍मानित और सुखी हैं।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

तंद्रा—भंग

12:30:00 am
तंद्रा—भंग
आज मन उदास था
परिस्थितियों से निराश था
ना कोई साथी न कोई सहारा था
जिन्‍दगी ने मानो कर लिया‍ किनारा था

नौ‍कड़ी की तलाश में
आज फिर निकल पड़ा
जो बची-खुची रेजगाड़ी थी
उसे ही पर्स में रख चल पड़ा

बस की खिड़की वाली सीट
मैंने पकड़ ली
मेरे विचारों के साथ-साथ
बस ने भी रफ्तार धर ली

अगले स्‍टॉप पर
एक षोडषी ने बस में प्रवेश किया
मेरे बगल की सीट पर
झट कब्‍जा कर लिया

कब तक मैं यूं ही भटकता फिरुंगा
क्‍या मैं भी कभी
ऐसी किसी षोडषी से मिलूंगा

नयन मूंद कर मैं,
स्‍वप्‍नलोक में खोने लगा
तभी उस षोडषी का हाथ
मेरे सीने पर चलने लगा

लगता है मेरे जख्‍मों पर
वो मरहम लगा रही है
मेरा दर्द समझ कर मुझे
अपना बना रही है

अचानक बस झटके से रूकी,
मेरी तंद्रा टूटी

अब न तो मेरा पर्स दिख रहा था,
न ही वो षोडषी दिखी
मैं जिसे स्‍वप्न-सुन्‍दरी समझ रहा था,
वो कमबख्‍त पॉकिटमार निकली।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मेरे राम

12:26:00 am
मेरे राम
मेरा राम न जन्‍म है धरता,
हर घट भीतर में वो बसता ।
                                    मैं नहीं पूजूं उनको भाई,
                                    जो रावण से लड़े लड़ाई ।
मेरे राम को प्रेम सभी से,
मिलते सहज भाव सब ही से ।।
                                     मैं ना ढूंढू मन्दिर-मस्जिद,
                                     ना गिरिजा ना कोई शिवालय ।
मन के भीतर ही मैं झांकू,
निर्मल-मन-चित्‍त है देवालय।।
                                      राम नहीं मन्दिर में रहते,
                                      बच्‍चों की मुस्‍कान में बसते ।
बच्‍चों सा निर्मल बन जाओ,
राम को अपने सम्‍मुख पाओ ।।
                                       निराकार स्‍वरूप है उनका,
                                       सत्‍य नाम हैं सब ही उनका ।

                   राम चरण गहि कहें ‘शुभेश’,
                   करहुं दया नहिं व्‍यापे क्‍लेश ।।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

देश का विकास

12:23:00 am
देश का विकास

माननीय जी देश का हो रहा विकास है ।

घोटाला-भ्रष्‍टाचार-दंगा मुक्‍त भारत
आपने लिखी विकास की नई ईबारत
वैदेशिक सम्‍बंधों में बढ़ी मिठास है..........।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है....।।

अमरीका, इजरायल, जर्मनी और जापान
सबसे बनाए मधुर सम्‍बंध और विकास को किया गतिमान
परंतु आंतरिक सम्‍बंधों में अब भी वही खटास है....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है...........।।

नोटबंदी के चक्‍कर में पूरा देश पस्‍त हो गया
अच्‍छे दिन आएंगे यह सोच सब कष्‍ट सह गया
भ्रष्‍टाचारी सलाखों के भीतर होंगे और काला धन बाहर आवेगा
जाने कब पूरी होगी यह आस है.....................।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है विकास है...।।

रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं
गरीबी तो नहीं, हां गरीब मिट रहे हैं
भारत के भविष्‍य कर रहे रोजगार की तलाश हैं....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है..........।।

हमारे सच्‍चे पालक, प्रतिपालक, भारतीय किसान
कोई क्‍या जानें मंहगाई के इस दौर में खेती नहीं आसान
खेती के लिए भी कर्ज में डूबे हुए हैं
इनका विकास तो दूर की कौड़ी है,
अपने ही खेत में बंधुआ मजदूर बने हुए हैं
एक तो बाढ़ – सुखाड़ की त्रास है
ऊपर से सरकारी नीतियों ने भी किया निराश है.....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है............।।

माननीय जी से विनम्र निवेदन, 
भाषण-सम्‍भाषण से ऊपर हो रोजगार सृजन ।

हर हाथ को काम और हर परिवार को आवास हो
जन-जन की भागीदारी के बिना अधूरा हर विकास है
माननीय जी सुनेंगे सबकी आवाज, यही इक आस है....।
माननीय जी देश का हो रहा विकास है................।

(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

1:13:00 am
मानवीय संवेदनहीनता की पराकाष्ठा

अखबार के प्रथम पृष्ठ पर छपे खबर को पढ़कर स्तब्ध रह गया। आज लोगों की मानवीय संवेदनाएं इस स्तर तक खत्म हो चुकी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कोलकाता के महानगरीय परिवेश और भाग—दौड़ भरी जिन्दगी के बीच एक 72 वर्षीय वृद्धा भीड़—भाड़ वाले पार्क में, जो कि उसके घर के सामने थी, में आत्मदाह कर लेती है और वहां मौजूद सारे लोग तमाशबीन बने देखते रह जाते हैं। किसी ने भी उसे बचाने का प्रयास नहीं किया। यह बहुत ही भयावह है। 
     बंगभूमि की राजधानी कोलकाता हमेशा से बुद्धिजीवियों का केन्द्र रही है। यहां से अनेक ऐसे महान समाज सुधारक उभरकर आए हैं जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी है। उसी कोलकाता में कभी ये दिन देखना पड़ेगा, यह कल्पना से परे था।
     आज हमारी संवेदनाएं फेसबुक और ट्वीटर तक सिमट कर रह गयी है। लोगों की सोच को मोबाईल और इन्टरनेट क्रांति ने कुंठित कर दिया है। आस—पास होने वाले घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने, उसे रोकने के लिए लोगों के पास वक्त नहीं है। डिजिटल क्रांति ने लोगों के बीच होने वाले सीधे सम्वाद/सम्पर्क को ह्वाट्सअप, फेसबुक और ट्वीटर तक सीमित कर दिया है। इसके दूरगामी प्रभाव अत्यंत भयावह होने वाले हैं। क्या आप ऐसे समाज की परिकल्पना कर सकते हैं, जिसमें समाज के किसी सदस्य को दूसरे से कोई सरोकार न हो, कदापि नहीं। आज हमें खासकर युवा वर्ग को आगे बढ़कर समाज को इस भयावह परिस्थिति से बचाना होगा। हम प्रकृति के बनाये सबसे बुद्धिमान व सुंदर रचना हैं। सामाजिक व्यवस्था का आधार ही उसके सदस्यों के बीच आपसी सामंजस्य और तालमेल है। यदि यह ही न रहा तो सामाजिक व्यवस्था की अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी।
     एक सजग व अच्छे सामाजिक सदस्य होने के नाते सबों का कर्तव्य है कि उपरोक्त घटना की पुनरावृति कदापि न हो। यथासम्भव यदि किसी एक भी व्यक्ति ने उस वृद्धा को बचाने का प्रयास किया होता तो वह शायद आज हमारे बीच होती। वह कोई भी हो सकती है, केवल इसलिए मूकदर्शक बने रहना कि वह हमारी परिचित नहीं, यह तो घोर अमानवीयता का परिचायक है।
     कृपया सोच बदलें और बेहतर समाज के निर्माण में सहयोग दें।
                                           ——— शुभेश

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

जिन्दगी

10:18:00 am
-:: जिन्दगी ::-

अपना भविष्य सँवारने के खेल में,
वर्तमान दाँव पर लगा रहे हम ।
दो पल की खुशी की खातिर,
हर पल का चैन गंवा रहे हम ।।

सुकून से मिले दो वक्त की रोटी,
इसलिए परोस कर रखी थाली ठुकरा रहे हम ।
बच्ची को मिले हर वो सुकून, 
जिसकी चाहत थी मुझको,
इसलिए उसके संग बच्चा बन, 
वो मासूम बचपन नहीं जी पा रहे हम ।।

खुद को आशीर्वाद देने लायक, 
सामर्थ्यवान बनाने की कोशिश में,
मातृ—पितृ व श्रेष्ठ जनों के आशीष को, 
प्राप्त नहीं कर पा रहे हम ।
स्नेह की बारिश करने की जुगत में, 
अनुजों—प्रियजनों को स्नेह नहीं दे पा रहे हम ।।

जीवन—संगिनी को हर खुशी देने और 
उनके साथ भविष्य में सुख—लहरियां लेने के प्रयास में,
उनके वर्तमान को नजर अंदाज कर रहे हम ।।

तुझे बेहतर बनाने की कोशिश में 'शुभेश',
तुझे ही वक्त नहीं दे पा रहे हम ।
हाँ माफ करना मुझे ऐ जिन्दगी, 
तुझे जी नहीं पा रहे हम ।।
                             ~~~ शुभेश

रविवार, 1 जनवरी 2017

Wishing Happy New Year

12:15:00 am
Happy New Year

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All times polite
No time bear.
Oh! my dear
Happy New Year.

Sometimes come flood
Sometime sear.
But Oh! my dear
Happy New Year.

When comes flood
Don’t go pier.
Oh! my dear
Happy New Year.

O dear, O dear
I’m only your lover
In this new year
Much more eats pear.

And remember
Don’t show tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

All days happy day
No day tear.
Oh! my dear
Happy New Year.

बुधवार, 17 अगस्त 2016

सुन रे मानव अब तो संभलो

3:30:00 pm
अब तो संभलो

सुन रे मानव अब तो संभलो, मत प्रकृति से खिलवाड़ करो।
तुम हो कर्ता की उत्तम रचना, मत वनों का संहार करो।।

जिस कर्ता ने तुझे संवारा,
लोभ के वश हो उसे उजारा।
                         जीवनदायिनी पेड़ उखारे,
                         छिन्न—भिन्न कर दिये नजारे।।

जो तेरा है जीवन—रक्षक, जिस वायु से होते पोषित।
बड़े—बड़े उद्योग लगाकर, उस वायु को किया प्रदुषित।।

पर्वत को भी नहीं है छोड़ा,
यहां वहां हर जगह से तोड़ा।
                            वन उजाड़े और नदी को बांधा,
                            प्रकृति की हर सीमा को लांघा।।

जिसने ये संसार बनाया,
जीवन—ज्योति धरा पर लाया।
                           कृत्य भला ये कैसे सहता,
                           मूक—बधिर सा कब तक रहता।।

अति दोहन से जल स्रोत सुखाये,
बूंद—बूंद को जी तरसाये।
                          कहीं बाढ़—रूपी आयी विपदा,
                          और कहीं है बादल फटता।।

कहीं बाढ़ है, कहीं सूखाड़,
चहूं ओर मचा है हाहाकार।
                          चेत—चेत अब भी 'शुभेश',
                          बस पेड़ लगा और पेड़ लगा, वरन् नहीं बचेगा कुछ भी शेष।।

''प्रकृति के अंधाधूंध दोहन की यह परिणति है।
पेड़ बचाओ, हरियाली लाओ, तभी हमारी होगी सद्गति है।''
                                                             ............शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

12:42:00 pm
सातवां पे कमीशन : अच्छे दिन आएंगे ?

पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।
सभी कर्मचारियों को अंगूठा दिखाता, पे कमीशन आया।
भैया पे कमीशन आया, सातवां पे कमीशन आया।।

पे कमीशन ने भैया बस लक्ष्य यही इक ठाना है।
गुजर—बसर करते जैसे, वो बंधुआ मजदूर बनाना है।।
जब दिल्ली वालों ने लाख रूपये कर लिए वेतन।
तब चुप्पी साधे बैठा रहा पे कमीशन ।।

आटे—चावल का जाने कौन—सा मोल—भाव किया।
मात्र 18000 रूपये का न्यूनतम वेतन, भारत सरकार को रिपोर्ट दिया।।
15750 से बढ़ाकर 18000 का वेतन, कुल 2250 रूपये बढ़ाने वाली।
सभी सरकारी कर्मचारियों की खिल्ली खूब उड़ाने वाली।।
ये सरकार तो और निराली निकली।
खुद को भामाशाह बताने वाली निकली।।

मीडिया में खूब बढ़ा—चढ़ा कर पेश किया।
वेतन आयोग को ऐतिहासिक घोषित किया।।
वाकई वेतन आयोग तो ऐतिहासिक है।
द्वितीय वेतन आयोग से भी न्यूनतम वृद्धि, ऐतिहासिक तो है।।

हमारे माननीय सांसद कहते हैं, 
50000 में उन्हें अतिथि को चाय तक पिलानी मुश्किल है।
भारत की गौरवशाली परंपरा का,
दायित्व निभानी मुश्किल है।।

​फिर हमें वही सांसद 18000 में पूरे परिवार चलाने कहते हैं।
सहर्ष कैबिनेट प्रस्ताव पास करती, विरोध के स्वर नहीं उठते हैं।।
खुद एक सत्र भी कार्य किया और पूर्ण पेंशन तक प्राप्त किया।
लेकिन हम सरकारी सेवक, 60 वर्ष की उम्र तक कार्य करें।
फिर भी पेंशन लाभ से मरहूम रहें।।

इन सब बातों से वेतन आयोग को कोई सरोकार नहीं।
उन्हें सरकार से मतलब है, सरकारी सेवक से बेमतलब का प्यार नहीं।।

पहले दिल्ली वाले विधायक, लाख रूपये कर गए खुद का वेतन।
अब मुम्बई वालों ने कर लिए 2 लाख रूपये अपना वेतन।।
काश हमें भी ऐसे अधिकार मिले होते।
कम—से—कम रोटी दाल के पूरे पैसे लिए होते।।

अब थोड़ी—थोड़ी बात समझ में आती है।
महलों में रहने वाले को रोटी—दाल का भाव कहां पता चल पाती है।।
अब तो मोदी जी का दिखाया सब्जबाग भी लूट गया।
हां अच्छे दिन आएंगे ये सपना "शुभेश" का टूट गया।।

रविवार, 12 जून 2016

हे भगवान अहां महान

6:52:00 pm
हे भगवान अहां महान ।
करू कृपा यौ कृपानिधान ।।

छोट—छिन हम बुद्धि—बल हीन
अहांक महिमा सं' अनजान ।
ज्ञानक दीप जगा दियअ भगवन
बनि जाए जिनगी स्वर्ग समान ।।

सब बाधा के काटि सकी हम
तानि कै बुद्धिक तीर कमान ।
प्रगतिक राह पर बढैत चली हम
पाबि क' अहांक कृपा महान ।।

दोष हमर सब माफ करू अहां
हम अज्ञानी आ नादान ।
प्रेमक बरखा में नहा दियअ भगवन
बुझि के 'शुचि' कै निज संतान ।।

करू कृपा यौ कृपानिधान ।।
हे भगवान ............
करू कृपा...........
                              .......शुभेश

रविवार, 5 जून 2016

तेरी याद

11:16:00 pm
तेरी याद

सूनी सूनी अंखिया मेरी चितवत है चहु ओर ।
कहां छुपी है मेरी चन्दा, ढूंढे तुझे चकोर ।।

जहां भी देखूं कोई गुड़िया, लगे है जैसी मेरी सोना ।
जैसे मुझसे बोल रही हो, पापा देखो मैं ही हूं ना ।।

कहीं भी देखूं कोई सूरत ।
ममतामयी मां की कोई मूरत ।।

याद तुम्हारी मुझे सताये ।
अधर हैं सूखे नयन भर आये ।।

तन भीगा, दर्पण भीगा है ।
नयन धार से बसन भीगा है ।।

मन प्यासे को कौन बताये ।
नयन नीर कब प्यास बुझाये ।।
                                 ....शुभेश

रविवार, 29 मई 2016

हे दीन दयाल दया कीजै

12:50:00 pm
हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।

हे नाथ, सनाथ तुमहि से हम,
नहिं हमे अनाथ प्रभो कीजै ।।

हे जगत—पिता, हे परम—पूज्य,
विनती बस इतनी है तुमसे ।
हम सबके नाथ और पूज्य गुरू,
की स्वास्थ्य कामना है तुमसे ।।

हे नाथ कृपालु कृपा कर दो ।
हम सबकी खाली झोलियां भर दो ।।

हे दीन—दयाल, हे कृपा—निधान,
अरजी मेरी इतनी सुनिये ।
प्रभो नाथ हमारे गुरूवर को,
चिर स्वास्थ्य—लाभ को वर दीजै ।।

हे दीन दयाल दया कीजै ।
हम दीन अबोध की अरजी लीजै ।।
                                      .....शुभेश
(परम पूज्य गुरूदेव के स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रभु से विनती हेतु नवम्बर,2009 में रचित)

गुरू की वाणी अमृत जैसा

12:37:00 pm
गुरू की वाणी अमृत जैसा
Gurudev+ki+vani
गुरू की वाणी अमृत जैसा
मीठा नहीं मधुर कोई वैसा ।
बरसों की प्यासी धरती पर,
इन्द्रदेव की कृपा के जैसा ।
गुरू की वाणी...............

गुरू ही सबको मार्ग बतावें
सबको सदा सुपंथ चलावे ।
उस मार्ग पर सदा जो चलता
होता भला सदा ही उसका ।

जाति—पांति का भेद मिटाकर
सब से सच्ची प्रीत लगाकर ।
मानव की सेवा जो करता
निज धाम को प्राप्त वो करता ।

गुरू का वचन सदा जो माना
भव—बन्धन से है छुटि जाना ।
सब व्याधि को दूर वो कर दें
जन्म—मरण की पीड़ा हर लें ।

गुरू की वाणी औषधि ऐसा ।
गुरू की वाणी अमृत जैसा ।।
                            .....शिवेश

सतगुरू की महिमा

11:55:00 am
सतगुरू की महिमा

Param+Pujya+Gurudev+Shriyut+Baua+Saheb

अजब निराले सतगुरू मेरे, चलो दर्शन कर आते हैं ।
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा, चलकर खूब नहाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

भव्य ललाट और बाल सुनहरे, देख मुग्ध हो जाते हैं ।
सतगुरू की मूरत को लखकर, मिलकर शीश झुकाते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ..........................................

हम सब मिलकर ऐसे गुरू की, नित दिन वन्दन करते हैं ।
वचनामृत सुनकर हम उनके, धन्य स्वयं को करते हैं ।।
अजब निराले सतगुरू ...............................................
ज्ञान—प्रेम की अविरल धारा.......................................
                                                                     .....शिवेश

रविवार, 8 मई 2016

सुख-दु:ख

10:44:00 am
ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है
सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

बिना धूप के छाँव का आस्तित्व ही क्या
अंधियारे के बिना उजाले का महत्व ही क्या
गोरे हैं तब ही जब काले हैं
कहीं उदासी है फिर तब चित्त मतवाले हैं

जब जग में सब सुन्दर ही होते
कोई सुन्दर नहीं कहीं पर होते फिर
क्या होता जब दिवस—दिवस ही रहता केवल
नहीं अंधियारी रैना की क्या कोई जरूरत?

है कुरूपता से परिभाषा सुन्दर की
भेद यहीं से मिलता है नारी—नर की
ज्यों अपंगता है जग में तन सुन्दर है
कहीं खुरदुरे श्यामल चेहरे, कहीं पर छवि मनोहर है

कहीं लालच है, कामुकता है, फिर कहीं ईमानदारी है, वैराग्य है
कहीं निर्धनता है, व्याधि है, तो कहीं अमीरी है, आरोग्य है

यदि है क्रोधी कोई मोही, तब ही शांत चित्त निर्मोही
अन्याय नहीं फिर न्याय ही कैसा, जैसे पुण्य पाप बिनु वैसा

अरे भगवान के आस्तित्व के लिए भी, शैतान का होना बहुत जरूरी है
इसलिए ज्यों दु:ख है, तो ही सुख, सुख है, सुख के लिए दु:ख का होना बहुत जरूरी है

जो आज दु:खी है, कल सुखी भी होगा
तम का सीना फाड़ सूरज निकलेगा
तुम यत्न किन्तु बस इतना करना
नित कर्म किए जा और ईश चरण में ध्यान तुम धरना

फिर 'शुभेश' सुख ही सुख का, रहेगा तेरे घर डेरा
नहीं मिलेगी निशि अंधियारी, नहीं व्यापेगा तुझको कष्ट घनेरा
                                                                      .....शुभेश 

निवेदन

10:02:00 am
मात—पिता से बढ़कर, संसार में कोई और नहीं है
ठुकरा दे गर, सारी दुनियां, सं​तति पाती ठौर यहीं है ।
उनकी पूजा से बढ़कर कोई धर्म नहीं
हां उनकी सेवा से बढ़कर कोई कर्म नहीं ।
जिसने सींचा नौ मास निज रक्त से मुझे
है कोशिश दे सकूं, खुशी के कुछ वक्त उन्हें ।
जिनका नाम ले बढ़ा जग में
निज पहचान है दिया जिन्होंने
जी चाहे कुछ कर गुजरूं उनकी खुशी के लिए ।
चाहूं तो भी उऋण हो सकता नहीं,
इसलिए प्रभु से मांग रहा यह वर
हर जनम में तेरी संतान बनूंगा
कितना भी बल बुद्धि हीन रहूं, फिर भी मैं सच्चा इंसान रहूंगा ।

हे भगवान इतनी कृपा और करो प्रभु
रखूं सुखी दूं हर खुशी उसे ।
जिसने निज मात—पिता का घर छोड़ा मेरी खातिर
कियें है जाने त्याग कई, बस मेरी खातिर ।
उसको भी तो मात—पिता होंगे प्रिय
शायद मुझसे अधिक ही चाहत हो उनकी ।
फिर भी रीति—रिवाजों कारण,
सब छोड़ मेरे संग है आई ।
इसलिए मुझ पर मुझसे भी अधिक
उसकी ही है प्रभुताई ।
दु:ख उनके बांट नहीं सकता मैं
हां खुशियों से झोली भर सकता मैं ।

हे प्रभु दो इतना आत्मबल, सम्बल मुझको
पुत्र और पति धर्म दोनों का भ​ली—भांति पालन करूं ।
सुख—चैन से भर दूं मात—पिता का हर इक क्षण
और खुशियों भरा कर दूं, सबका जीवन ।
                                                       ........शुभेश

शनिवार, 7 मई 2016

भूख

9:21:00 pm
मामा जी, मामा जी यो, हमरा लगि गेल भूख ।
हमरा लेल पेड़ा—बिस्कुट आनू, चाहे खोआ—तिलकुट आनू ।
जल्दी से आनू सेबक जूस, जल्दी से आनू दूध ।।
मामा जी, मामा जी यो....................

दालि चाउर लै खिचड़ी बनाबू, चाहे दूध दै खीर बनाबू ।
नूने—अनून स​ब किछु खा लेब, कांचो—कोचिल सेहो पचा लेब ।।
बड जोड़ लगि गेल भूख ।
मामा जी, मामा जी यो....................

नै किछु बनत त' सेहो बता दिय'
हमरा माय के अहां, बजा दिय'
हम त पी लेब दूध, आब बड जोड़ लगि गेल भूख ।।
मामा जी, मामा जी यो....................
                          ........शुभेश
 (​अपनी पुत्री सुश्री शुचि को समर्पित मैथिली बाल रचना)

तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा

6:28:00 pm
हे ​प्रियतमा, शुभ्रे! तुझे कदम से कदम मिलाकर चलना होगा ।
मैं अनुगामी नहीं बनाता हूं तुझको, पर हे प्रिये तुझे सहचरी तो बनना होगा ।।

पथ में चाहे जितने कंटक आए, मैं चल लूंगा हंसकर ।
तू फूल भरी राहों पर हीं ज्यों चल मेरे हाथ पकड़कर ।।
मैं दु:ख—संताप की ज्वाला को पी लूंगा।
पर तुझको भी इसकी थोड़ी आंच सहन करना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .....................

श्रेष्ठजनों की बात को न तुम दिल पर लेना ।
होगी गूढ़ भलाई कोई, बात सहज मान लेना ।।
मातु—पिता नहिं चाहे संतति का अहित
हो सकता भिन्न तरीका, उनके प्यार जताने का ।

औरों की बहकी बात से हमें क्या लेना,
हम दोनों का साथ है जब, क्या कर लेंगी बावरी दुनियांं ।
हो सकता हैं लोग करें तुझ पर वाणी से शस्त्र प्रहार बहुत,
कटुक वचन से ह्रदय छलनी होगा, पर हे प्रिय तुम न धीरज खोना ।

ये ​दुनिया है बड़बोलों की, बड़बोलों की है ये दुनिया
तुमको उनकी बातों पर कान नहीं धरना होगा ।।
मैं अनुगामी नहीं बनाता .............................
                                                           .......शुभेश

अपरंपार दयालु भगवन

5:44:00 pm
हे अपरंपार दयालु भगवन, कर धय थाम लियो ।
भटक रहा था भव कूपों में, तूने खींच लियो ।।
हे अपरंपार ........................

मैं तो जड़मति, अति अज्ञानी,
क्रोधी, लोभी, महा अभिमानी।
तूने ज्ञान की गंगा बहाई,
गुरू मूरत में छवि दिखलाई।
गुरू पद पंकज, अंतरतम की सारी विघ्न हरौ।।
हे अपरंपार ........................

हे प्रभु कैसे होऊं उऋण मैं,
कोटि जन्म बस करहुं भजन मैं।
तव प्रताप की बात निराली,
सारी दुनिया हुई मतवाली।
जेहि रंगेहु प्रभु तेरे रंग में, नहिं दूजा रंग चढ़ौ।।
हे अपरंपार ........................

निर्मल तन—मन कीजिए स्वामी
तव चरणों का बनूं अनुगामी।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा,
आवागमन का छुटि जाए फेरा।
मुझ पर कृपा करहुं प्रभु इतनी, नाम कबहुं नहिं मैं बिसरौं।।
हे अपरंपार ........................
                                                        ~~~~~शुभेश

बुधवार, 15 जुलाई 2015

शर्मा जी बने डॉक्टर

11:43:00 am
शर्मा जी बने डॉक्टर
मेरे पड़ोस में शर्मा जी रहते हैं,
हर मुद्दों पर गरमा—गरम बहस करते हैं ।
ज्ञान के मामले में तो शुन्य हैं,
समझते अपने को परिपूर्ण हैं ।।

एक सुबह शर्मा जी को सपना आया,
डॉक्टर बनकर उन्होंने खूब माल कमाया ।
बस फिर क्या था, शर्मा जी चले डॉक्टर बनने,
सफेद कोट सिलवायी, और चले सपने को सच करने ।।

साले ने जुगत भिड़ाई,
एमबीबीएस की फर्जी डिग्री दिलाई ।
अब शर्मा जी बन गए डॉक्टर,
और उनके साले साहब हो गए कम्पाउण्डर ।।

दोनों ने मिलकर क्लिनिक खोली,
चार दिवस इंतजार में ही निकली ।
जब कोई मरीज नहीं आया,
शर्मा जी का दिल घबराया ।।

पांचवें दिन हुए मरीज के दर्शन,
देख जीजा—साले का खिल गया मन ।
ऐसा ईलाज करूं मैं इसका,
बनूं चहेता डॉक्टर सबका ।।

बंदे ने मर्ज बताई,
था वो दस्त से परेशान भाई ।
शर्मा जी ने ऐसा ईलाज किया,
वो बेचारा स्वर्ग सिधार गया ।।

दोनों को हुई घबराहट, बात हुई ये ऐसी,
बात न बाहर फैले ये, कोई जुगत लगाओ वैसी ।
चलो दोनों इसे उठाते हैं,
पीछे के वन में दफनाते हैं ।।

साले था पकड़ा लाश को पीछे,
और अपने आंखों को मींचे ।
जो मल था धोती के अंदर,
सब गिरा साले के ऊपर ।।

खैर! किसी तरह निपटाया,
उसको जाकर ​दफनाया ।
अगले दिन जब क्लिनिक आया,
था एक मरीज पहले से आया ।।

देख दोनों की आंखें चमकी,
चलो आज होगी बोहनी अच्छी ।
मरीज ने मर्ज बताया,
उसे भी था दस्त ने सताया ।।

सुनकर दोनों फिर चौंके,
फौरन अंदर को लपके ।

साला बोला जीजा से ,
अपने सर को जकड़े ।
फैसला हो पहले इसका
कि पीछे कौन पकड़े ।।
                  ~~~शुभेश
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

उठ भोर भई

7:27:00 am
उठ भोर भई
उठ भोर भई, उठ भोर भई, अब जाग री मेरी गुड़िया ।
जग गई सारी ​दुनिया ।

मम्मी—पापा जागे, जग गए मामा—मामी,
दादा—दादी जागे और जग गए नाना—नानी ।
अरे खुलि गए सारे किवड़िया, अब जाग री तू भी गुड़िया ।।
उठ भोर भई....................................

चंदा मामा जाए, सूरज दादू आए,
अंधियारा भी जाए, हर कली मुसकाए ।
अरे जग गई सारी दुनिया, अब जाग री तू भी गुड़िया ।।
उठ भोर भई....................................
उठ भोर भई, उठ भोर भई अब जाग री मेरी गुड़िया ।
चली खेलन सारी दुनिया ।।
                                                              ~~~शुभेश

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

कभी सुबह तो होगी

11:04:00 pm
कभी सुबह तो होगी
सूरज की लालिमा बिखर चुकी है,
रात का अंधियारा छंट चुका है ।
उगते हुए उस बड़े से सूरज को देख
वो मासूम बचपन याद आ रहा है,
जो कहीं खो गया है, गुम हो गया है ।।

आप कहते हैं मैं अभी सात का हूं,
तो कहां छुपा है, यहीं है, यही तो है तेरा बचपन ।
हां यहीं है मेरा बचपन, खयालों में ही सही,
यहीं है, यहीं है मेरा बचपन ।।

खयालों में ही सही, हमउम्रों को देख मैं भी
धूलों में लोटता हूं, गांव की गलियों में दौड़ता हूं ।
कंचे खेलता हूं, धूम मचाता हूं, खयालों में ही सही ।
मालिक के डांटने पर, पीटने पर मां बालों में
प्यार से हाथ फेरती तो है, खयालों में ही सही ।
हां बचपन तो है, खयालों में ही सही ।।

कल एक प्लेट ही तो टूटी थी,
या फिर मेरी किस्मत ही फूटी थी ।
उसने गालियों की जो गुबार निकाली थी,
सुनकर शायद शरम भी शरमाई थी ।
पर मैं, मैं नहीं शरमाया
मैं तो वहीं बुत बना खड़ा था ।
शायद खुद को ढूंढ रहा था ।।

अब तो मेरे आंसू भी सूख गये हैं,
ये तो रोज की बात है, कह वो भी रूठ गये हैं ।
कभी गाली, कभी मारपीट, यही अब मेरी कहानी है,
भर—पेट खाने की लालसा में, बीती जा रही जिन्दगानी है ।।

ऊषा की लालिमा तो रोज आती है,
सारे जग के अंधकार मिटाती है ।
मेरा अंतर्मन मुझे देता है रोज दिलासा,
कि कभी तो कोई आएगा ।
जो मसीहा बनकर मेरे,
सिसकते हुए बचपन को फिर से हंसाएगा ।।

सपनों की वो जमीं कभी सच तो होगी ।
हां 'शुभेश' आज न सही मेरे लिए भी, कभी सुबह तो होगी ।।
                                                       ~~~शुभेश
***Please Strictly Avoid Child Labour***

गुरूवर नमन तुम्हें शत बार है

10:29:00 pm
गुरूवर नमन तुम्हें शत बार है
नमन तुम्हें शत बार है गुरूवर, नमन तुम्हें शत बार है ।
पाप—पुण्य का भेद कराया,
दया धरम का मार्ग दिखाया ।
स्नेह भरा जो हाथ फिराया, कोटि—कोटि आभार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है.............................................
सत की नाव में मुझे बिठाया,
नाम रूपी पतवार थमाया ।
निराकार का भेद बताया, वो रूप तेरा सा​कार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है.......................................
क्रोध—लोभ को पास न लाना,
माया मोह से बच के रहना ।
माया ठगिनी बड़ी सयानी, तूने किया खबरदार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है..........................................
हम अज्ञानी इंद्रिय वश में,
बंधते जाते भव बंधन में ।
तूने ज्ञान की ज्योति जलाकर,
तन और मन दोनों धुलवाकर ।
आतम—राम का मिलन कराकर, किया बड़ा उपकार है ।।
नमन तुम्हें शत बार है...................................................
                                                                   ~~~शुभेश

पहली नजर

10:11:00 pm
पहली नजर
पहली बार नजर भर देखा,
मन अंदर से मचल हो बैठा ।
लंबे बाल हैं काले—काले,
लट बिखराये भाल सजाये ।।

दो नयना अति शीतल तारे,
दूर करे सारे अंधियारे ।
सजी संवरी वो सामने बैठी,
मेरे अंदर तक वो पैठी ।।

उस पल को अब कोस रहा हूं,
मन को अपने मसोस रहा हूं ।
पहले क्यों नहिं मैंने हां की,
मति मेरी भी गई कहां थी ।।

अब तो पल—पल दिवस है लगता,
याद में उनकी दिन है कटता ।
उनकी बोली मधुर है ऐसी,
शहद मिलायी गई हो वैसी ।।

निशि दिन मधुरपान मैं करता,
याद में उनके सपने बुनता ।
अच्छा लगे न कुछ भी यारा,
कब होगा दीदार तुम्हारा ।।

प्रतिपल सोचे यही 'शुभेश'
इंतजार होंगे कब ये शेष ।।
                       ~~~शुभेश

जाने वो सुबह कब आएगी

9:57:00 pm
जाने वो सुबह कब आएगी
जाने वो सुबह कब आएगी, जाने वो सुबह कब आएगी ।
इन सूनी—सूनी अंखियों को जाने कब तक तरपाएगी ।
कब बरसेंगी अधरों पे अधर, कब मिलन की प्यास बुझाएगी ।।
मेरे तन से जो उठती अगन, कुछ और नहीं तेरी माया ।
तेरे तन की वो मीठी छुअन, कब मिलेगी वो शीतल छाया ।।
वो हंसी ठिठोली मुसकाना ।
पलक उठाकर देखना यूं, फिर पलक झुकाकर शरमाना ।।
वो प्यार भरी तेरी बातें, छोटी करती लम्बी रातें ।
बरबस गालों को यूं चूमना ।
कभी चेहरे को यूं उठा—उठाकर, उंगली को अपने घुमा—घुमाकर ।
बातों से सपने बुनना ।।
मुझे याद बहुत ही आती है, तेरी याद सदा तरपाती है ।
देखेंगे जाने कब ये नयन, जो मन में बसी चंचल काया ।
तरपा तो पहले भी था बहुत, इतना न किसी ने तरपाया ।।
                                                                     ~~~शुभेश



यूं ही सफर में

9:54:00 pm
यूं ही सफर में
वो सहमी, वो चुपचुप, अपने में गुमसुम ।
न बोले न हंसती, डब्बे में कोई नहीं भी है वैसी ।
मेरा ध्यान खींचे, क्यूं है वो ऐसी ।।
उसके साथ कुनबा है सारा का सारा।
पर लगता नहीं कोई उसको है प्यारा ।।
गोद में उसकी है, नन्हीं सी गुड़िया ।
कोमल—सुकोमल, चंचल इक बिटिया ।।
कभी मुंह चूमें, कभी बाल खींचे वो नन्हीं सी गुड़िया ।
उस नन्हीं सुकोमल की चंचल छुअन की,
सहज एक चाहत उठती है मन में ।
पर जैसे उस मां को उस नन्हीं सी जां की,
न थोड़ी सी चिंता, न चाहत है मन में ।।
हुई रात अब तो सोने की चिंता,
छ: सीट है और सात सवारी ।
लो सीटों पे सोएंगे सारे के सारे,
बस नीचे सोएगी, अम्मा संग प्यारी ।।
कहते वो आए मां वैष्णों यहां से ।
जो जगत जननी सबकी वो जगदम्बे मां से ।।
पूछे है ये मन, क्यूं इतनी उपेक्षा,
उस नन्हीं सी जां की, जां की और मां की ।।
                                               ~~~शुभेश

सोमवार, 13 जुलाई 2015

मैं भारतवासी हूं

3:28:00 pm
मैं भारतवासी हूं..........
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।
ये तो वो भारत—भुमि नहीं, जहां राम,कृष्ण ने राज्य किया ।
पापियों का संहार किया और जनजीवन को आबाद किया ।।
चन्द्रगुप्त और महाराणा प्रताप की कथा लगे सपनों जैसी ।
सब लगे हैं स्वार्थ—सिद्धि में, परोपकार और ईमानदारी कैसी ।।
सांसदों की बात न पूछें, बस इनकी करतूतें देंखे ।
हर मामले पर डाल अड़ंगा, शुरू कर दें मार—पीट और दंगा ।।
सांसदों की करनी सुनकर, हर कोई ये शरम से कहता ।
क्या ये संसद है, यहीं कानून है बनता ...........?
आज यहां नंदीग्राम की घटनाओं का बोलबाला है ।
औद्योगिकरण और विकास के नाम पर होता बड़ा घोटाला है ।।
सरकार भ्रष्ट, व्यभिचार पुष्ट,
जनता है त्रस्त, कहे किससे कष्ट ।।
पाठकों आप करें स्पष्ट,
मैं फिर से वही प्रश्न करूं,...................
मैं भारतवासी हूं, फक्र करूं या शर्म करूं ।
                                        ~~~ शुभेश
(वर्ष 2007 में तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर ​रचित)
(विभागीय पत्रिका में प्रकाशित)

हे अपरंपार पार करो नैया

3:13:00 pm
पार करो नैया
हे अपरंपार पार करो नैया फंसी है बीच भंवर में ।
तुम बिन दूसर कोई न खेवैया, इस अथाह सागर में ।।
हम हैं पापी अवगुण राशि, करम अधम अति मेरे ।
सुख—दु:ख, धन—संपति और विपदा, हैं सब माया तेरे ।।
लोभ—क्रोध, मद—मोह जनित यह पाप की गठरी भारी ।
कैसे पार करूं मैं भव को, हूं अब शरण तुम्हारी ।।
हम नादान चंचल अज्ञानी, विनती करूं मैं कैसे ।
जैसे तारा गज और गणिका, तारो हमको वैसे ।।
                                                          ~~~शुभेश
('सत्य की ओर' पत्रिका में प्रकाशित)